बिहार में कम सफर की गई राहें

सिस्टर रोजलिन काराकट्टू ने साहसपूर्वक भारत के बिहार में मुसहर लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए परिचितों को छोड़ दिया, जहाँ वह सामाजिक असमानताओं को खत्म करने, उनके जीवनस्तर को ऊपर उठाने और उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा को एक प्रभावी उपकरण के रूप में उपयोग करके महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रही हैं।

अधिकांश लोगों के लिए, बिहार के गया शहर की यात्रा, ज्ञान के वृक्ष, बोधि वृक्ष की छाया के नीचे आध्यात्मिक परिवर्तन के साधन के रूप में होती है। हालाँकि, गया के लिए मेरी यात्रा मुसहर (शाब्दिक रूप से चूहे खानेवाले) लोगों के बीच सिस्टर रोजलिन की प्रेरिताई को देखना था, जिसने मुझे एक आंतरिक परिवर्तन और जीवनभर का अनुभव दिया तथा मैंने हाशिए पर जीवनयापन करनेवाले लोगों की गरीबी को महसूस किया।
जनवरी 2023 को मैंने कासीचक की यात्रा की, जहाँ मुसहर सबसे निम्न जाति के लोग माने जाते हैं और वे नगर के बाह्य इलाकों में जीने के लिए मजबूर हैं। यह एक अविस्मरणीय अनुभव था। गाँव और उसके आस-पास का वातावरण देखकर मैं आवाक् रह गई। मैंने पहले ही सुन लिया था कि हमारी धर्मबहनें उन्हें किस तरह सेवा देती हैं; लेकिन अब पहली बार मैं अपनी ही आँखों से वहाँ की परिस्थिति एवं जीवनशैली को देख रही थी।

हम जैसे ही गाँव पहुँचे, बच्चे सीधे सिस्टर रोसलिन की ओर दौड़े। चूँकि मैं वहाँ के लिए नई थी, मैं एक अजनबी की तरह खड़ी होकर, बच्चों, महिलाओं और आसपास देखती रही। मैं देख सकती थी कि वहाँ के लोग किस गरीबी और अस्वास्थ्यकर हालात में थे।  

बच्चों के शरीर में न्यूनतम कपड़े थे। वे कुपोषित, गंदे और अव्यवस्थित लग रहे थे। अजनबी लोगों से असहज महसूस करती हुई महिलाएँ अपने चेहरे साड़ी से छिपा रही थीं। इन सब के बीच मैंने गौर किया कि सिस्टर रोसलिन को देखकर बच्चों के चेहरे पर एक रोशनी उभर आयी। वे उनसे सहज महसूस करते थे क्योंकि उनकी बेबसी में वे एक आशा की किरण थीं।  

सिस्टर रोसलिन उस गाँव में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सेवा देती हैं, आवाजहीन लोगों की आवाज बनतीं, जेल में महिलाओं से मुलाकात करतीं और बच्चों को शिक्षा देती हैं। गया में वे वंचित बच्चों को शिक्षा देतीं और महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण केंद्रों का समन्वय करती हैं।

इसके अलावा, वे दूसरे क्षेत्रों का भ्रमण भी करती हैं ताकि लोगों की आवश्यकताओं को समझ सकें। इसी तरह के भ्रमण के दौरान एक दिन काजवाटी के दर्जी सेंटर में उनकी मुलाकात, संगीता और उसके बेटे अभिषेक कुमार से हुई। आपस में बातचीत के दरमियान उन्हें मुसहर लोगों की स्थिति की जानकारी मिली। उनके बीच काम करने की उत्सुकता ने उन्हें कुमार के साथ कासीचक जाने के लिए मजबूर किया।   

