तिमोर-लेस्ते के लोगों से पोप : आपका विश्वास ही आपकी संस्कृति बने
एशिया और ओशिनिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे पड़ाव पर, पोप फ्राँसिस ने सोमवार को तिमोर लेस्ते के राष्ट्रपति भवन में, वहाँ के सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों एवं नागरिक समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। पोप ने तिमोर लेस्ते के लोगों को आमंत्रित किया कि वे अपने सिद्धांतों, परियोजनाओं और चयन को अपने विश्वास से प्रेरित होने दें।
उन्होंने उन्हें सम्बोधित कर कहा, “मैं तिमोर-लेस्ते के इस खूबसूरत देश में आपके हार्दिक और हर्षोल्लासपूर्ण स्वागत के लिए धन्यवाद देता हूँ।”
इस जगह पर एशिया और ओशिनिया एक दूसरे का स्पर्श करते हैं। एक निश्चित अर्थ में, वे यूरोप से भी मिलते हैं, जो भौगोलिक दृष्टि से दूर होने के बावजूद पिछली पांच शताब्दियों में इस क्षेत्र में अपनी भूमिका के कारण करीब है। दरअसल, सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगाल से पहले डोमिनिकन मिशनरी यहाँ आए थे, जो अपने साथ काथलिक धर्म और पुर्तगाली भाषा लेकर आए।
शांति और स्वतंत्रता का नया सवेरा
ख्रीस्तीय धर्म, जिसका जन्म एशिया में हुआ, यूरोपीय मिशनरियों के माध्यम से महाद्वीप के इन सुदूर क्षेत्रों में पहुंचा, तथा इसने अपने सार्वभौमिक आह्वान और यहाँ तक कि सबसे विविध संस्कृतियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की अपनी क्षमता का प्रमाण दिया, जो सुसमाचार के संपर्क में आने पर एक नया मेल पाया।
पहाड़ों, जंगलों और मैदानों से सजी, फलों और बढ़िया एवं सुगंधित लकड़ी से भरपूर यह भूमि, आत्मा में शांति और आनंद की भावनाएँ जगाती है, लेकिन यह भूमि हाल के दिनों में एक दर्दनाक दौर से गुजरी है। इसने उथल-पुथल और हिंसा का अनुभव किया है, जो अक्सर तब होता है जब लोग पूर्ण स्वतंत्रता की ओर देखते लेकिन स्वायत्तता की उनकी खोज को नकार दिया जाता है या विफल कर दिया जाता है।
28 नवंबर 1975 से लेकर 20 मई 2002 तक, यानी स्वतंत्रता की घोषणा से लेकर इसे निश्चित रूप से बहाल किए जाने तक, तिमोर-लेस्ते ने अपनी सबसे बड़ी पीड़ा और परीक्षा को सहन किया। फिर भी, देश पुनः उठने में सक्षम रहा है, शांति का मार्ग खोज रहा है और विकास के एक नए चरण की शुरुआत कर रहा है, बेहतर जीवन स्थितियों और इस भूमि एवं इसके प्राकृतिक और मानव संसाधनों की, अदूषित भव्यता के सभी स्तरों पर सराहना कर रहा है।
हम प्रभु को धन्यवाद देते हैं, क्योंकि आपने अपने इतिहास के ऐसे नाटकीय दौर से गुजरते हुए कभी आशा नहीं खोई, और अंधकारमय एवं कठिन दिनों के बाद, अंततः शांति और स्वतंत्रता का नया सवेरा हुआ।
संत पापा ने कहा, काथलिक धर्म में आपकी दृढ़ता ने इन महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत मदद की है। संत जॉन पॉल द्वितीय ने आपके देश की प्रेरितिक यात्रा के दौरान इस पर जोर दिया था। ताची-टोलू में अपने प्रवचन में, उन्होंने याद दिलाया था कि तिमोर-लेस्ते के काथलिकों की “एक परंपरा है जिसमें पारिवारिक जीवन, शिक्षा और सामाजिक रीति-रिवाज सुसमाचार में गहराई से निहित हैं”, एक ऐसी परंपरा “जो धन्यताओं की शिक्षा और भावना से ओतप्रोत है,” “ईश्वर पर विनम्र भरोसा, दया, क्षमा, और, जब आवश्यक हो, परीक्षण के समय धैर्यपूर्वक पीड़ित होना।” (12 अक्टूबर 1989)
नयी चुनौतियाँ
इस संबंध में, मैं विशेष रूप से इंडोनेशिया में अपने भाइयों और बहनों के साथ पूर्ण सामंजस्य स्थापित करने के लिए आपके अथक प्रयासों को याद करना और उनकी सराहना करना चाहता हूँ, एक ऐसा दृष्टिकोण जिसका पहला और शुद्धतम स्रोत सुसमाचार की शिक्षाओं में निहित है। आप कष्टों के बीच भी आशा में दृढ़ रहकर, अपने लोगों के विश्वास के कारण दुःख को खुशी में बदल दिया! प्रभु करे कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अन्य संघर्षों में भी शांति और स्मृति के शुद्धिकरण की इच्छा प्रबल हो, ताकि घावों पर पट्टी बांधा जा सके और घृणा को मेल-मिलाप और विरोध को सहयोग से बदला जा सके!
संत पापा ने कहा, एक और सराहनीय घटना तब हुई जब देश की स्वतंत्रता की बीसवीं वर्षगांठ पर, आपने मानव बंधुत्व पर घोषणा को एक राष्ट्रीय दस्तावेज के रूप में शामिल किया, जिस पर मैंने अबू धाबी में अल-अजहर के ग्रैंड इमाम के साथ मिलकर हस्ताक्षर किए थे। आपने ऐसा इसलिए किया है ताकि - जैसा कि घोषणा में कहा गया है - इसे अपनाया जा सके और स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सके। निश्चय ही, शैक्षिक प्रक्रिया मौलिक है।
साथ ही, मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप अपने गणराज्य की संस्थाओं की विवेकपूर्ण स्थापना और सुदृढ़ीकरण में नए विश्वास के साथ आगे बढ़ें, ताकि नागरिकों को यह महसूस हो सके कि उनका सही प्रतिनिधित्व हो रहा है और संस्थाएँ तिमोर-लेस्ते के लोगों की सेवा करने के लिए समुचित रूप से सुसज्जित हैं।
अब, आपके सामने एक नया क्षितिज खुल गया है, जो काले बादलों से मुक्त है, लेकिन सामना करने के लिए नई चुनौतियाँ और हल करने के लिए नई समस्याएँ हैं। इसलिए संत पापा ने कहा, “विश्वास, जिसने आपको अतीत में प्रबुद्ध बनाए रखा और आपके वर्तमान एवं भविष्य को प्रेरित कर रहा है : सुसमाचार के अनुरूप सिद्धांतों, परियोजनाओं और चयन को प्रेरित करे।
संत पापा ने वर्तमान के प्रमुख मुद्दों पर गौर करते हुए कहा, “मैं आप्रवासन की घटना के बारे में सोचता हूँ, जो सदैव संसाधनों के अपर्याप्त मूल्यांकन का संकेत है; साथ ही सभी को उचित वेतनवाली नौकरी उपलब्ध कराने में कठिनाई का भी संकेत है, जो परिवारों को उनकी बुनियादी आवश्यकताओं के अनुरूप आय की गारंटी दे सके।
मैं अनेक ग्रामीण क्षेत्रो