पोप अफ़गान प्रतिनिधिमंडल से: 'कोई भी ईश्वर के नाम का इस्तेमाल नफ़रत फैलाने के लिए नहीं कर सकता
पोप फ्राँसिस ने इटली में अफगान समुदाय के संघ से मुलाकात की। अफगानिस्तान में कई लोगों के लिए असमानता कभी-कभी भेदभाव और बहिष्कार का कारण बनता है। यहाँ तक कि धर्म भी "हेरफेर के अधीन है" और "असंगत योजनाओं की सेवा" करता है। पोप की आशा एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ सभी को समान अधिकार प्राप्त हो और हर कोई बिना किसी भेदभाव के अपने रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार रह सके।
"कोई भी ईश्वर के नाम का इस्तेमाल दूसरों के प्रति अवमानना, घृणा और हिंसा भड़काने के लिए नहीं कर सकता।" पोप फ्राँसिस ने बुधवार को इटली में अफगान समुदाय संघ के सदस्यों के साथ वाटिकन में अपने आम दर्शन समारोह से पहले मुलाकात के दौरान इस रुख की दृढ़ता से पुष्टि की।
यह संघ इटली में रहने वाले अफगान पुरुषों और महिलाओं का एक नेटवर्क है जो इतालवी समाज में अफगान शरणार्थियों के एकीकरण का समर्थन करने और सभी जातीय समुदायों के मानवाधिकारों के सम्मान और संवाद को बढ़ावा देने में लगा हुआ है।
अफ़गानिस्तान में "दुखद" स्थिति
अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए पोप ने पिछले दशकों में अफ़गानिस्तान में हुई दुखद घटनाओं को याद किया, जिसमें अस्थिरता, युद्ध, आंतरिक विभाजन और बुनियादी मानवाधिकारों का व्यवस्थित उल्लंघन शामिल है, जिसके कारण कई लोगों को निर्वासन के लिए मजबूर होना पड़ा है।
उन्होंने इस बात की निंदा की कि अफ़गान समाज की विशेषता वाली जातीय विविधता को सीधे उत्पीड़न के लिए नहीं पर "कभी-कभी भेदभाव और बहिष्कार के कारण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।"
"आप कई युद्धों के साथ एक दुखद समय से गुज़रे हैं।"
पोप ने पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर गंभीर स्थिति का भी उल्लेख किया, जहाँ कई अफ़गानों ने शरण ली है और जहाँ जातीय पश्तून अल्पसंख्यक (अफ़गानिस्तान में बहुसंख्यक जातीय समूह) भी दुर्व्यवहार और भेदभाव सहते हैं।
धर्म को मतभेदों को कम करने में मदद करनी चाहिए
उन्होंने कहा कि इस कठिन संदर्भ में, धर्म को मतभेदों को कम करने में मदद करनी चाहिए और ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहाँ हर किसी को बिना किसी भेदभाव के पूर्ण नागरिकता अधिकार दिए जाएँ। इसके बजाय, "इसका दुरुपयोग किया जाता है" और टकराव को बढ़ावा देने के लिए घृणा के साधन के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है जिससे हिंसा होती है।
इसलिए, उन्होंने अफगान नेटवर्क के सदस्यों को "धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के अपने महान प्रयास" को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि विभिन्न धर्मों के बीच गलतफहमियों को दूर किया जा सके और भरोसेमंद संवाद एवं शांति के रास्ते बनाए जा सकें।
घृणा और हिंसा नहीं, बल्कि मानव बंधुत्व को बढ़ावा देना
इस संबंध में, पोप फ्राँसिस ने विश्व शांति और साथ रहने के लिए मानव बंधुत्व पर दस्तावेज़ को याद किया, जिस पर उन्होंने 4 फरवरी 2019 को अल-अज़हर के ग्रैंड इमाम के साथ अबू धाबी में हस्ताक्षर किए था। उस ऐतिहासिक दस्तावेज़ में कहा गया था कि "धर्मों को कभी भी युद्ध, घृणास्पद दृष्टिकोण, शत्रुता और उग्रवाद को नहीं भड़काना चाहिए, न ही उन्हें हिंसा या रक्तपात को भड़काना चाहिए", जो "धार्मिक शिक्षाओं से विचलन का परिणाम" और "धर्मों के राजनीतिक हेरफेर का परिणाम है।"
पोप ने याद किया कि उनकी अपील जातीय-भाषाई-सांस्कृतिक मतभेदों पर भी लागू होती है जो "मार्ग के रूप में संवाद की संस्कृति; आचार संहिता के रूप में पारस्परिक सहयोग; विधि और मानक के रूप में पारस्परिक समझ" को अपनाकर शांतिपूर्वक एक साथ रह सकते हैं।
इस प्रकार उन्होंने आशा व्यक्त की कि “ये मानक एक साझी विरासत बन जाएंगे और लोगों की सोच और व्यवहार को प्रभावित करेंगे।” उन्होंने कहा कि यदि इन्हें पाकिस्तान में लागू किया जाएगा तो इससे वहां के पश्तून समुदाय को भी लाभ होगा।
[मैंने देखा है कि कैसे कुछ अफ्रीकी देशों में जहां दो महत्वपूर्ण धर्म हैं - इस्लाम और काथलिक धर्म - क्रिसमस पर मुसलमान ख्रीस्तियों को बधाई देने जाते हैं और मेमने और अन्य चीजें लाते हैं और ईद के दिन ख्रीस्तीय मुसलमानों के पास जाते हैं और उनके लिए उत्सव की चीजें लाते हैं: यह सच्चा भाईचारा है और यह सुंदर है।]”
ऐसा समाज बनाना जहाँ किसी के साथ भेदभाव न हो
पोप फ्राँसिस ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि वे "सरकारी नेताओं और लोगों को एक ऐसे समाज के निर्माण में सहायता करें जहाँ सभी को समान अधिकारों के साथ पूर्ण नागरिकता दी जाए; जहाँ हर कोई अपने रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार रह सके (...), बिना सत्ता के दुरुपयोग या भेदभाव के।"