पोप : क्या हम स्वतंत्र हैं?

पोप फ्रांसिस ने अपने रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये संदेश में येसु की स्वतंत्रता पर चिंतन करते हुए, सभी चीजों से स्वतंत्र होना का आहृवान किया।

पोप फ्रांसिस ने अपने रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ रविवार।

आज की धर्मविधि का सुसमाचार हमें बतलाता है कि येसु अपने प्रेरितिक कार्य की शुरुआत उपरांत दो तरह के प्रतिरोध का सामना करते हैं-एक अपने संबंधियों से जो इस बात की चिंता करते हुए कि वे अपने आप से बाहर हो गये हैं और दूसरा धार्मिक नेताओं से जो उन पर यह दोष लगाते हैं कि वे दुष्ट आत्माओं की शक्ति से प्रभावकारी कार्यों को पूरा कर रहें। वास्तव में, येसु अपने प्रवचन और चंगाई की प्रेरिताई को पवित्र आत्मा से शक्ति से पूरा करते हैं अर्थात वे बिना किसी शर्त के दूसरों की सेवा या उन्हें प्रेम करने को प्रेरित हैं। हम रुक कर चिंतन येसु की स्वतंत्रता पर थोड़ा चिंतन करें।

पोप फ्रांसिस ने कहा कि येसु अपने को धन-संपत्ति से स्वतंत्र पाते हैं और इसी कारण वे नाजरेत अपने गाँव की सुरक्षित चीजों का परित्याग कर गरीबों का आलिंगन पूरी अनिश्चितता में करते हैं। वे स्वतंत्र रुप में बीमारों की सेवा करते और उनके लिए अपने को देते है जो उनसे मदद की मांग करते हैं, वे इसके बदले में किसी भी चीज की मांग नहीं करते हैं।

वे अधिकार और शक्ति के संबंध में अपने को स्वतंत्रव पाते हैं-वास्तव में, बहुतों को अपना अनुसारण करने का निमंत्रण देने के बाद भी, वे उनपर किसी बात का दबाव नहीं डालते और न ही वे उनके द्वारा किसी तरह से शक्तिशाली होने होने हेतु सहायता की मांग करते हैं। इसके बदले वे सदैव सबसे कमजोरों का पक्ष लेते और अपने शिष्यों को भी ऐसा ही करने की शिक्षा देते हैं।

अंततः वे अपने में सभी प्रकार की प्रतिष्ठा और पहचान पाने की चाह से मुक्त हैं और यही कारण है कि वे कभी सच्चाई के बारे में बोलने को नहीं हिचकिचाते हैं, यहाँ तक की इसके लिए उन्हें गलत समझा जाता है, उन पर दोष लगाया जाता और उन्हें क्रूस पर मरने तक की नौबत आती है, वे किसी भी चीज से नहीं डरते, न ही कोई भी चीजें उन्हें खरीद सकती और न ही किसी के द्वारा या कुछ भी चीज उन्हें पद भ्रष्ट कर सकती है।

पोप ने कहा कि येसु अपने में एक स्वतंत्र व्यक्ति हैं। और यह हम सभों के लिए भी महत्वपूर्ण है। वास्तव में, यदि हम अपने को चीजों से- खुशी की चाह से, शक्ति, पैसा या शारीरिक भोग में बने रहते तो हम इन सारी चीजों के गुलाम बन जाते हैं। वहीं यदि हम ईश्वर से मिले मुफ्त प्रेम से अपने को भरने देते और अपने हृदय को विस्तृत करते हैं, यदि हम ईश्वरीय प्रेम को स्वाभाविक रुप से दूसरों के लिए, अपने सारे जीवन के द्वारा प्रवाहित होने देते, बिना भय के, बिना हिसाब किये या बिना शर्त के तो हम भी स्वतंत्रता में विकास होत हैं। इसकी खुशबू हमारे द्वारा भी चारों ओर फैलती है, हमारे घरों में, परिवारों और हमारे समुदायों में।

पोप ने कहा कि अतः हम स्वयं से पूछ सकते हैं- क्या मैं एक स्वतंत्र व्यक्ति हूँ१ या मैं अपने को धन, शक्ति और सहायता के बंधनों से गुलाम पाता हूँ१ क्या मैं अपने अमन और चैन को दूसरों के लिए त्याग देता हूँ१ क्या उन स्थानों में जहाँ मैं रहता और कार्य करता हूँ, स्वतंत्रता, निष्ठा और स्वभाविकता की स्वच्छ, खुशबू को बिखेरता हूँ१

मरियम हमारी सहायता करें जिससे हम येसु की तरह प्रेम में अपने जीवन को जी सकें जैसे कि वे हमें स्वतंत्र ईश्वरीय संतान होने की शिक्षा देते हैं। इतना कहने के बाद संत पापा ने सभों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।