पोप ने धर्मसंघियों को विवेकशील और दयावान बनने के लिए प्रोत्साहित किया

पोप फ्राँसिस ने रोम में महासभा के आयोजन के दौरान चार धर्मसमाजों के सदस्यों को संबोधित किया और उनसे विवेकशील, निरंतर प्रशिक्षण और दया की भावना को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया।

पोप फ्राँसिस ने सोमवार 12 अगस्त को वाटिकन के संत क्लेमेंटीन सभागार में संत सिक्सतुस की दोमिनिकन मिशनरी धर्मबहनों के धर्मसंघ, येसु के पवित्र हृदय के  धर्महनों के धर्मसमाज, ईश मंदिर में अति पवित्र मरियम के समर्पण की धर्मबहनों के धर्मसंघ और दिव्य बुलाहट के धर्मसंघ,(वोकेशनिस्ट पुरोहित) के महासभा के प्रतिभागियों से मुलाकात की,जो अपने धर्मसमाज की महासभा में भाग लेने हेतु रोम आये हुए हैं।

पोप ने उन सभी का सहृदय स्वागत करते हुए कहा कि महासभा के दौरान, वे न केवल अपने संस्थानों के जीवन के लिए, बल्कि पूरी कलीसिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण क्षण का अनुभव करने की कृपा और जिम्मेदारी है। महासभा पवित्र आत्मा को सुनने का समय है ताकि संस्थापकों और संस्थापिकाओं को दिए गए करिश्मे को फलने-फूलने में सक्षम बनाया जा सके। पोप ने उन्हें तीन अस्तित्वगत और प्रेरितिक पहलुओं पर एक साथ विचार करने हेतु आमंत्रित किया, जो मतभेदों के बावजूद, सभी धर्मसमाजों के लिए में समान हैं: आत्म-परख, प्रशिक्षण और सेवा कार्य।

पहला, आत्म-परख
पोप ने कहा कि आत्म-परख वोकेशनिस्ट पुरोहितों के करिश्मे का “उचित मुद्दा” है, जो आज हमारे साथ यहाँ हैं, जाहिर है, व्यापक अर्थ में यह हर धर्मसमाज और उसके प्रत्येक सदस्य से संबंधित है। आत्म-परख जीवन का हिस्सा है, चाहे महत्वपूर्ण समय हो जिसमें बड़े फैसले शामिल हों या छोटे, नियमित मामलों के बारे में हमारे दैनिक निर्णय हों। यह हमारी स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है और इसलिए यह न केवल हमारे सामान्य मानवीय बुलाहट को व्यक्त करता है और परिपूर्ण करता है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति की विशेष और अनूठी पहचान को भी दर्शाता है।  इसके लिए प्रभु को, खुद को और दूसरों को सुनने की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रार्थना, चिंतन, धैर्यपूर्ण अपेक्षा और अंततः साहस और बलिदान की आवश्यकता होती है, ताकि हम यह निर्धारित कर सकें और उसे व्यवहार में ला सकें कि ईश्वर, अपनी इच्छा को हम पर थोपे बिना, हमारे दिलों में सुझाव देते हैं।

साथ ही, आत्म-परख भी महान खुशी का स्रोत है, क्योंकि "एक अच्छा निर्णय लेना, एक सही निर्णय लेना" हमें बहुत खुशी देता है। हमारी दुनिया को निर्णय लेने की खुशी और सुंदरता को फिर से खोजने की सख्त जरूरत है, विशेष रूप से वे जो हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ के बारे में निश्चित विकल्पों से जुड़े हों, जैसे कि एक धार्मिक बुलाहट।

दूसरा: प्रशिक्षण
पोप ने कहा कि प्रशिक्षण भी एक ऐसा गुण है जिसे सभी अलग-अलग तरीकों से साझा करते हैं, मुख्य रूप से यह धार्मिक जीवन में अनिवार्य रूप से पवित्रता में वृद्धि का मार्ग है, एक ऐसा मार्ग जिस पर प्रभु लगातार उन लोगों के दिलों को आकार देते हैं जिन्हें उन्होंने चुना है। संत पापा ने कहा, “इस संबंध में, मैं आप सभी को व्यक्तिगत और सामुदायिक, धार्मिक जीवन, आराधना और उन सभी क्षणों में दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ जो प्रतिदिन दूल्हे मसीह के साथ एक समर्पित महिला या पुरुष के रिश्ते को जीवंत करते हैं।”

वास्तव में, केवल वे लोग जो विनम्र हैं वे महसूस करते हैं कि वे लगातार “प्रशिक्षण में” हैं, वे दूसरों के अच्छे “प्रशिक्षक” बनने की आशा कर सकते हैं। संत पापा ने कहा, “वर्तमान में आपका मिशन अनिवार्य रूप से भविष्यसूचक है, जो सूचनाओं से भरे समाज और संस्कृति के बीच में किया जाता है, लेकिन इसके विपरीत, मानवीय संबंधों की दुखद रूप से कमी है। हमारे समय और इस युग में, ऐसे प्रशिक्षकों की आवश्यकता है जो, ज्ञान और स्नेह के साथ देना जानते हैं, उन लोगों के साथी बनें जिन्हें आपकी देखभाल के लिए सौंपा गया है।”

तीसरा: दया
पोप ने कहा, “आपके संस्थापकों ने ईश्वर की इच्छा को पहचानते हुए गरीब युवाओं को सहायता और शिक्षा देने के लिए धर्मसमाज की शुरुआत की थी, जो आवश्यक सहायता के बिना, उपयुक्त शिक्षा प्राप्त करने या यहां तक​​कि अपनी बुलाहट का जवाब देने में सक्षम नहीं हो पाते। उसी तरह, आप सामुदायिक विवेक के इन दिनों में, गरीबों के चेहरों को हमेशा अपने सामने रखें और, उनके बारे में सोचते हुए, निस्वार्थ प्रेम की भावना को प्रज्वलित करने का प्रयास करें।”