मुसहर लोग बिहार के सबसे गरीब आदिवासी लोग हैं। वे सामाजिक रूप से हाशिये पर जीवनयापन करते हैं, आर्थिक रूप से गरीब और राजनीतिक रूप से शोषित हैं। वे लम्बे समय से राज्य के सुदूर गाँवों में रह रहे हैं एवं अभी भी गरीबी, भूमिहीन, अभाव, कुपोषण, छूआ-छूत और अशिक्षा के शिकार हैं।  

आरम्भिक दिनों की एक यात्रा में सिस्टर रोजलिन ने स्थानीय लोगों से बातचीत की और मालूम किया कि करीब 200 बच्चे बिना पर्याप्त शैक्षिक अवसर के हैं। हालाँकि ये छात्र पहले से ही स्थानीय पब्लिक स्कूल में नामांकित थे, लेकिन उनकी शिक्षा घटिया थी, इस प्रकार वे जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल से वंचित थे। इन बच्चों के भविष्य की कल्पना करते हुए, मार्च 2022 में, सिस्टर रोजलीन ने अपनी पहुँच कार्यक्रम के माध्यम से उनके स्थान पर एक कक्षा खोला।

सिस्टर रोजलिन को दृढ़ विश्वास है कि शिक्षा एक सबसे शक्तिशाली साधन है जिसके द्वारा सामाजिक असमानताओं को दूर किया जा सकता है और लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाया जा सकता है। चूँकि गाँव में क्लास लेने के लिए कोई सुविधाजनक स्थान नहीं थे, बच्चों की शिक्षा को बिना किसी बाधा के जारी रखने के लिए, उन्हें आवश्यक चीजें प्रदान करने हेतु सिस्टर ने वित्त इकट्ठा किया। खुद बच्चों ने अपने भावी क्लास कमरे के निर्माण में सहयोग दिया। उन्होंने निर्माण सामग्री की ढुलाई की, नदी से बालू लाया। इस तरह उनकी सहायता से धर्मबहन को बच्चों की शिक्षा की लालसा को समझने में मदद मिली।  

जब क्लास कमरा का निर्माण पूरा हो गया, तब बच्चों की देखभाल में मदद करने के लिए उन्होंने अभिषेक कुमार को अपना सहायक नियुक्त किया। शैक्षणिक विषय के साथ-साथ बच्चे अपनी संस्कृति, अपने मौलिक अधिकार, सफाई आदि सीखते हैं, वे खेल, भाषण, चित्रकला और संगीत के माध्यम से अपनी प्रतिभा को निखारने की भी कोशिश करते हैं।

ये अभ्यास बच्चों में अपनी बात कहने का साहस पैदा करने में सहायक हैं। इन कक्षाओं में बच्चों को जो शिक्षा दी जा रही है उससे बच्चे अपने आपको एवं अपने समुदाय को बेहतर बना रहे हैं। मिस्टर कुमार जो एक हिन्दू हैं, अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं तथा ईश्वर के इस मिशन का हिस्सा होने के लिए आभारी हैं। बच्चे भी पूरे विश्वास के साथ पुष्टि करते हैं कि कड़ी मेहनत उनके जीवन को बदल सकती है और उनके और देश के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। सिस्टर रोजलीन उनकी माध्यमिक स्कूली शिक्षा पूरी करने और नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में दाखिला लेने तक उनकी सहायता करना चाहती है।

हालाँकि, जब काजीचक में सुधारात्मक कक्षा कार्यक्रम शुरू हुआ तो उन्हें सबसे पहले ऊंची जातियों की शत्रुता और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन सिस्टर रोजलीन वास्तव में वहाँ और आसपास के गांवों में बच्चों के जीवन में बदलाव ला रही हैं। उनके द्वारा स्थापित कार्यक्रम से उनका जीवन और पूरे समुदाय का भाग्य बदल रहा है। बच्चों की खुशी और आशा की अभिव्यक्ति, भविष्य में सफल होने की उनकी इच्छा और जीवन की समस्याओं का साहसपूर्वक सामना करने की उनकी तैयारी को दर्शाती है।