दादा-दादी और बुजूर्गों के लिए 4थे विश्व दिवस पर पोप का संदेश

पोप फ्राँसिस ने दादा-दादी और बुजूर्गों के लिए 4थे विश्व दिवस के लिए एक संदेश प्रकाशित किया है। इसे 28 जुलाई को मनाया जाएगा। पोप के संदेश की विषयवस्तु है: "बुढ़ापे में मुझे मत त्यागो।"

पोप ने संदेश में लिखा, “ईश्वर अपने बच्चों को कभी नहीं त्यागते, कभी नहीं। यहाँ तक कि जब हम बूढ़े हो जाते और हमारी शक्तियाँ कमजोर हो जाती हैं, जब हमारे बाल सफेद हो जाते और समाज में हमारी भूमिकाएँ कम हो जाती है, जब हमारा जीवन कम उत्पादक हो जाता और बेकार दिखने का खतरा मंडराता है। लेकिन ईश्वर दिखावे पर ध्यान नहीं देते। (1 सामु. 16:7); ईश्वर उन लोगों का तिरस्कार नहीं करते जो निष्फल दिखाई देते हैं। ईश्वर किसी भी पत्थर को दरकिनार नहीं करते क्योंकि सबसे पुराने पत्थर सुदृढ़ नींव होते हैं जिनपर नये पत्थर रखे जा सकते हैं ताकि आध्यात्मिक भवन का निर्माण हो सके।”

अकेलापन का डर
पोप ने कहा, “पूरा पवित्र धर्मग्रंथ प्रभु के वफादार प्रेम की कहानी है। यह हमें सांत्वना देनेवाली निश्चितता प्रदान करता है कि ईश्वर लगातार हम पर अपनी दया दिखाते हैं, हमेशा, जीवन के हर चरण में, चाहे हम किसी भी स्थिति में केयों न हों, यहाँ तक कि हमारे विश्वासघात में भी।” अतः हम निश्चिंत हो सकते हैं कि बुढ़ापे में वे  हमारे अधिक करीब होंगे, क्योंकि, बाइबल में, बूढ़ा होना आशीर्वाद का चिन्ह है।

स्तोत्र ग्रंथ में हम प्रभु से एक जोरदार अपील को पाते हैं, “अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ मुझे न त्याग।” (स्तोत्र 71:9)

यह शब्द हमें येसु की पीड़ा की याद दिलाते हैं तो पिता को पुकार कर कहते हैं, मेरे ईश्वर मेरे ईश्वर तूने मुझे क्यों त्याग दिया?” (मती. 27:46) अक्सर, बुजुर्ग व्यक्तियों और दादा-दादी के रूप में अकेलापन हमारे जीवन का अंधकारमय साथी है।

पोप याद करते हैं कि एक धर्माध्यक्ष के रूप में वे बोयनोस आयरिस में वृद्धा आश्रम का दौर करते थे। जहाँ उन्होंने देखा था कि कुछ लोगों से लम्बे समय तक कोई भेंट करने नहीं आता था।

पोप ने गौर किया कि अकेलापन के कई कारण हैं, जैसे- गरीबी, पलायन, युद्ध, गलत धारणा आदि। गरीबी के कारण लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं और बुजूर्ग घर में अकेले छूट जाते, उसी तरह युद्धग्रस्त देशों में जवान और वयस्क लड़ाई में शामिल हो जाते हैं। कई जगहों पर गलत धारणाओं के कारण भी बुजूर्गों को छोड़ दिया जाता है। संत पापा ने कहा कि इस मानसिकता से लड़ना होगा और इसे ख़त्म करना होगा। यह उन आधारहीन पूर्वाग्रहों में से एक है जिनसे ख्रीस्तीय धर्म ने हमें मुक्त किया है, फिर भी यह युवाओं और बुजुर्गों के बीच पीढ़ीगत संघर्ष को बढ़ावा देता है।

बाईबिल में रूथ की कहानी को याद करते हुए पोप ने कहा कि उनकी स्वतंत्रता और साहस हमें नया रास्ता अपनाने का निमंत्रण देती है। आइए, हम उनके पदचिन्हों पर चलें। अपनी आदतों को बदलने से न डरें और अपने बुजुर्गों के लिए एक अलग तरह के भविष्य की कल्पना करें। हम उन सभी लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें, जो बड़े त्याग के साथ, रूथ के उदाहरण पर चलते हैं, एक वृद्ध व्यक्ति की देखभाल करते हुए अथवा उन रिश्तेदारों या परिचितों के साथ अपनी दैनिक निकटता प्रदर्शित करते हुए जिनके पास अब कोई नहीं आता। संत पापा ने याद किया कि बुजूर्गों के निकट रहनेवालों को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उन्होंने कहा, रूथ, जिसने नाओमी के करीब रहना चुना, उन्हें फिर एक खुशहाल शादी, एक परिवार, एक नए घर का आशीर्वाद मिला। बुजुर्गों के करीब रहने और परिवार, समाज एवं कलीसिया में उनकी अनूठी भूमिका को स्वीकार करने से, हम स्वयं कई उपहार, कई अनुग्रह, कई आशीर्वाद प्राप्त करेंगे!

अतः पोप ने सभी विश्वासियों को आमंत्रित करते हुए कहा, इस चौथे विश्व दिवस पर, आइए हम अपने दादा-दादी और अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों के प्रति अपना कोमल प्रेम दिखाएँ। आइए, हम उन लोगों के साथ समय बिताएँ जो निराश हैं और अब एक अलग भविष्य की संभावना में आशा नहीं रखते।

बुजूर्गों को सम्बोधित कर पोप ने कहा, “आप सभी, प्रिय दादा-दादी और बुजुर्ग को एवं उन सभी को जो आपके करीब हैं, मैं अपनी प्रार्थनाओं के साथ अपना आशीर्वाद भेजता हूँ। और मैं आपसे अनुरोध करता हूँ, कृपया, मेरे लिए प्रार्थना करना न भूलें।”