पोप : प्रकृति की देख-रेख हेतु चिंतन जरूरी

कस्तल गंदोल्फो में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान पोप लियो ने सृष्टि की सुरक्षा और देख-रेख हेतु तैयार की गई यूखारीस्तीय धर्मविधि की प्रार्थना का उपयोग करते हुए मिस्सा बलिदान अर्पित किया।
पोप लियो ने कस्तल गंदोल्फो की वाटिका में सृष्टि की देख-रेख और सुरक्षा हेतु तैयार किये नये यूखारीस्तीय धर्म विधि प्रार्थना का उपयोग करते हुए लौदातो सी की दसवीं सालगिराह का मिस्सा बलिदान अर्पित किया।
पोप लियो ने अपने प्रवचन के शुरू में सभों का अभिवादन करते हुए कहा कि इस खूबसूरत दिन पर, मैं सबसे पहले सभी को प्राकृतिक के संग ईश्वर को धन्यवादी ख्रीस्तीयाग अर्पित करने हेतु आमंत्रित करता हूँ।
इस मिस्सा बलिदान के कई कारण हैं जिनके लिए हम प्रभु को धन्यवाद देना चाहते हैं: यह उत्सव सृष्टि की देखभाल के लिए यूखारीस्तीय धर्मविधि का पहला मिस्सा है जो वाटिकन में विभिन्न परमधर्मपीठीय समिति के कार्यों का प्रतिफल है।
पोप ने सृष्टि की देख-रेख और सुरक्षा हेतु तैयार किये गये पूजन विधि यूख्रारीस्तीय प्रार्थना पर कार्य करने वालों सभों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि धर्मविधि जीवन को व्यक्त करती है और हम सभी लौदातो सी जीवन के केन्द्र-बिन्दु में हैं।
अतीत का एहसास
पोप ने कस्तल गंदोल्फो की वाटिका में उपस्थित सभी विश्वासियों के स्वागत उपरांत कहा कि यह पहली शताब्दियों के प्राचीन गिरजाघरों जैसा है, जहाँ बपतिस्मा का एक फव्वारा होता था जिससे होकर गिरजाघर में प्रवेश करना पड़ता था। “मैं इस जल में बपतिस्मा नहीं लेना चाहता... लेकिन जल से होकर गुजरने का प्रतीक, अपने सभी पापों और अपनी कमज़ोरियों से शुद्ध होकर, और इस प्रकार कलीसिया के महान रहस्य में प्रवेश करने का, आज भी हम अनुभव करते हैं। मिस्सा की शुरुआत में हमने अपने मन-परिवर्तन के लिए प्रार्थना की। मैं यह भी जोड़ना चाहूँगा कि हमें गिरजाघर के अंदर और बाहर, उन बहुत से लोगों के मन-परिवर्तन के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, जो अभी भी हमारे साझा घर की देखभाल की अति-आवश्यकता को नहीं समझते।”
दुनिया भर में, कई जगहों पर, कई देशों में, लगभग हर दिन हम जो प्राकृतिक आपदाएँ देखते हैं, उनमें से कई आंशिक रूप से मानवीय अति और उनकी जीवनशैली के कारण होती हैं। इसलिए, हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या हम खुद उस बदलाव का अनुभव कर रहे हैं या नहीं: हमें इसकी कितनी ज़रूरत है।
यह कौन हैॽ
