पोप : यूख्रारिस्त- कृतज्ञता, स्मृति और उपस्थिति

पोप फ्रांसिस ने रोम के संत लोतेरान महागिरजाघर में प्रभु के देह औऱ रक्त के महोत्वस का पर्व मनाते हुए मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए यादगारी, कृतज्ञता और उपस्थिति पर चिंतन किया।

पोप फ्रांसिस ने रोम के संत लातेरान महागिरजाघर में प्रभु के देह औऱ रक्त के महोत्वस का पर्व मनाते हुए मिस्सा बलिदान अर्पित किया।

पोप ने सुसमाचार संत मरकुस के अनुसार पवित्र यूख्रारिस्त की स्थापना पर चिंतन करते हुए इसके तीन रहस्यों- कृतज्ञता, स्मृति और उपस्थिति पर अपने चिंतन व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि  यूखारिस्त शब्द का अर्थ ईश्वर के दानों के लिए कृतज्ञता, धन्यवाद देना है। अतः रोटी की यह निशानी हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे जीवन का दैनिक आहार है, इसके द्वारा हम अपने को और अपना जो कुछ भी है, हमारा जीवन, हमारे कार्य, सफलताएं और असफलताएं उन्हें ईश्वर की वेदी के पास लाते हैं। इस संदर्भ में हम कुछ संस्कृतियों में गिरी हुई रोटी को उठकर उसका चुम्बन करने की प्रथा को पाते हैं जो हमें इस बात की याद दिलाती है यह हमारे लिए कितना मूल्यवान है जिसे फेंका नहीं जा सकता है यद्यपि यह गिर ही क्यों न जाये। अतः यूखारिस्त न केवल धर्मविधि के दौरान हमें निरंतर ईश्वर के उपहारों का स्वागत करते हुए उऩके लिए धन्यवाद देने को अग्रसर करता है बल्कि यह हमें रोज दिन के जीवन में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट को ऩिमंत्रण देता है। हम इसे कैसे करते हैंॽ

उदाहारण के लिए ईश्वर से मिले हुए उपहारों और गुणों को यूं ही व्यर्थ में खर्च न करना। उसी भांति हम उन्हें क्षमा करें और उनकी सहायता करें जो गलती करते और अपने कमजोरियों के कारण गिर जाते हैं। हम इस बात का अनुभव करें कि सारी चीजें उनकी ओर से हमें उपहार स्वरुप मिली हैं उनमें से कुछ भी न खोये, कोई पीछे न छूटे, और हर किसी को पुनः अपने जीवन में पैरों पर खड़ा होने का एक अवसर मिलें। यह हमें एक दूसरे को कृतज्ञता भरी निगाहों से ईश्वर के उपहार स्वरुप देखने में मदद करता है, हमें चाहिए कि हम अपने कार्यों को निष्ठा, प्रेम, सेवा की भावना से करें इस बात को पहचानते हुए कि यह हमारे लिए एक उपहार और प्रेरितिक कार्य है। हम सदैव उनकी मदद करें जो गिर हुए हैं, हम उन्हें उनके जीवन मे उठने हेतु मदद करें, यह हमारे प्रेरितिक कार्य है।

पोप फ्रांसिस ने कहा कि हम और अन्य कई चीजों को इसमें जोड़ सकते हैं, वे हमारे लिए य़ूख्रारिस्त में कृतज्ञता की भावना को व्यक्त करते हैं क्योंकि हम जो हैं और हम जो करते हैं, उन्हें यूख्रारिस्त में ईश्वर को अर्पित करते हैं।

यादगारी के बारे में पोप ने कहा कि ऱोटी की आशीष करने का अर्थ यादगारी है। हम क्या की स्मृति करते हैंॽ प्राचीन इस्रराएल के लिए यह मिस्र की गुलामी से मुक्ति की यादगारी और प्रतिज्ञात देश की ओर यात्रा करना था। हमारे लिए यह येसु ख्रीस्त के पास्का की यादगारी है, उनके दुःखभोग, पुनरूत्थान जिसके द्वारा उन्होंने हमें पाप और मृत्यु से मुक्ति दिलाई है। हम अपने जीवन के चीजों की याद करें, जीवन के सफलताओं की, अपने गलतियों की, येसु के द्वारा मिलने वाले सहायतापूर्ण हाथों की जहाँ वे हमें उठाते हैं, हमारे जीवन में उनकी उपस्थिति की याद करें।  

पोप ने कहा कि कुल लोग हैं जो कहते हैं कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल अपने लिए सोचना है, बिना दूसरों का ख्याल किया उन चीजों का आनंद उठाना जिन्हें हम चाहते हैं। यह स्वतंत्रता नहीं बल्कि गुलामी है जो अपने में गुप्त रुप से हमें और भी अधिक गुलाम बना देती है।  

स्वतंत्रता को हम अपनी सुरक्षा की चीजों में नहीं पाते हैं जहाँ हम अपने लिए धन संग्रहित करते हैं, न ही अपने सुस्तीपन में अपने को सारी चीजों से मुक्त रखते और व्यक्तिगतवाद में जीवन का आनंद लेते हैं। स्वतंत्रता को हम अंतिम व्यारी की कोठरी में पाते हैं जहाँ प्रेम से प्रेरित हम झुककर दूसरों की सेवा करते, बचाये गये लोगों की भांति।  

पोप ने कहा कि यूखारिस्त की रोटी सच्ची उपस्थिति है। यह हमें उस ईश्वर के बारे में बतलाती है जो दूर और ईर्ष्यालु नहीं बल्कि हमारे निकट मानवता से जुड़े हैं, ईश्वर जो हमारा परित्याग नहीं करते  बल्कि सदैव हमें खोजते हैं, हमारी प्रतिक्षा करते और हमारे साथ चलते हैं उस स्थिति तक भी जहाँ वे अपने को निसहाय पाते और अपने को हमारी हाथों में छोड़ देते हैं। यह सच्ची उपस्थिति हमें भी आपने भाई-बहनों के निकट आने को निमंत्रण देती है जहाँ हम प्रेम को पाते हैं।

हमारी दुनिया की इस रोटी की अति आवश्यकता है, इसकी खुशबू और सुगंध के साथ जहाँ हम कृतज्ञता, स्वतंत्रता और निकटता के भाव को पाते हैं। हम रोज दिन बहुत सी गलियों को देखते थे जहाँ से ताजी रोटी बनाने की खुशबू आती थी लेकिन युद्ध, स्वार्थ और उदासीनता के कारण वे सब ध्वस्त हो गये हैं। हमें  इस दुनिया में अच्छी, ताजी प्रेम की खुशबू भरी रोटी को लाने की अति आवश्यकता है। हमें निरंतर थके बिना आशा के साथ उसका पुनःनिर्माण करने की जरुरत है जिसे घृणा ने नष्ट कर दिया है।

यूखारिस्त की शोभा यात्रा इसकी एक निशानी होगी जिसे हम शीघ्र ही शुरू करेंगे। वेदी से हम येसु ख्रीस्त को हमारे शहर के घरों में ले जायेंगे। हम यह नुमाईश में नहीं करते हैं या अपने विश्वास को श्रेष्ट घोषित करने हेतु नहीं लेकिन सभों को निमंत्रण देने के लिए कि वे यूखारिस्त की रोटी में सहभागी हों, जिसमें येसु ने हमें नया जीवन दिया है। हम इस मनोभाव से अपनी शोभायात्रा करें।