गर्भपात को शामिल करने के वोट से 'दुखी' यूरोपीय धर्माध्यक्ष
यूरोपीय संघ के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने यूरोपीय संघ में गर्भपात की पहुँच को शामिल करने के वोट पर गहन दुख और चिन्ता जताई है तथा आगामी यूरोपीय चुनावों में जिम्मेदारी से मतदान करने के लिए विवेक विकसित करने और शिक्षित करने की अपील की है।
यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर में गर्भपात की पहुंच को शामिल करने के पक्ष में यूरोपीय संसद के वोट के बाद, यूरोपीय संघ के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन कॉमेक्स के महासचिव, फादर मैनुअल एनरिक बैरियोस प्रीतो, ने आगामी चुनावों में ज़िम्मेदारी से मतदान के विवेक की अपील की है। प्रस्ताव पर मतदान के विरोध में यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षों द्वारा हाल ही में प्रस्तुत किए गए आधारों का स्मरण दिलाया गया था।
उन्होंने कहा, "यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर में गर्भपात को एक अधिकार के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव के पक्ष में आज यूरोपीय संसद में हुआ मतदान स्पष्ट रूप से हमें दुखी करता है।"
बैलजियम की राजधानी ब्रसल्स में गुरुवार को यूरोपीय संसद के सदस्यों ने 163 के मुकाबले 373 मतों के साथ यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर में गर्भपात की पहुंच को शामिल करने के प्रस्ताव पर मतदान किया।
फादर बारियोस प्रीतो ने इस प्रस्ताव का विरोध करने के लिए मतदान से पहले यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षों द्वारा अपने बयान में दिए गए तर्कों का स्मरण दिलाया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि इसके विरोध का मुख्य आधार यह है कि गर्भपात को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता, क्योंकि "मौलिक अधिकार" "जीवन का अधिकार" है।
उन्होंने रेखांकित किया कि इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए, खासकर तब जब व्यक्ति असुरक्षित हों, जैसे कि अपनी मां के गर्भ में पल रहा अजन्मा बच्चा।
एक अन्य तर्क महिलाओं को बढ़ावा देने और गर्भपात को प्रोत्साहन देने को एक साथ जोड़ने की प्रवृत्ति से जुड़ा था, लेकिन, यूरोपीय संघ धर्माध्यक्षों ने तर्क दिया है कि, "इन दो चीजों का एक दूसरे से कोई लेना-देना नहीं है।"
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि तीसरा तर्क यह था कि यूरोपीय संघ को विचारधाराएं नहीं थोपनी चाहिए, विशेष रूप से, एक निश्चित तरीके से मानव व्यक्ति, यौन सम्बन्ध और परिवार के सम्बन्ध में। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षों ने इस बात की पुनरावृत्ति की कि "चार्टर में कुछ ऐसे अधिकारों को शामिल नहीं किया जा सकता है जो विभाजनकारी हैं और सभी द्वारा स्वीकार नहीं किए गए हैं।"
उन्होंने सभी से अपील की कि आगामी चुनावों में वे विवेकपूर्ण और ज़िम्मेदाराना तौर पर अपना कीमती मत प्रदान करें जिसमें जीवन की गरिमा और प्रतिष्ठा का सर्वाधिक ख्याल रखा जाये। उन्होंने कहा कि समय के अन्तराल में कलीसिया का कार्य "लोगों को प्रशिक्षित और उन्हें शिक्षित करना, जीवन की देखभाल के महत्व पर अपना संदेश व्यक्त करना तथा उसका प्रचार-प्रसार करना रहा है।"