प्रेरित सन्त मत्ती

(पर्व दिवस 21 सितम्बर)

किसी दिन प्रभु येसु गलील सागर के तट पर से गुजर रहे थे। तब उन्होंने मत्ती को चुंगी घर में बैठा हुआ देखा जो रोमी अधिकारियों के लिए कर वसूल करता था। प्रभु येसु ने उनकी ओर ध्यान से देखा, और प्रेम पूर्वक उन पर दृष्टि डालते हुए उनसे कहा-“मेरे पीछे चले आओ।” (मत्ती 9:19) वह तुरन्त अपने आसन पर से उठे, सारा पैसा और जो कुछ उनके पास था, छोड़ कर येसु के पीछे हो लिया।
इससे पहले भी प्रभु ने वहाँ से गुजरते समय मत्ती पर दृष्टि डाली थी जो उनके अन्तरतम तक पहुँच गयी थी। उन्हें अनुभव हुआ था कि प्रभु मुझे बुला रहे हैं। लेकिन उन्हें साहस नहीं था कि प्रभु के आह्वान को स्वीकार करें। क्योंकि वह अपनी अयोग्यता से परिचित थे; अर्थात् उस समय के यहूदी लोग नाकेदारों को बड़ी घृणा की दृष्टि से देखते और उन्हें 'पापी' कह कर पुकारते थे। किन्तु अब प्रभु ने ध्यान से उनकी ओर देखा और अपनी दया और प्यार भरी दृष्टि उन पर डाली। प्रभु की इस असीम प्यार और दया का तिरस्कार करना उनके लिए असंभव था। वह समझ गये कि यद्यपि मैं पापी हूँ, फिर भी प्रभु मुझे प्यार करते हैं और मुझे अपनाना चाहते हैं। प्यार की इस अन्तर्दृष्टि के सम्मुख वह नतमस्तक हो गये और उन्होंने प्रभु का अनुसरण किया।
मत्ती को यह भी मालूम था कि न केवल फरीसी, पर प्रभु के शिष्य जो पहले से उनके साथ थे, वे भी उनसे घृणा करेंगे और उनका साथ देना नहीं चाहेंगे। इस पर भी प्रभु के प्यार की गहराई को मत्ती ने अनुभव किया था; इसलिए उन्हें दूसरों के तिरस्कार का कोई डर न रहा। वह साहस पूर्वक आगे बढ़े और उनके साथ हो लिये।
मत्ती अलफेयुस का पुत्र और गलीलिया का निवासी था। उनका नाम शुरू में लेवी था। प्रभु ने जब उन्हें बुलाया तो मत्ती नाम से पुकारा जिसका अर्थ हैं 'ईश्वर का दान'। मत्ती ने आनन्दित होकर एक दिन येसु को और उनके शिष्यों को अपने घर में भोजन के लिए बुलाया, और बहुत से नाकेदार और पापी भी आकर उनके साथ भोजन करने लगे। यह देख कर फरीसियों ने शिष्यों से पूछा- “तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?” येसु ने यह सुनकर उनसे कहा-“नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की जरूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ (मत्ती 9:11-12)
प्रभु येसु ने जिन बारह प्रेरितों को चुना, उनमें मत्ती भी एक थे। उन्होंने उनको चुना ताकि वे येसु के साथ रह कर उनकी शिक्षा को सुनें और उनके कार्यों को देखें। साथ ही प्रभु ने उन्हें अधिकार दिया कि वे लोगों को ईश्वरीय राज्य की शिक्षा दे, उनकी हर तरह की बीमारी और दुर्बलता को दूर करे और अशुद्ध आत्माओं को निकाले। 
पेन्तकोस्त के पश्चात् मत्ती ने पवित्रात्मा से परिपूर्ण होकर अन्य प्रेरितों के समान यहूदिया प्रान्त में घूम-घूम कर प्रभु के सुसमाचार का प्रचार किया। बहुत से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया और उनके अनुयायी बने। साथ ही वे चाहते थे कि उन नवदीक्षितों को विश्वास में सुदृढ़ करे तथा प्रभु की शिक्षा भावी पीढ़ी के भी काम आये। इस उद्देश्य से उन्होंने अपने सुसमाचार की रचना की। उन्होंने उसे जन साधारण की भाषा अरमाइक में लिखा। चूँकि वे पर्याप्त रूप से शिक्षित थे और अच्छे लेखक भी थे; साथ ही यूनानी भाषा के जानकार भी थे, अतः उनका सुसमाचार प्रारम्भिक कलीसिया में काफी लोकप्रिय रहा। उन्होंने इस बात पर विशेष प्रकाश डाला कि येसु ही वे प्रतिज्ञात मसीह हैं जिनके विषय में नबियों ने भविष्यवाणी की थी।
मत्ती ने येसु के जीवन और शिक्षा पर अधिक बल दिया है। उन्होंने कुछ विशेष बातों का उल्लेख किया है जो दूसरे सुसमाचारों में नहीं मिलते; जैसे-‘पर्वत पर प्रवचन', ‘येसु का जन्म कुँवारी मरियम से हुआ जिसकी मंगनी योसेफ नामक पुरुष से हुई थी, जो दाऊद के घराने और वंश का था', 'ज्योतिषियों का आगमन ' तथा 'मिश्र में पलायन।' इसी तरह प्रभु येसु पेत्रुस को 'चट्टान' कह कर पुकारते हैं जिस पर वे अपनी कलीसिया की स्थापना करेंगे; प्रभु येसु पेत्रुस को स्वर्ग राज्य की कुंजियाँ प्रदान करते; पेत्रुस येसु के साथ-साथ समुद्र पर चलते; और प्रभु का यह आश्वासन कि मैं संसार के अन्त तक तुम्हारे साथ रहूँगा।
माना जाता है कि सन्त मत्ती ने यहूदिया के अतिरिक्त कई अन्य प्रान्तों में भी प्रभु के सुसमाचार का प्रचार किया और अन्त में उसी विश्वास के कारण शत्रुओं द्वारा उन्हें पत्थरवाह करके मार डाला गया और वे प्रभु के लिए शहीद बने । 
कलीसिया में सन्त मत्ती का पर्व 21 सितम्बर को मनाया जाता है।