1ला दिन : “इंडोनेशिया में पोप फ्राँसिस का स्वागत”

चार प्रशांत देशों की अपनी प्रेरितिक यात्रा के पहले चरण के लिए मंगलवार की सुबह जकार्ता पहुंचने पर, राष्ट्रपति भवन में आधिकारिक स्वागत समारोह की पूर्व संध्या पर बच्चों और प्रवासियों ने पोप फ्राँसिस का स्वागत किया।

इंडोनेशिया के लगभग 17,500 द्वीपों में से केवल दो द्वीपों से आनेवाली पांच वर्षीय मेरी अपनी विशिष्ट जावा पोशाक में और पापुआ की 10 वर्षीय इफ्रिम मंगलवार की सुबह पोप फ्राँसिस का स्वागत करने के लिए जकार्ता हवाई अड्डे पर इंडोनेशियाई गार्ड ऑफ ऑनर के समक्ष खड़ी थीं। डरते-डरते उन्होंने उन्हें फूलों का एक बड़ा गुलदस्ता भेंट किया और कहा कि वे इस अविश्वसनीय रूप से बहुलवादी और विविध राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के लिए एक अति स्वागत योग्य अतिथि हैं। इंडोनेशिया में 1,300 से अधिक जातीय समूह और लगभग 719 विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं।

काथलिक 280 मिलियन की आबादी का केवल करीब 3 प्रतिशत हैं, जिसमें मुख्य रूप से मुस्लिम हैं, इंडोनेशिया को अपनी विविधता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर गर्व है, जैसा कि इसके संस्थापक "पंचशील" सिद्धांतों का आदेश है, और जैसा कि इंडोनेशियाई कार्डिनल इग्नासियो सुहारियो ने यात्रा से ठीक पहले बताया: "केवल काथलिक ही नहीं हैं जो पोप की यात्रा का उत्साहपूर्वक स्वागत करते हैं, बल्कि अन्य धार्मिक समुदायों के भाई और बहनें भी हैं।"

अन्य धार्मिक समुदायों के भाई-बहनों, सभी क्षेत्रों के सद्भावनापूर्ण पुरुषों और महिलाओं, राजनीतिक नेताओं और नीति-निर्माताओं से वे अथक रूप से एक मानव परिवार के सबसे छोटे और सबसे कमजोर लोगों के प्रति प्रतिबद्धता और देखभाल की अपील करते हैं।

आप्रवासी और शरणार्थी
शायद यही कारण है कि इस लंबी और जटिल 45वीं विदेश प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन उनका स्वागत करनेवाले सबसे पहले व्यक्तियों में कुछ अनाथों, आप्रवासियों एवं शरणार्थियों का एक दल था - जो विश्वास, शांति के लिए अंतरधार्मिक संवाद, सृष्टि की देखभाल की आवश्यकता और परिधि में उनकी उपस्थिति की बात करता है।

आधिकारिक समारोह की चकाचौंध से दूर, यह समूह जकार्ता के उस मठ में इकट्ठा हुआ, जहाँ पोप ठहरे हुए हैं। इस समूह में म्यांमार के कुछ रोहिंग्याओं सहित क्षेत्र के विभिन्न देशों के पुरुष और महिलाएँ शामिल हैं; वे वहाँ कहने आए थे : “आने के लिए धन्यवाद”, “धन्यवाद” (मैं कल्पना करती हूँ) “हमारी ओर से अथक बोलने के लिए, हमारे जीवन की रक्षा हेतु लड़ने के लिए, और हमेशा हमारी गरिमा को बनाए रखने के लिए।”