पोप : पुरोहिताई निरंतर प्रशिक्षण का काल

पोप फ्राँसिस ने पुरोहिताई की प्रशिक्षण हेतु गठित परमधर्मपीठ के सदस्यों से भेंट की।

पोप ने पुरोहिताई प्रशिक्षण हेतु गठित परमधर्मपीठ के सदस्यों के मुलाकात करते हुए तीन मुख्य बातों, पुरोहिताई निरंतर प्रशिक्षण, बुलाहटीय जीवन को प्रोत्साहन और उपयाजक की निरंतरता पर प्रकाश डाला।

पोप सभों पुरोहितों के कार्यों की प्रशंसा करते हुए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हुए कहा कि मैंने बहुत बार याजकीयवाद की जोखिम और आध्यात्मिक सूखेपन से आप सभों को चेतावनी दी है, लेकिन मुझे खुशी है कि आपने अपने बुलाहटीय कार्यों का निष्पादन सर्वोतम तरीके से करते हुए ईश प्रज्ञा की सेवा की है। प्रेरिताई और आध्यात्मिक चुनौतियों का सामना करना कभी-कभी अपने में सहज नहीं है।

पोप ने पुरोहिताई जीवन को सदैव प्रशिक्षण का एक दौर कहा जो रातसियो फुदेमेतातलिस 2016 में अंकित है। उन्होंने कहा, “पुरोहित एक शिष्य है जिसका प्रशिक्षण एक यात्रा में सदैव होता रहता है, यह आज के परिवेश में और अधिक सटीक बैठता है जहाँ हम विश्व को तेजी से बदला पाते हैं।” संत पापा ने पुरोहिताई परिक्षण सदस्यों को याद दिलाया कि प्रशिक्षण गुरूकुल में विद्याअर्जन से खत्म नहीं होता बल्कि हम इसमें सीखी गई बातों को मजबूत, सशक्त बनाते हुए उसका विकास करते हैं। ऐसा करना हममें मानवीय आयाम को प्रौढ़ बनता है, जिसके फलस्वरुप हम आध्यात्मिकता, सुसमाचार की भाषा सीखने में खरे उतरते हैं।

सुसमाचार के संदर्भ को हवाला देते हुए पोप ने कहा कि हमारी यात्रा अकेली नहीं है लेकिन दुर्भाग्यवश बहुत से पुरोहित आज अकेले हैं, वे अपने में सहचर्य का अभाव पाते हैं, वे अपने को किसी से जुड़ा हुआ नहीं पाते जहाँ हम उन्हें व्यक्तिगत और प्रेरितिक जीवन में तूफानों से जूझता पाते हैं।

पोप ने कहा, “आप एक मजबूत भातृत्वमय संबंध का विकास करें, धर्माध्यक्ष से, दूसरे पुरोहितों से, समुदायों से और धर्मसंघी नर और नारियों से।” ऐसा करना बुलाहटीय जीवन को सहज बनाता है। संत पापा ने वैश्विक नेटवर्क को मजबूत करने का आग्रह किया जो पुरोहितों के लिए सहायता का मध्यम बनें।

पोप ने बुलाहट की देख-रेख करने के बारे में कहा कि इस क्षेत्र में हम एक गिरावट को देखते हैं, कुछेक देशों में यह सूखाड़ के कगार में है। इस संदर्भ में संत पापा ने विगत साल के विश्व प्रार्थना और बुलाहट दिवस के अवसर पर दिये गये अपने संदेश को याद करने का आहृवना किया, “आप अपनी ख्रीस्तीय बुलाहट की क्षितिज को विस्तृत करें जिसे आपने बपतिस्मा में पाया है जिसमें शिष्य होने की बातें समाहित है। “आप  अपने जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति और उनके चिन्हों को देखने का प्रयास करें।”

पोप ने अंत में अजीवन याजक होने के बारे में कहा कि यह हमारे लिए द्वितीय वाटिकन महासभा में संयुक्त किया गया है और आज के परिवेश में इसे कई रुपों में देखा जाता है। संत पापा ने धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के द्वितीय सत्र में उठाये गये सवालों की ओर इंगित कराते हुए कहा कि हम इसका मूल्यांकन करते हुए इसे कार्यान्वित करने की जरुरत है।