पोप लियो : भूमध्यसागर की युवा समिति आशा का चिन्ह

पोप लियो 14वें ने भूमध्यसागर युवा समिति के सदस्यों को उम्मीद की किरण बनने के लिए प्रोत्साहित किया है। उन्होंने कहा है कि उनके “उच्च आदर्श और रचनात्मकता” से वे भूमध्य क्षेत्र और दुनियाभर में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
पोप लियो 14वें ने शुक्रवार को भूमध्यसागर युवा समिति के सदस्यों से कहा कि वे इस बात के प्रमाण हैं कि संवाद संभव है; मतभेद हमें समृद्ध बनाते हैं, न कि संघर्ष के कारण बनते; और दूसरे लोग हमेशा हमारे भाई-बहन होते हैं, कभी भी पराया या दुश्मन नहीं।
भूमध्यसागर से सटे देशों के प्रतिनिधियों से बना यह समिति युवाओं को अपनी बात कहने और सरकारी अधिकारियों के साथ संवाद के माध्यम से पहल करने का अवसर प्रदान करने के लिए बनाया गया है।
एक परियोजना और एक चिन्ह
पोप लियो ने वाटिकन में समिति से मुलाकात के दौरान कहा, “आपकी समिति एक परियोजना भी है और एक प्रतीक भी।” उन्होंने सबसे पहले पोप फ्राँसिस द्वारा उन्हें दिए गए परियोजना का जिक्र किया, “टूटे हुए रिश्तों को फिर से जोड़ना, हिंसा से तबाह शहरों को फिर से बसाना, रेगिस्तान जैसी सूखी जगह को हरा-भरा बनाना, निराश लोगों में उम्मीद जगाना और जो लोग सिर्फ अपने बारे सोचते हैं, उन्हें अपने भाई-बहनों से नहीं डरने के लिए प्रोत्साहित करना।”
इतालवी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बोलते हुए, पोप ने आगे कहा कि युवा लोग खुद एक प्रतीक हैं: “एक ऐसी पीढ़ी के प्रतीक जो बिना सोचे-समझे जो हो रहा है उसे नहीं मानती, जो आँखें मूंदकर नहीं देखती या दूसरों के पहले कदम उठाने का इंतजार नहीं करती।” पोप ने कहा, “आप एक ऐसी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक बेहतर भविष्य की कल्पना करती है और उसे बनाने में मदद करने का चुनाव करती है।”
आशा के चिन्ह, सुसमाचार के संदेशवाहक
संत पापा ने उन्हें येसु ख्रीस्त के साक्षी बनकर आशा के प्रतीक बने रहने और “उनके संदेश के प्रचारक” बनने के लिए कहा, खासकर, भूमध्य सागरीय क्षेत्र में, “जहाँ से प्रथम शिष्य निकले थे।”
उन्होंने कहा कि विश्वासियों के लिए भविष्य “एक-दूसरे को स्वीकार करने” का होगा, जो इस क्षेत्र की आध्यात्मिक विरासत पर आधारित होगी, और उन लोगों की ईशनिंदा को अस्वीकार करेंगी जो हिंसा और सशस्त्र संघर्ष को सही ठहराने के लिए इन परंपराओं के दुरुपयोग करते हैं।
शांति और एकता के बीज बोनेवाले
पोप ने कहा, “हमें प्रार्थना और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ, शांति के स्रोत और परंपराओं व संस्कृतियों के बीच आपसी समझ के माध्यम के रूप में कार्य करने के लिए भी कहा गया है।”
पोप लियो ने युवाओं से डरने के बजाय शांति के बीज बोने, धैर्य से एकता के कार्य करने, बेबस लोगों की आवाज बनने और जहां विश्वास की लौ और जीने की चाहत कम हो रही हो, वहाँ रोशनी और नमक बनने की भावुक अपील के साथ अपने संदेश समाप्त किए।