बच्चों का बचपन संवारिए, बुढ़ापा खुद संवर जाएगा
पिछले कुछ सालों से समाज में एक नया चलन शुरू हुआ है, बच्चो को दूसरो की मदद से बड़ा करने का चलन, जिसके अंतर्गत मां बाप बच्चा होने के साथ ही उसको पालने वाली एक सहायिका (बच्चा संभालने वाली) को भी अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान देने लगते है। बात बाई की नहीं है वो तो मां और बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उनके स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जरूरी है, बात है जन्म के कुछ महीनों बाद विशेष कर बच्चे को संभालने के लिए रखी जाने वाली सहायक अर्थात मेड की। जो लोग वर्किंग पैरेंट्स हैं उनके लिए ये एक जरूरत हो सकती है पर जो मां खुद घर पर रहकर भी अपने बच्चे को किसी और की छाया में रखकर पालना चाहती है वो ये नहीं समझ पाती की इसका असर बच्चे पर क्या पड़ता है, उल्टा फिर उस मासूम के लिए तो वो पालने वाला व्यक्ति ज्यादा जरूरी हो जाता है जो उसका पूरे दिन ध्यान रखता है। मैं ये नहीं कहती कि सहायिका रखी क्योंकि ज्यादातर एकल परिवार चलन में है पर उसके बाद जब हम घर पर है और काफी समय भी है तब भी उसी सहायक के भरोसे बच्चा है तो ये हम उसकी परवरिश से खिलवाड़ कर रहे हैं। सच तो ये है कि उस दौरान अपने मां बाप होने का फर्ज हम अपने व्यस्त होने के बहाने की आड़ में पूरी ईमानदारी से नहीं निभा रहे है। आप गौर करना किसी भी दो बच्चो के बीच में, एक जो सहायक के भरोसे ही बड़ा हुआ है जिसको जन्म तो मां - पिता ने दिया पर पाला दूसरो ने हैं और दूसरा वो जिसको जन्म भी मां-पिता ने दिया और पाल भी मां- पिता ही रहे है, इन दोनों बच्चो के मन के भावों में, रिश्तों की समझ में कुल मिलाकर हर बात में आपको बहुत गहरा अंतर नजर आएगा। कम से कम 7-8 साल की उम्र तक जितना हो सके उतना समय बच्चो को दीजिए, बाद में तो वो खुद इतने व्यस्त हो जाएंगे की फिर आप आगे रहकर समय देना भी चाहोगे तो वो लेना नहीं चाहेंगे, क्योंकि आपने शुरू से वैसे संबंध बनाए ही नहीं की अब आपको को वो उनके जीवन में दखल देने दें। अभी भी देर नहीं हुई है आपका बच्चा यदि छोटा है और आज भी आपसे थोड़ा भी जुड़ा हुआ महसूस करता है तो उसको खुद से पूरा जोड़िए, जब भी आप फ्री हो उसके साथ उसके मनपसंद तरीके से समय बिताए उसको स्विमिंग पसंद है तो वहां ले जाइए। उसकी पसंद की चीज के पास ले जाकर उसको छोड़ नहीं देना है। उसके साथ उसमें शामिल होना है।