पोप : येसु हमारे अंतारिक रुप को देखते हैं

पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन की धर्मशिक्षा में धनी युवक के जीवन पर प्रकाश डालते हुए इस बात का बोध कराया कि हम जैसे भी हैं येसु हमें प्रेम करते हैं, वे हम परिवर्तन लाने हेतु निमंत्रण देते हैं।

पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में धनी व्यक्ति के दृष्टांत पर चिंतन किया।

पोप ने अपनी धर्मशिक्षा माला की कड़ी को आगे बढ़ते हुए कहा कि आज हम येसु की एक अन्य मुलाकात का जिक्र करेंगे जिसे सुसमाचार हमारे लिए प्रस्तुत करता है। हम लेकिन, इस मुलाकात में व्यक्ति के नाम की चर्चा नहीं सुनते हैं। सुसमाचार लेखक मारकुस उसे एक व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करते हैं। हम एक युवक की चर्चा सुनते हैं जो अपने में संहिता के सभी नियमों का अनुपालन करता आ रहा होता है, लेकिन इन सारी चीजों के बावजूद वह जीवन के मतलब को नहीं समझ पाता है। वह एक खोज कर रहा होता है। वह अपने में एक व्यस्त व्यक्तित्व जान पड़ता है लेकिन शायद वह अपने में पूरी तरह निर्णय लेने में असक्षम होता है। वास्तव में, सारे कार्यों, त्याग या सफलताओं से परे, जिन बातों को हम अपने हृदय में वहन करते हैं, वे हमारी खुशी हेतु महत्वपूर्ण होती हैं। एक जहाज खुले समुद्र में अपनी यात्रा हेतु आगे बढ़ सकता है, उस जहाज की देख-रेख करने वाले अपने अपने अद्वितीय हो सकते हैं लेकिन यात्रा में निकलने हेतु उस जहाज को अपने लंगर को छोड़ने की जरुरत है जिससे वह बंधा हुआ है, यदि ऐसा नहीं होता तो वह कभी आगे नहीं बढ़ेगा। वह व्यक्ति अपने में आलीशान जहाज की भांति है लेकिन वह अपने बंदरगाह में खड़ा रहता है।

पोप ने कहा कि येसु राह में आगे बढ़ रहे होते हैं, और वह युवक दौड़ता हुआ उनसे मिलने आता है। वह उनके सामने घुटने टेकता और उनसे पूछता है, “भले गुरू, अनंत जीवन पाने के लिए मुझे क्या करना चाहिएॽ” उन्होंने कहा कि हम यहाँ क्रिया पर ध्यान दें, “अनंत जीवन पाने के लिए क्या करना चाहिए।”

चूँकि संहिता के अनुपालन में उसे खुशी और बचाए जाने की निश्चितता नहीं होती अतः वह अपने स्वामी येसु की ओर आता है। हमारे लिए यहाँ आश्चर्य की बात यह है कि वह व्यक्ति मुक्त में मिलने वाले दान को नहीं समझता है। उसे सारी चीजें कार्य के हिसाब से हासिल किये जाने-सी लगती हैं, मानो सारी चीजें कर्तव्य में निहित हैं। उसके लिए, अनन्त जीवन एक विरासत है, जो प्रतिबद्धताओं के सावधानीपूर्वक पालन से, अधिकार स्वरुप हासिल किया जा सकता है। लेकिन इस तरह से जीये गये जीवन में, जो निश्चित रूप से भलाई हेतु है, प्रेम का स्थान कहाँ रह जाता हैॽ

