पोप फ्रांसिस ने "प्रार्थना की पाठशाला" का किया उद्घाटन
रोम शहर के परिसर में स्थित रोम की एक पल्ली की भेंट कर पोप फ्राँसिस ने गुरुवार को प्रथम परमप्रदास ग्रहण करने की तैयारी कर रहे लगभग बच्चों को आशीर्वाद दिया, उनके अनगिनत सवालों का जवाब दिया तथा उन्हें विश्वासपूर्वक अच्छे और बुरे समय में प्रार्थना में ईश्वर की ओर अभिमुख होने के लिये प्रोत्साहित किया।
रोम शहर के परिसर में स्थित रोम की एक पल्ली की भेंट कर सन्त पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को प्रथम परमप्रदास ग्रहण करने की तैयारी कर रहे लगभग बच्चों को आशीर्वाद दिया, उनके अनगिनत सवालों का जवाब दिया तथा उन्हें विश्वासपूर्वक अच्छे और बुरे समय में प्रार्थना में ईश्वर की ओर अभिमुख होने के लिये प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर पोप फ्राँसिस ने बच्चों के संग लभग एक घण्टा व्यतीत कर "प्रार्थना की पाठशाला" का उद्घाटन किया। वस्तुतः, 2025 में मनाये जा रहे कलीसिया के जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में सन्त पापा फ्राँसिस ने सभी विश्वासियों को आमंत्रित किया है कि वे 2024 का वर्ष प्रार्थना में व्यतीत करें। इस सिलसिले में सन्त पापा फ्राँसिस विभिन्न समूहों का साक्षात्कार कर प्रार्थना के महत्व को प्रकाशित कर रहे हैं।
बच्चों के साथ विचारित विभिन्न विषयों में से, पोप फ्रांसिस ने सबसे पहले, माता-पिता, दोस्तों, शिक्षकों और धर्मशिक्षकों को "हर चीज के लिए धन्यवाद कहने" के महत्व पर ज़ोर दिया, तथापि उन्होंने उनसे कहा कि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना।
बच्चों से पोप ने कहा, "हर चीज़ के लिए धन्यवाद कहना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी के घर में प्रवेश करते हैं और धन्यवाद नहीं कहते हैं और फिर क्षमा करें, या उनका अभिवादन नहीं करते हैं, तो क्या यह अच्छा है?" इसलिए, उन्होंने कहा, पहला शब्द "धन्यवाद" होना चाहिये। इसके अलावा, कृतज्ञता दिखाने के लिए, उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि जब उचित हो तो अनुमति मांगें, और यह भी पहचानें कि कब माफी मांगनी है। उन्होंने कहा कि जीवन में "तीन शब्द अति महत्वपूर्ण हैं और वे हैं: धन्यवाद, अनुमति और क्षमा।"
पोप ने फिर बच्चों को परामर्श दिया कि अन्धकारपूर्ण समय में और कठिन परिस्थितियों में वे प्रार्थना करना न भूलें। उन्होंने कहा कि प्रार्थना हमारे जीवन का केन्द्रभूत विषय होना चाहिये। उन्होंने कहा, प्रार्थना में कभी कमी नहीं होनी चाहिए, यहां तक कि जीवन के "अंधेरे क्षणों" में भी "जब किसी की मृत्यु हो जाती है, जब कोई बेहोश हो जाता है, जब आप किसी दोस्त से बहस करते हैं" सब समय प्रार्थना करनी चाहिये।
सबसे मर्मस्पर्शी प्रश्नों में से एक ऐलिस नामक बालिका का था, जो स्वयं बीमारी से जूझ रही है, उसने पूछा, "बीमारी में मैं प्रभु को कैसे धन्यवाद दे सकती हूँ?" सन्त पापा उत्तर दिया, "अंधेरे क्षणों में भी हमें प्रभु को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि वे हमें कठिनाइयों को सहन करने का धैर्य प्रदान करते हैं।" बच्चों को एक साथ प्रार्थना करने के लिये प्रोत्साहन देते हुए सन्त पापा ने कहा, "आइए हम सब मिलकर एक साथ कहें, हमें दर्द सहने की शक्ति देने के लिए ईश्वर, आपके प्रति धन्यवाद।"
इसी प्रकार अन्य कई बच्चों ने प्रश्न किये तथा सन्त पापा सहज भाव से उनके सवालों का उत्तर देते रहे। अन्त में उन्होंने सबको अपना आशीर्वाद दिया तथा पल्ली के हर बच्चे को रोज़री माला तथा पास्का के उपलक्ष्य में बने चॉकलेट के अण्डे अर्पित कर अपना कार्यक्रम समाप्त किया।