मेरी ग्लोरी : पहली महिला धर्मसमाजी चिकित्सक को संत की उपाधि देने पर विचार
भारत का काथलिक स्वास्थ्य संघ (सीएचएआई), देश का सबसे बड़ा गैर-सरकारी स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क है, जो अग्रणी चिकित्सा मिशनरी और ईश सेविका डॉक्टर सिस्टर मेरी ग्लोरी, जेएमजे की विरासतों में से एक है।
ऑस्ट्रेलिया में जन्मी और एक शिक्षित मेडिकल मिशनरी, डॉक्टर मेरी ग्लोरी जेएमजे ने 18 साल पहले भारत के सबसे बड़े गैर-सरकारी स्वास्थ्य नेटवर्क की स्थापना की। इस नेटवर्क को अब काथलिक स्वास्थ्य संघ चाई कहा जाता है, इसमें पूरे भारत में 3,500 से अधिक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवा सदस्य संस्थान शामिल हैं। विभिन्न धर्मसमाजों की हजारों धर्मबहनें कार्यरत हैं जिनमें 1000 से अधिक डॉक्टर हैं और नेटवर्क में स्वास्थ्य देखभाल के पेशेवरों के साथ कार्य करते हैं।
सिस्टर मेरी ग्लोरी जो सेक्रेड हार्ट जेएमजे की मेरी के रूप में जानी जाती थीं, पहली काथलिक धर्मबहन थीं जिन्होंने चिकित्सक का काम किया। कलीसियाई कानून द्वारा अन्य धर्मबहनों को भी अनुमति मिलने से 16 साल पहले, 1920 में पोप बेनेडिक्ट 15वें से उन्हें अनुमति मिल चुकी थी। 37 साल की अपनी सेवा में सिस्टर मेरी ने हजारों रोगियों का इलाज किया और कई अस्पतालों का निर्माण कराया। उन्होंने स्वास्थ्य देखभाल प्रशिक्षण की स्थापना की और भारत में एक काथलिक मेडिकल कॉलेज की नींव रखी।
मेरी ग्लोरी का जन्म 1887 में ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य के एक छोटे गाँव में हुआ था। उनके दादा-दादी आयरिश आप्रवासी थे और यह काथलिक परिवार एक व्यापक ग्रामीण समुदाय का हिस्सा था। मेरी का अपने माता-पिता और पांच भाई-बहनों के साथ प्रेमपूर्ण रिश्ता था। मेरी की बुद्धि, ईश्वर के प्रति प्रेम और संवेदनशीलता छोटी उम्र से ही स्पष्ट हो गई थी। 13 साल की उम्र में, उन्होंने 300 किमी से अधिक दूर मेलबर्न में छात्रवृत्ति के माध्यम से अपनी माध्यमिक और उच्च विद्यालय की शिक्षा पूरी करने के लिए घर छोड़ दिया। 1910 में, जब कई लोग चिकित्सा पेशे को महिलाओं के लिए अनुपयुक्त मानते थे, मेरी ने चिकित्सा और सर्जरी में डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अगले दशक में, वह मेलबर्न में एक सफल डॉक्टर और नेत्र विशेषज्ञ बन गईं।
अक्टूबर 1915 में मेरी ने स्कॉटलैंड की पहली चिकित्सक और काथलिक धर्म स्वीकार करनेवाली डॉ. अग्नेस मैकलारेन (1837-1913) की जीवनी पढ़ी। 20वीं सदी के शुरू में डॉ. मैक्लारेन ने भारत में महिलाओं की पीड़ा का सामना करने की कोशिश की। स्थानीय रीति रिवाज के अनुसार वे पुरूष डॉक्टरों से सलाह नहीं ले सकती थीं और उस समय देश में बहुत कम महिला डॉक्टर थीं। डॉ. मैकलारेन ने लंदन में एक मिशन चैरिटी और रावलपिंडी में एक छोटा अस्पताल स्थापित किया, और परमधर्मपीठ में याचिका दायर की कि महिला धर्मबहनों को डॉक्टर के रूप में सेवा करने की अनुमति दी जाए।
