पोप फ्राँसिस: एक भाईचारा समाज हर विकलांगता और कमज़ोरी के लिए जगह बनाना जानता है
पोप ने वैश्विक शैक्षिक संधि से प्रेरित इकोल्स डे वी(एस) परियोजना के प्रवर्तकों से मुलाकात की। केवल मानव व्यक्ति को केंद्रीयता बहाल करके ही हम वास्तव में न्यायपूर्ण और सहायक समाज का निर्माण कर पाएंगे, खासकर युवा लोगों के लिए।
पोप फ्राँसिस ने शुक्रवार को वाटिकन में फ्रांस से आये वैश्विक शैक्षिक संधि से प्रेरित "इकोल्स डे वी(एस)" परियोजना के प्रवर्तकों का हार्दिक स्वागत किया जो, चार्टर्स के धर्माध्यक्ष फिलिप क्रिस्टोरी के साथ वाटिकन आये हुए हैं। संत पापा ने कहा कि सुसमाचार और कलीसिया की सामाजिक शिक्षा पर केंद्रित उनकी निर्माण परियोजना, एक मौलिक सत्य को उजागर करती है: प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह कितना भी नाजुक क्यों न हो, एक आंतरिक मूल्य का वाहक है और हमें "प्रत्येक व्यक्ति को एक अद्वितीय और अपूरणीय व्यक्ति के रूप में पहचानने" के लिए कहा जाता है। (फ्रातेल्ली तुत्ती, 98)
पोप ने कहा कि प्रत्येक मानव जीवन में एक अविभाज्य गरिमा होती है। कोई भी बेकार नहीं है, कोई भी अयोग्य नहीं है। प्रत्येक अस्तित्व ईश्वर की ओर से एक उपहार है जिसका प्यार और सम्मान के साथ स्वागत किया जाना चाहिए। संत पापा ने प्रतिबद्धता के साथ इसकी घोषणा करने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
येसु के पदचिन्हों पर चलें
पोप ने येसु का उदाहरण देते हुए कहा कि येसु हमेशा बीमारों, तिरस्कृतों, तथा अपने समय के समाज से बहिष्कृत लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया। और उन्होंने कुष्ठ रोगियों को छुआ, हाशिए पर पड़े लोगों से बात की, और उन लोगों का प्रेम से स्वागत किया जिनके लिए समाज में कोई स्थान नहीं था। येसु उन लोगों के साथ सीधे संपर्क में आते हैं, जो विकलांगता के साथ रहते हैं, क्योंकि इसे, किसी भी प्रकार की दुर्बलता की तरह, नजरअंदाज या अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। संत पापा ने कहा कि येसु न केवल उनके संपर्क में आते हैं लेकिन उनके अनुभव का अर्थ भी बदल देते हैं; वास्तव में, उनके लिए, प्रत्येक मानवीय स्थिति, यहां तक कि मजबूत सीमाओं से चिह्नित, एक विलक्षण संबंध, ईश्वर के साथ एक विलक्षण संबंध बनाने का निमंत्रण है जो लोगों को फिर से समृद्ध बनाता है। ईश्वर के साथ सम्बन्ध लोगों को सदैव खिलने में मदद करता है।
एक खुली और मिलनसार कलीसिया
पोप ने कहा कि वे हर किसी का उसकी कमज़ोरी के साथ स्वागत करके और रिश्ते बनाकर, उस मिलनसार कलीसिया का प्रतीक बन जाते हैं जिसकी वे अक्सर आशा करते हैं, एक खुली एवं स्वागत करने वाली कलीसिया, जो हर किसी के करीब आने में सक्षम है और जो लोग पीड़ित हैं, कोमलता के साथ उनके घावों को भरने में सक्षम है, दुलार करने में सक्षम है जो स्नेह से वंचित हैं और जो जमीन पर गिर गए हैं उन्हें उठाने के लिए। संत पापा ने कहा कि केवल एक ही स्थिति में किसी व्यक्ति को नीचे देखना जायज़ है, उसे उठने में मदद करने की स्थिति में।
पोप ने कहा कि युवा लोग, विशेषकर अपनी सीमाओं के बावजूद, अप्रत्याशित क्षमता से भरे होते हैं। कलीसिया में उनके लिए एसा स्थान मिले, जहां वे स्वयं को पूर्णतः अभिव्यक्त कर सकें। संत पा ने कहा, “हमें उनके सपनों के लिए जगह बनानी होगी, उनका स्वागत करना होगा और उनमें आशा का संचार करना होगा। आपकी प्रतिबद्धता उन्हें समाज में उनकी एक अद्वितीय भूमिका और उनके जीवन का अर्थ जानने का अवसर देती है।”
करुणा और भ्रातृ प्रेम का विकास
पोप ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उनकी परियोजना वैश्विक शैक्षिक समझौते में प्रस्तावित शिक्षा के दृष्टिकोण के अनुरूप है: एक समग्र शिक्षा जो केवल ज्ञान के प्रसारण तक सीमित नहीं है, बल्कि करुणा और भ्रातृत्वपूर्ण प्रेम के लिए सक्षम पुरुषों और महिलाओं का निर्माण करना चाहती है। “इस तरह आप एक ऐसी शिक्षा में योगदान देते हैं जो भविष्य को तैयार करती है, तथा सक्षम पेशेवरों के अलावा, परिपक्व वयस्कों का निर्माण करती है जो सुसमाचार से ओतप्रोत एक अधिक सुन्दर और अधिक मानवीय दुनिया के शिल्पकार होंगे।”
मानव को केन्द्रीयता प्रदान करना
पोप ने आशा के इस जयंती वर्ष में, उन्हें दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। संत पापा ने कहा कि केवल मानव व्यक्ति को केन्द्रीयता प्रदान करके, उसके आध्यात्मिक आयामों को एकीकृत करके ही हम एक सच्चे न्यायपूर्ण और सहायक समाज का निर्माण करने में सक्षम होंगे। आपकी पहल इस आकांक्षा का एक ठोस प्रत्युत्तर है: यह विकलांगता या दुर्बलता के कारण हाशिए पर पड़े सभी लोगों को एक भाईचारे भरे और आनंदमय समुदाय में उनका स्थान पुनः दिलाती है। आपकी प्रतिबद्धता सबसे कमजोर लोगों के पक्ष में अन्य पहलों को प्रेरित करेगी और आपकी कार्रवाई समग्र शिक्षा की संभावनाओं को खोलेगी, जिसकी युवा पीढ़ी को तत्काल आवश्यकता है।