ग्राविसिमुम एदूकासियोनिस की 60वीं वर्षगाँठ पर पोप ने किये प्रेरितिक पत्र पर हस्ताक्षर

पोप लियो 14वें ने शिक्षा जगत की जयंती से पहले ग्राविसिमुम एदुकासियोनिस की 60वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए एक प्रेरितिक पत्र पर हस्ताक्षर किए।

सोमवार को शिक्षा जगत की जयंती के उपलक्ष्य में, परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालयों के छात्रों के साथ, पोप लियो 14वें ने एक प्रेरितिक पत्र पर हस्ताक्षर किए। यह पत्र ग्राविसिमुम एदुकासियोनिस की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में लिखा गया है, और परिषद घोषणा की वर्तमान प्रासंगिकता तथा आज शिक्षा के समक्ष आनेवाली चुनौतियों, पर विचार करने के लिए लिखा गया है, विशेष रूप से काथलिक स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिए। यह पत्र मंगलवार, 28 अक्टूबर को सार्वजनिक किया गया।

दस्तावेज पर हस्ताक्षर के बाद, पोप ने संत पेत्रुस महागिरजाघर में पवित्र मिस्सा की अध्यक्षता की। अपने प्रवचन में, उन्होंने जयंती वर्ष की तीर्थयात्रा के गहरे प्रतीकात्मक अर्थ को याद किया: "जीवन तभी सार्थक होता है जब इसे एक यात्रा के रूप में जिया जाए।" अपने प्रवचन में, उन्होंने समझाया कि पवित्र द्वार की दहलीज़ पार करना हमें याद दिलाता है कि विश्वास, जीवन की तरह, स्थिर नहीं है। यह एक निरंतर "पारगमन" है, मृत्यु से जीवन की ओर, दासता से स्वतंत्रता की ओर, पास्का रहस्य का एक अनुभव है जो हमें निरंतर नवीनीकरण और आशा की ओर बुलाता है।

एक व्यापक दृष्टिकोण
छात्रों और शिक्षकों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, पोप लियो ने प्रश्न उठाया कि कौन सी कृपा उनके जीवन को सबसे गहराई से छूती है, और फिर उत्तर दिया: "यह एक व्यापक दर्शन की कृपा है, एक ऐसा दृष्टिकोण जो क्षितिज को समझने और उससे आगे देखने में सक्षम है...।"

लूकस रचित सुसमाचार (लूक.13:10-17) पाठ पर चिंतन करते हुए, जिसमें येसु अठारह वर्षों से झुकी हुई एक स्त्री को चंगा करते हैं, पोप ने उस चंगाई की तुलना ज्ञान के उपहार से की। उन्होंने कहा कि स्त्री की स्थिति आध्यात्मिक और बौद्धिक बंदिश की स्थिति को दर्शाती है, जो स्वयं से परे देखने में असमर्थता है। उन्होंने बतलाया, "जब मनुष्य स्वयं से परे, अपने अनुभवों, विचारों और विश्वासों से परे, अपनी परियोजनाओं से परे देखने में असमर्थ होते हैं, तो वे कैद, गुलाम और परिपक्व निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं।"

सच्चा अध्ययन, मुक्ति का कार्य बन जाता है। जिस प्रकार येसु ने स्त्री को सीधा खड़ा किया, उसी प्रकार शिक्षा भी मानव आत्मा को ऊपर उठाती है, आत्म-लीनता को ठीक करती है और एक व्यापक दृष्टि प्रदान करती है - जो रहस्य, सत्य और दूसरों के साथ संवाद को समाहित करती है। पोप ने कहा, "जो लोग अध्ययन करते हैं, वे "ऊपर उठते हैं", "अपने क्षितिज और दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हैं ताकि एक ऐसी दृष्टि प्राप्त कर सकें जो नीचे की ओर न देखे, बल्कि ऊपर की ओर देखने में सक्षम हो: ईश्वर, दूसरों और जीवन के रहस्य की ओर।"

विश्वास और तर्क की एकता
पोप लियो ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि आधुनिक दुनिया में, मानवता "वास्तविकता के सूक्ष्मतम विवरणों में विशेषज्ञ" बन गई है, फिर भी एक समग्र दृष्टि प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रही है - जो ज्ञान को अर्थ के साथ जोड़ती है। इस विखंडन के विरुद्ध, उन्होंने विद्वानों को बुद्धि और आत्मा के बीच सामंजस्य को पुनः खोजने के लिए आमंत्रित किया, एक ऐसी एकता जो संत अगुस्टीन, थॉमस एक्विनास, अविला की तेरेसा और एडिथ स्टीन जैसे संतों द्वारा सन्निहित थी।

"कलीसिया को आज और कल, दोनों के लिए इस एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है," उन्होंने आगे कहा और छात्रों एवं प्राध्यापकों को प्रोत्साहित किया कि वे सुनिश्चित करें कि उनका शैक्षणिक कार्य "एक अमूर्त बौद्धिक अभ्यास" न रहे, बल्कि एक ऐसी शक्ति बने जो जीवन को बदल दे, विश्वास को गहरा करे और सुसमाचार के साक्ष्य को मजबूत करे।

शिक्षा एक प्रेमपूर्ण कार्य है
पोप ने शिक्षकों के मिशन को दया का एक सच्चा कार्य बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षण, सुसमाचार में वर्णित चमत्कार के समान है, "क्योंकि शिक्षक का कार्य लोगों को ऊपर उठाना, उन्हें स्वयं बनने में मदद करना और सूचित विवेक और आलोचनात्मक सोच की क्षमता विकसित करने में सक्षम बनाना है।" उन्होंने आग्रह किया कि परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालयों को येसु के इस भाव को जारी रखना चाहिए - जो "अध्ययन के माध्यम से व्यक्त दान का एक रूप" है।

उन्होंने आगे कहा, “सत्य की भूख को तृप्त करना, केवल एक शैक्षणिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण मानवीय कार्य है।” उन्होंने कहा, "सत्य और अर्थ की भूख को तृप्त करना एक आवश्यक कार्य है, क्योंकि इनके बिना हम शून्यता में गिर जाएँगे और यहाँ तक कि मृत्यु तक भी पहुँच जायेंगे।"

अपनापन और आशा की यात्रा
अपने प्रवचन का समापन करते हुए, पोप लियो ने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि सत्य की खोज न केवल ज्ञान को, बल्कि अपनत्व को भी प्रकट करती है। संत पॉल के शब्दों को उद्धृत करते हुए - "आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिससे प्रेरित होकर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला!" (रोमियों 8:15) - उन्होंने कहा कि अध्ययन और शोध में, प्रत्येक व्यक्ति सबसे गहरे सत्य को पुनः खोज सकता है: कि हम अकेले नहीं हैं, बल्कि एक प्रेममय पिता के हैं, जिनके पास हमारे जीवन के लिए एक योजना है।

अंत में, पोप ने प्रार्थना की कि शैक्षणिक व्यवसाय में लगे सभी लोग "ऐसे व्यक्ति बनें जो कभी भी अपने आप में दबे नहीं रहते, बल्कि हमेशा ईमानदार रहें," और "जहाँ भी जाएँ, सुसमाचार का आनंद और सांत्वना अपने साथ लेकर चलें।"