पोप : नॉरमैंडी सालगिराह पर शांति हेतु पत्र

बेयॉक्स और लिसीयूक्स के धर्माध्य़क्ष जैक्स हैबर्ट को संबोधित एक पत्र में, पोप फ्रांसिस ने नॉरमैंडी में मित्र देशों की सेनाओं के उतरने की 80वीं वर्षगांठ का स्मरण किया।

06 जून 1944 को नॉरमैंडी में मित्र देशों की सेनाओं को शांति स्थापना हेतु उतारे जाने की याद करते हुए, 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर पोप ने एक शांति पत्र प्रेषित किया। यह पत्र धर्मसंघियों, नागर और सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति में बेयाक्स के महागिरजागर में पढ़ा गया।

पोप फ्रांसिस ने अपने पत्र पर एकजुटता सहयोग और सैन्य प्रयासों पर चिंतन किया जिसके द्वारा यूरोप को स्वतंत्रता हासिल हुई जिसके लिए एक बृहद बलिदान करना पड़ा। उस घटना की याद करते हुए संत पापा ने लिखा “यह सैन्य उतराव सामान्य रूप से भयानक वैश्विक आपदा की याद दिलाती है, जहां बहुत सारे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को कष्ट सहना पड़ा, इतने सारे परिवार बिखर गए और इतना विनाश हुआ।”

पोप ने नॉरमैंडी के शहरों- कैन, ले हावरे, सेंट-लो, चेरबर्ग, फ्लेर्स, रूएन, लिसीयुक्स, फलाइस, अर्जेंटन केनकी के साथ और बहुत से दूसरे शहरों की याद की जो वहाँ के असंख्य निर्दोषों के साथ पूरी तरह विनाश का शिकार हुए। वे जो बच गये उन्हें अत्यत कष्ट झेलना पड़ा। संत पापा ने युद्ध को स्पष्ट रूप से निंदनीय घोषित करते हुए और उसकी पुनर्वृत्ति न हो अतः इसके लिए इन  घटनाओं को याद रखने के महत्व पर बल दिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ को 1965 में भेजे गये, संत पापा पौल 6वें की अपील “युद्ध कभी न हो” को दुहराते हुए संत पापा फ्रांसिस ने अतीत की गलतियों पर दुःख और अपनी चिंता व्यक्त की कि देशों के मध्य युद्ध सामान्य रुप से बढ़ती जा रही है। 

“यह वास्तव में चिंता की विषय है कि एक सामान्यीकृत संघर्ष की परिकल्पना पर पुनः गंभीरता से विचार किया जा रहा है, लोग धीरे-धीरे इस अस्वीकार्य घटना से सहज हो रहे हैं। लोग शांति चाहते हैं। वे स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि की स्थिति चाहते हैं जहाँ हर कोई शांति से अपने कर्तव्य और भविष्य को संवार सके”,  उन्होंने लिखा। संत पापा ने वैचारिक, राष्ट्रवादी या आर्थिक महत्वाकांक्षाओं की निंदा की जो इस संभावना को खतरे में डालती हैं। उन्होंने इसे मानवता के खिलाफ एक गंभीर दोष और ईश्वर के सम्मुख एक पाप बताया।

पोप ने उन लोगों के प्रार्थना की अपील की जो युद्धों को बढ़वा देते हैं। “आइए हम उन व्यक्ति के लिए प्रार्थना करें जो युद्ध की चाह रखते हैं, वे जो उसकी शुरूआत करते, इसका विचारहीन आग लगाते, इसे बनाये रखते और इसे अनावश्यक रुप से लम्बा खींचते या इसमें अपना लाभ देखते हैं। ईश्वर उनके हृदयों को प्रकाशित करें, वे उन्हें युद्ध के दर्भाग्यपूर्ण परिणामों को जानने में मदद करें।” उन्होंने इस बात की याद दिलाते हुए कि शांति के स्थापक ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे शांति के लिए भी प्रार्थना की।

शांति स्थापना करने वाले शांतिपूर्ण मुलाकातों और संवाद के माध्यम अपने प्रयासों को जारी रखे,  संत पापा ने कहा, “हम अपने प्रयासों में अथक परिश्रम करते रहें।” अंत में संत पापा ने युद्ध से पीड़ित लोगों के लिए प्रार्थना का आहृवान किया। “हम युद्ध के शिकार लोगों के लिए प्रार्थना करें, अतीत और वर्तमान के युद्ध। ईश्वर उन सभों को अपने राज्य में प्रवेश पाने दें जो इस भयंकार लड़ाई में मारे गये हैं, वे पीड़ितों की मदद करें।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे गरीबों और कमजोरों, बुजूर्गों, नारियों और बच्चों को इन सभी त्रसदियों का सदैव इसका पहला शिकार होना पड़ता है।