रोम में एकत्रित हुए एस.वी.डी. एक मिशन, अनेक आवाज़ें

रोम में, सम्पूर्ण विश्व से सोसाइटी ऑफ दि डिवाइन वर्ड (एस.वी.डी.) अर्थात् दिव्य शब्द धर्मसमाज के 200 से अधिक मिशनरी धर्मसमाज की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 27 से 29 मार्च तक परमधर्मपीठीय ग्रेगोरियन विश्वविद्यालय में एकत्रित हुए।
रोम में, सम्पूर्ण विश्व से सोसाइटी ऑफ दि डिवाइन वर्ड (एस.वी.डी.) अर्थात् दिव्य शब्द धर्मसमाज के 200 से अधिक मिशनरी विद्वान, धर्मशास्त्री और पुरोहित धर्मसमाज की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मिशन सम्मेलन के लिए 27 से 29 मार्च तक परमधर्मपीठीय ग्रेगोरियन विश्वविद्यालय में एकत्रित हुए।
"आज के विश्व में मिसियो देई: घावों को भरना, उत्तर आधुनिकता द्वारा चुनौती, संस्कृतियों से सीखना, धर्मों से प्रेरणा" शीर्षक के अन्तर्गत आयोजित सम्मेलन ने तीव्र गति से खंडित और घायल दुनिया में कलीसिया के मिशन के लिए धार्मिक अंतर्दृष्टि और प्रेरितिक चिंतन प्रस्तुत किया।
ख्रीस्त द्वारा चंगाई
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, शिकागो में काथलिक थियोलॉजिकल यूनियन के प्रोफेसर, फादर स्टीफन बेवन्स, एसवीडी ने मिशन के मूल को त्रियेक ईश्वर के "झरने जैसे प्रेम" के रूप में दर्शाया। सृष्टि के आरम्भिक बिन्दु से लेकर प्रभु येसु के देहधारण तक उन्होंने चंगाई प्रदान करने, सबको एकत्र करने और नवीनीकृत करने के दिव्य आवेग के प्रति ध्यान आकर्षित कराते हुए प्रतिभागियों से "ईश्वर की योजना में वफादार भागीदार" बनने का आह्वान किया।
फादर बेवन्स ने सभा को याद दिलाया कि "हमें सत्य को धारण करने के लिए नहीं बुलाया गया है, बल्कि हर जगह से, हर किसी के लिए प्रकाश की गवाही देने के लिए बुलाया गया है। "
इसी मिशनरी भावना को परमधर्मपीठीय सुसमाचार प्रचार के प्रो-प्रीफेक्ट कार्डिनल लुइस अन्तोनियो तागले ने अपने प्रभाषण में प्रतिध्वनित किया गया। उन्होंने शिष्यों के सामने पुनर्जीवित प्रभु येसु के प्रकट होने के सुसमाचारी दृश्य को याद किया और कहा, "वह निंदा के साथ नहीं, बल्कि शांति के साथ आते हैं।" उन्होंने कहा, "यह प्रभु की आवाज़ है। आइए हम सुनें, अनुसरण करें, और दुनिया के घायल स्थानों में फिर से भेजे जाएँ।"
नैतिक अखंडता और जीवंत साक्ष्य
सम्मेलन के दूसरे दिन, उत्तर आधुनिक अनिश्चितता और डिजिटल भटकाव से आकार लेने वाली दुनिया में कलीसिया के मिशन पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्राग में चार्ल्स विश्वविद्यालय के डॉ. पावोल बारगर ने अपने मुख्य भाषण में इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि पूर्ण सत्य के क्षरण और कट्टरपंथी व्यक्तिवाद के उदय के बीच सुसमाचार की घोषणा कैसे की जा सकती है।
उन्होंने कहा, "सुसमाचार उद्घोषणा को घोषणा से आगे बढ़कर अर्थ की चाह रखने वाले समाज के प्रति संबंधपरक और उत्तरदायी बनना होगा।" उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सुसमाचार प्रचार प्रक्रिया को सैद्धांतिक कठोरता में नहीं बल्कि नैतिक अखंडता और जीवंत साक्ष्य में निहित होना चाहिये।