भारत में हाशिये पर पड़े लोगों को उठाने के लिए विश्वास के साथ आगे बढ़ती धर्मबहनें

अपनी संस्थापिका, दुःखभोग की धन्य मरियम से प्रेरित होकर, भारत में मरियम की फ्राँसिस्कन मिशनरी धर्मबहनें गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करती हैं। संत फ्रांसिस रीजन में, ये धर्मबहनें मुख्य रूप से बच्चों, वयस्कों और महिलाओं को शिक्षा प्रदान करके, लोगों को तस्करी से बचाकर, पुनर्वास में सहायता करके, और उनके जीवन में आशा एवं परिवर्तन लाकर उनकी सेवा करती हैं।
फ्राँसिस्कन मिशनरीज ऑफ मेरी धर्मसंघ की स्थापना 1877 में भारत में दुःखभोग की धन्य मरियम ने की थी। उन्होंने अपनी धर्मबहनों को आशा, शांति, आनंद और चंगाई के माध्यम बनने के लिए आमंत्रित किया।
आज, दुनियाभर के 71 देशों में लगभग 5,000 एफएमएम धर्मबहनें हैं, जो शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक न्याय और प्रेरितिक देखभाल के लिए समर्पित हैं।
एफएमएम धर्मबहनें भारत के चार रीजन में सेवा करती हैं, और उनमें से एक रीजन है संत फ्राँसिस। इसमें उत्तर भारत के आठ राज्य शामिल हैं: दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश। इसलिए, इस क्षेत्र को विविध सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इस क्षेत्र में सेवारत सिस्टर बेन्सी मरिया संगीतम कहती हैं कि "प्रत्येक क्षेत्र की अपनी चुनौतियाँ हैं, और हम इन भिन्नताओं का सामना करने की पूरी कोशिश करती हैं।" वे आगे कहती हैं, "हम कई मिशन गतिविधियों में शामिल हैं, जिससे हमें हाशिए पर पड़े और ज़रूरतमंद लोगों तक पहुँचने में मदद मिलती है, खासकर, उन लोगों की आवाज बनने में जो बेज़ुबान हैं।"
संत फ्राँसिस क्षेत्र के 19 जीवंत समुदायों में लोगों के बीच रहते हुए, ये धर्मबहनें उनके साथ चलती हैं और करुणा, शिक्षा और वकालत के माध्यम से उनकी वास्तविकताओं का सामना करती हैं।
ये धर्मबहनें आसपास के लोगों के लिए आशा की किरण बन जाती हैं, और वे बाहरी लोगों की तरह व्यवहार नहीं करतीं। बल्कि, वे लोगों की आशाओं, संघर्षों और सपनों का हिस्सा होती हैं। यही निकटता उन्हें सुसमाचार की विश्वसनीय और भविष्यसूचक साक्षी बनाती है।
महिलाओं और बच्चों की शिक्षा के लिए पहुँच कार्यक्रम
एफएमएम धर्मबहनों ने इस क्षेत्र के सबसे जीवंत सामाजिक कार्य केंद्रों में से एक की स्थापना की है।
त्रिलोकपुरी शहर में, उन्होंने दिशा केंद्र पहुँच कार्यक्रम लागू किया है, जिसके माध्यम से वे आसपास की झुग्गी-झोपड़ियों और हाशिए पर पड़े इलाकों में आवश्यक सहायता और सशक्तिकरण प्रदान करती हैं।
सिस्टर बेन्सी ने अनुसार, पहुँच कार्यक्रम ने महिलाओं और बच्चों को कई तरह से लाभान्वित किया है, जिससे उन्हें आज की दुनिया में बेहतर भविष्य बनाने का मौका मिला है।
इसके जवाब में, धर्मबहनों ने बच्चों और वयस्कों, दोनों के लिए सुधारात्मक कक्षाएँ और बोलचाल की अंग्रेजी के पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। उन्होंने महिलाओं और किशोरियों के लिए कंप्यूटर साक्षरता और सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण भी शुरू किया।
बच्चों, वयस्कों और महिलाओं से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया से धर्मबहनें उत्साहित हैं और इससे उन्हें समुदाय में बदलाव लाने की दिशा में काम करते रहने की उम्मीद है।
आउटरीच कार्यक्रमों के परिणाम जल्द ही दिखाई देने लगे हैं। कुछ महिलाओं को वस्त्र कंपनियों में नौकरी मिल गई हैं, जबकि कुछ ने सिलाई सीखकर खुद काम करना शुरू किया है। लाभार्थियों का कहना है कि उन्हें अपने परिवार को आगे बढ़ाने का आत्मविश्वास एवं उम्मीद है और वे आभारी हैं।
बेंसी कहती हैं, "जैसे पक्षी आशा और विश्वास के साथ अपने घोंसले बनाना शुरू करते हैं, वैसे ही हमने भी इस परियोजना की शुरुआत अपने दिलों में आशा और ईश्वर पर विश्वास के साथ की है। ईश्वर हमारी नींव और शक्ति हैं, और हमें विश्वास है कि वे इस मिशन को आगे बढ़ाएँगे एवं इसके लिए हमारे दिलों और हाथों को प्रेरित करेंगे, और हम खुश हैं।"