आज हम एक परिचित और शांतिमय क्षण को साझा करते हैं, दुनिया की एक उस परिस्थिति में भी जो वैश्विक तापमान में वृद्धि और हथियारों के युद्ध के कारण जल रही है, जो संत पापा फ्रांसिस के विश्व प्रेरितिक पत्रों लौदातो सी और फ्रातेल्ली तूत्ती के संदेश को सारगर्भित बनाता है। तूफान के कारण शिष्यों का भयभीत हो जाना आज मानवता के एक बड़े भाग का हिस्सा है। यद्यपि जयंती वर्ष के केन्द्र में हम इस बात को घोषित करते हैं की - एक आशा है। हमारा इससे मिलन येसु ख्रीस्त में हुआ है जो विश्व के मुक्तिदाता हैं। वे आज भी अपनी सर्वशक्तिमत्ता में तूफान को शांत करते हैं। उनकी शक्ति हमें विचलित नहीं करती है बल्कि हम उसमें सृजनात्मकता को पाते हैं, जो विनाशा नहीं करती बल्कि जीवन लाती है, हमें नया जीवन प्रदान करती है। इस भांति हम अपने में पूछते हैं, “यह कौन है, जिसकी आज्ञा वायु और समुद्र भी मानते हैं”ॽ
हमारे आश्चर्य में पूछे जानेवाला यह सवाल हमारे लिए पहला कदम होता है जो हमें भय से ऊपर उठाता है। येसु ने गलीसिया समुद्र के इर्दगिर्द प्रार्थना करते हुए निवास किया। वहाँ उन्होंने अपने प्रथम शिष्यों को उनके स्थानों और कार्य से निमंत्रण दिया। उन्होंने जिन दृष्टांतों का उपयोग करते हुए ईश्वर के राज्य की घोषणा की वे हमारे लिए भूमि और पानी के बीच एक गहरे संबंध को व्यक्त करते हैं, जहाँ हम जलवायु की गति और सृष्टि के प्राणियों के जीवन को पाते हैं।
पोप लियो ने कहा कि सुसमाचार लेखक संत मत्ती तूफान को एक भूकंप के रुप में व्याख्या करते हैं- वे इसका उपयोग पुनः येसु की मृत्यु और पुनरूत्थान की प्रभात में करेंगे। ख्रीस्त इन सारे उथल-पुथल से ऊपर उठते हैं, यह सुसमाचार हमें पुनर्जीवित येसु की झलक को प्रस्तुत करता है, जो हमारे जीवन के उतार-चढ़ाव में हमारे संग रहते हैं। येसु वायु और समुद्र को डांटते हैं जो उनके जीवन देने और बचाने की शक्ति व्यक्त करती है, जो अपने में शांत हो जाते जिनके सम्मुख मानव प्राणी खोने का अनुभव करता है।
येसु सृष्टि के पहलौठे
पोप ने कहा कि हम उस सवाल की ओर लौटे, यह कौन हैं, जिसकी आज्ञा वायु और समुद्र भी मानते हैं। कलोसियों के नाम पत्र से लिए गया पाठ हमारे लिए इसका उत्तर प्रस्तुत करता है, वह अदृश्य ईश्वर का प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टि के पहलौठे हैं, क्योंकि उन्हें के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। उनके शिष्य उस दिन, तूफान से घिरे, भयभीत, येसु ख्रीस्त के बारे में अपने ज्ञान को घोषित करने में असमर्थ थे। आज हम, उस विश्वास के साथ जो हमें दिया गया है, हम अपने में यह कह सकते हैं, वे शरीर अर्थात कलीसिया के सिरमौर भी है।वही ल कारण हैं और मृतकों में से प्रथम जी उठने वाले भी, इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेष्ठ हैं। ये शब्द हमें इतिहास में बनाये रखते हैं, जो हमें एक जीवित शरीर बनाता है, वह शरीर जिसके शीर्ष येसु ख्रीस्त हैं। हमारी प्रेरिताई सृष्टि की रक्षा करनी है, उसमें शांति और मेल-मिलाप लाना है, जो स्वयं ख्रीस्त की प्रेरिताई है, जिसे उन्होंने हमारे लिए प्रदान किया। हम पृथ्वी और गरीबों की रूदन को सुनते हैं क्योंकि यह रूदन ईश्वर के हृदय तक पहुंची है। हमारा कोप ईश्वर कोप है, हमारा कार्य ईश्वर का कार्य है।