येसु हमें देखते हैं
पोप ने कहा कि हमेशा की भांति, येसु अपने दिखने से परे जाते हैं। एक तरफ येसु के सामने खड़े उस व्यक्ति में हम व्याप्त अच्छाइयों को देखते हैं तो वहीं येसु इससे आगे बढ़ते हुए उसके अंदर झांककर देखते हैं। हम येसु में उसके प्रति उमड़ते प्रेम को देखते हैं। यहाँ संत मारकुस के द्वारा उपयोग किया गया क्रिया, “उसे देखते हुए” अपने में महत्वपूर्ण है। येसु खासकर हम सभों के अंदर झांककर देखते हैं, हम जैसे भी हैं वे हमें प्रेम करते हैं। वास्तव में, वे उस व्यक्ति के अंदर क्या पाते हैंॽ येसु हम सभों के अंदर देखते हुए क्या पाते हैं, हमारे पापों और हमारे तुत्रियों के बावजूद वे हमें प्रेम करते हैं। वे हमारे टूटेपन को देखते हैं, हम जो कुछ भी हैं वे हमें वैसे ही प्रेम करने की चाह रखते हैं।

सच्ची खुशी का अनुभव
पोप फ्रांसिस ने कहा कि उसकी ओर देखते हुए, उसके “हृदय में प्रेम” उमंड पड़ता है। येसु उस व्यक्ति को अपना अनुसरण करने हेतु निमंत्रण देने के पहले ही प्रेम करने लगते हैं। वह जैसे है वे उसे वैसे ही प्रेम करते हैं। येसु का प्रेम लिए मुफ्त है ठीक उस व्यक्ति के तर्क-वितर्क के विपरीत जैसे वह अपने में प्राप्त करने की चाह रखता है। हम अपने में सच्ची खुशी का अनुभव तब करते हैं जब हम अपने में इस बात का एहसास करते हैं कि हमें भी वैसे ही मुफ्त ईश्वरीय कृपा में प्रेम किया जाता है। यह हमारे संबंधों के संग भी लागू होता है- यदि हम अपने लिए प्रेम की भीख मांगते या उसे खरीदना चाहते हैं तो वैसे संबंध हमें कभी खुशी प्रदान नहीं करते हैं।

येसु हमें परिवर्तन का आहृवान करते हैं
पोप ने कहा कि येसु उस व्यक्ति को अपना जीवन जीने के तरीके और ईश्वर के संग अपने संबंध के बारे परिवर्तन लाने को कहते हैं। येसु उसकी ओर देखते हुए कुछ बातों की कमी को पाते हैं, जैसे की हम सभों में होता है। यह हम सभों के हृदय में प्रेम किये जाने की कमी है। यह एक घाव है जो मानव के रुप में हम सभों के जीवन में व्याप्त रहता है, उस घाव से होकर प्रेम को हम पार होता पाते हैं। इस कमी पर विजय होने लिए हम हमें पहचान, प्रेम, सोच “खरीदने” की आवश्यकता नहीं है, इसके बदले हमें अपनी उन सारी चीजों को जो हमें नीचे की ओर खींचती हैं बेचने की जरूरत है, जिससे हमारे हृदय हलके हो सकें। हमें उन्हें अपने में लेने की नहीं बल्कि गरीबों को, दूसरों को देने, बांटने की आवश्यकता है।

येसु का निमंत्रण
अंत में येसु उसे अपने में अकेले रहने का निमंत्रण देते हैं। वे उसे अपने पीछे आने, अपने संग एक संबंध में प्रवेश करने को कहते हैं। वास्तव में, केवल ऐसा करने के द्वारा वह अपनी चिंतामय स्थिति से बाहर निकल सकता है। हम अपने नाम को केवल एक संबंध में सुनते हैं जहाँ कोई हमें पुकारता है। यदि हम अपने में अकेले रहते तो हम कभी अपने नाम को नहीं सुनते हैं, और हम उस “व्यक्ति” की भांति ही गुमनाम बने रहते हैं। शायद आज, अपनी आत्म-निर्भरता और व्यक्तिगातवाद की एक संस्कृति में जीवनयापन करने के कारण हम अपने को अधिक नखुश पाते हैं, हम किसी के द्वारा अपने नाम को पुकारा जाता हुआ नहीं सुनते हैं जो हमें शर्तहीन प्रेम करता हो।