मानव अधिकार दिवस पर पोप : युद्ध लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करता

10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस की याद करते हुए पोप फ्राँसिस ने सरकारों से अपील की है कि वे उन लाखों लोगों की शांति की पुकार सुनें जिनके मौलिक अधिकार युद्ध के कारण छीन लिए गये हैं।

मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकार दिवस मनाए जाने पर पोप फ्राँसिस ने विश्व नेताओं को याद दिलाया कि "जीवन और शांति के हमारे मानवाधिकार, अन्य सभी अधिकारों के प्रयोग के लिए आवश्यक शर्तें हैं।"

युद्ध के कारण लाखों अपने अधिकार से वंचित 
यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है, जो 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की वर्षगांठ है, और इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र द्वारा लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, नस्ल या धर्म के बावजूद सभी मनुष्यों के बुनियादी अधिकारों और स्वतंत्रता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी।

यह दिवस उस कार्य को मान्यता देने का अवसर देता है जो किया गया है तथा अधिकारों की रक्षा के लिए क्या किया जा सकता है उस मील के पत्थर दस्तावेज के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को ये अधिकार प्राप्त हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई का आह्वान है कि उन अधिकारों का विश्वभर में सम्मान किया जाए।

एक्स पर एक पोस्ट में इस अंतरराष्ट्रीय दिवस पर सतं पापा ने सरकारों से अपील करते हुए कहा, "युद्ध के कारण अपने सबसे बुनियादी अधिकारों से वंचित लाखों लोगों की शांति की पुकार सुनें" जिसके बारे में उन्होंने कहा, "यह हर प्रकार की गरीबी की जननी है।"

यूरोपीय कलीसिया मानवाधिकारों के बढ़ते उल्लंघन से चिंतित
उनके शब्द यूरोपीय कलीसियाओं के शब्दों से मेल खाते हैं, जिन्होंने यूरोप के नेताओं से अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत प्रत्येक मानव की मानवीय गरिमा को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के अपने दायित्वों को पूरा करने का आग्रह किया।

यूरोपीय कलीसियाओं के सम्मेलन (सीईसी) के नेताओं ने हाल के दशकों में मानवाधिकारों की रक्षा में हुई प्रगति के लिए आभार व्यक्त किया, "लेकिन साथ ही आज विश्व में मौलिक मानवाधिकारों के उल्लंघन और उपेक्षा की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता भी व्यक्त की।"

सीईसी के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष निकितास ने कहा, “क्रूर अपराध, व्यवस्थागत अन्याय, तथा कानून और लोकतंत्र के शासन का क्षरण न केवल व्यक्तियों को खतरे में डालता है, बल्कि न्याय, एकजुटता और शांति पर आधारित समाज की नींव को भी कमजोर करता है।" यूरोपीय कलीसियाएँ, कमजोर लोगों की सेवा एवं रक्षा करने के मिशन में इन चुनौतियों के सामने मौन नहीं रह सकती।

वर्तमान उल्लंघन हमें पिछली उपलब्धियों की कमज़ोरी की याद दिलाते हैं। महाधर्माध्यक्ष निकितास ने कहा कि सुसमाचार कलीसियाओं को "उत्पीड़ितों की मदद करने, बेज़ुबानों को आवाज़ देने और न्याय के लिए अथक काम करने के लिए प्रेरित करता है।" यूक्रेन और पवित्र भूमि में चल रहे युद्धों, साथ ही मध्य पूर्व में व्यापक संकट, उत्तरी कराबाख की स्थिति और कई अन्य संकटों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यूरोपीय कलीसिया "इस बात को लेकर परेशान हैं कि कैसे सभी लोगों के मानवाधिकार और मानवीय गरिमा दबाव में आ रहे हैं।"

महाधर्माध्यक्ष निकितास ने कहा, "धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता का उल्लंघन, बढ़ती असमानताएँ, भेदभाव, तथा शरणार्थियों, प्रवासियों, शरण चाहनेवालों, विस्थापित व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन हमें इन उपलब्धियों की नाजुकता की याद दिलाता है।"

कलीसिया की प्रतिबद्धता मानव अधिकार के वैश्विक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना
इसलिए सीईसी महासचिव रेव. फ्रैंक-डाइटर फिशबैक ने सरकारों, यूरोपीय संस्थानों और यूरोप भर के सभी प्रासंगिक हितधारकों से मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के प्रति पुनः प्रतिबद्ध होने और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत दायित्वों को पूरा करने का आग्रह किया।

लूथेरन धर्माध्यक्ष ने यूरोपीय कलीसियाओं के सम्मेलन की प्रतिबद्धता को एक शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की आधारशिला के रूप में मानवाधिकारों का सार्वभौमिक दृष्टिकोण कहा, "यूरोपीय कलीसियाओं के रूप में, हम उन लोगों के साथ खड़े होने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो पीड़ित हैं, न्याय की मांग करते हैं, और हर इंसान की मानवीय गरिमा की रक्षा और सुरक्षा के लिए आह्वान को बढ़ाते हैं।" धर्माध्यक्ष फ्रैंक-डाइटर फिशबैक ने अंत में कहा, "यह हम सभी को सभी के मानवाधिकारों की रक्षा में साहस, करुणा और दृढ़ विश्वास के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।"