पोप : उदार और विश्वासी बोने वाला बनें
पोप फ्रांसिस ने रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये अपने संदेश में खेतों में बोये गये बीज पर चिंतन करते हुए धैर्य और विश्वास में बने रहने का संदेश दिया।
पोप फ्रांसिस अपने रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ रविवार।
आज की धर्मविधि का सुसमाचार हमें ईश्वर के राज्य को बीज के रूप में निरूपित करता है। येसु अपनी शिक्षा में इस प्रतिकात्मक चिन्ह का उपयोग कई बार करते हैं। आज भी वे इसका उपयोग करते हुए हमें एक महत्वपूर्ण मनोभाव- विश्वास के संग प्रतीक्षा करने पर चिंतन करने का निमंत्रण देते हैं।
पोप ने कहा कि बीज अपने में कितना ही अच्छा या अधिक क्यों न हो या खेत कितना भी अच्छा तैयार किया गया क्यों न हो बीज तुरंत नहीं उगते हैं। वह अपने में समय लेता है और इसके लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। अतः कृषक को खेत में बीज बोने के उपरांत इस बात की जरुरत है कि वह विश्वास में बना रहे, बीजों को सही समय में जन्मने और बढ़ने की प्रतीक्षा करें जहाँ वे अंततः अत्याधिक फल उत्पन्न करते हैं। उन्होंने कहा कि हम अंदर ही अंदर चमत्कार को होता पाते हैं, हम एक बहृद विकास को पाते हैं लेकिन यह अपने में अदृश्य है, जो हमसे धैर्य की मांग करता है। वहीं हमें चाहिए कि हम जमीन को पानी देते रहें और खात-पतवार की साफ सफाई करें।
पोप ने कहा कि ईश्वर का राज्य भी इस तरह है। ईश्वर हमारे जीवन में भी बहुत सारे अच्छे बीजों को अपने वचनों और कृपाओं के रुप में बोते हैं। वे बिना थके हमारे साथ चलते और धैर्य में हमारी प्रतीक्षा करते हैं। वे ईश्वर, एक विश्वासी पिता की भांति हमारी देख-रेख करते हैं, वे हमें समय देते हैं- वे धैर्यवान हैं, जिससे हम समय के साथ अपने जीवन में विकसित हों, और फल उत्पन्न करें। उन्होंने कहा कि ईश्वर की चाह यही होती है कि हमारे जीवन में बोया गया कुछ भी चीज न खोये, “हर चीज अपनी प्रौढ़ता को प्राप्त करें”। वे चाहते हैं कि हम बालियों की तरह बढ़ें और जीवन में विकसित हों तथा फल उत्पन्न करें।
पोप ने कहा कि इस भांति ईश्वर हमें एक उदाहरण देते हैं कि सुसमाचार को हम जहाँ कहीं भी हों विश्वास के साथ बोयें, और तब धैर्यपूर्ण ढ़ंग से बीज के बढ़ने और उसके फलहित होने की प्रतीक्षा करें। उन्होंने विश्वास और धैर्य दो बिन्दुओं पर जोर देते हुए कहा, “माता-पिता, अभिभावकों, शिक्षकों और पुरोहितों के रुप में हम धैर्य और विश्वास में बीजों को बढ़ने की प्रतीक्षा करें। हमें बिना अधीर हुए एक दूसरे की मदद करने की जरुरत है जिससे बोया गया बीज समय के साथ फल उत्पन्न करे। हमारे लिए चमत्कारपूर्ण कार्य बहुधा होते हैं जिसे हम नहीं देखते हैं और समय आने पर यह अपने में फलहित होता है।