डॉक्टर मैकलारेन की जीवनी को पढ़ने के बाद मेरी ने भारत में मेडिकल मिशनरी सेवा देने हेतु अपनी बुलाहट को महसूस किया। उन्होंने इसपर चार वर्षों तक चुपचाप आत्मजाँच किया। उनका भारत प्रस्थान प्रथम विश्वयुद्ध और एक धर्मबहन एवं एक डॉक्टर के रूप में सेवा देने की अनुमति की आवश्यकता के कारण विलंबित हुआ। इस अवधि में सिस्टर मेरी ने न केवल अस्पताल में अपनी नियमित सेवा दी और व्यक्तिगत कार्य किये लेकिन 1916 से 1918 तक मेलबर्न में काथलिक महिला सोशल गिल्ड की संस्थापक अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 1919 में उन्होंने औषधि में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की।
जनवरी 1920 में, मेरी ने भारत में गुंटूर की यात्रा की, जो अब आंध्र प्रदेश के नाम से जाना जाता है। वहां, वे 1904 में गुंटूर में स्थापित एक डच धर्मसमाज, सोसाइटी ऑफ जीसस मेरी जोसेफ (जेएमजे) में प्रवेश की। जेएमजे बहनें कई वर्षों से एक डॉक्टर के लिए प्रार्थना कर रही थीं।
अपने आगमन से पहले मेरी इस नए देश या जेएमजे सिस्टर्स के बारे में बहुत कम जानती थी। अपने आगमन के एक महीने के भीतर, उसने ऑस्ट्रेलिया में अपने परिवार को लिखा कि वे यहाँ अपनापन महसूस कर रही हैं। घर के समान महसूस कर रही हैं, और कहा कि 'वे गलती' से भारत में पैदा नहीं हुईं।
समुदाय में बहुत सारे कमजोर लोगों को मेडिकल केयर की जरूरत थी। भारत में अपने पहले साल से ही सिस्टर मेरी के पास काथलिक सिद्धांतों पर आधारित व्यापक स्वास्थ्य देखभाल प्रावधान और शिक्षा का दृष्टिकोण था। उन्होंने शारीरिक के साथ साथ आत्माओं की चिंता पर भी ध्यान दिया। गुंटूर में सिस्टर मेरी उन लोगों के लिए चिकित्सा सुविधा पर ध्यान देने लगी जो मदद की खोज कर रहे थे, विशेषकर, महिलाएँ और बच्चे। उन्होंने स्थानीय भाषा सीखी, तेलगू सिखा। जहां अन्य दवाएं उपलब्ध नहीं थीं, वहां पारंपरिक उपचारों का उपयोग कर लोगों का विश्वास जीता।
मेरी के भारत पहुँचने के एक दशक बाद गुंटूर में उनकी मदर सुपीरियर ने मेरी के माता-पिता को लिखा और उनकी बेटी की तुलना एक प्रकाश गृह से की। उन्होंने लिखा, ‘वह हमेशा पृष्ठभूमि में रहती है, लेकिन अपने अच्छे कार्यों का प्रकाश बहुत दूर तक फैलाती है।'
हालांकि जेएमजे की धर्मबहनों ने अनुदान के लिए यूरोप और अस्ट्रेलिया में अपील की लेकिन संसाधन कम ही रहा। सिस्टर मेरी ने तीन दशकों तक असंख्या चुनौतियों का सामना करते हुए लोगों का दुःख दूर करने एवं जीवन की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खुद को समर्पित किया। सभी से मिलकर काम करते हुए उन्होंने गुंटूर में संत जोसेफ अस्पताल की स्थापना की तथा दाई का काम, फार्मेसी सहायता और नर्सिंग में मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम की शुरूआत की।