पोप लियो ने संत देवसहायम को भारत के लोकधर्मियों का संरक्षक घोषित किया

पोप लियो 14वें ने दिव्य उपासना एवं संस्कारों के अनुशासन विभाग के माध्यम से, संत लाजरूस देवसहायम को भारत में लोकधर्मियों के संरक्षक के रूप में आधिकारिक रूप से मान्यता प्रदान की है। यह स्वीकृति भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीसीबीआई) के आग्रह पर और 16 जुलाई 2025 को जारी एक आदेश के माध्यम से प्रदान की गई है।
संत लाजरूस देवसहायम की भारत में लोकधर्मियों के संरक्षक के रूप में औपचारिक घोषणा 15 अक्टूबर 2025 को वाराणसी के संत मरिया महागिरजाघर में एक यूखरिस्त समारोह के दौरान की जाएगी। यह आयोजन भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीसीबीआई) के लोकधर्मी आयोग के धर्मप्रांतीय और क्षेत्रीय सचिवों की वार्षिक राष्ट्रीय बैठक के साथ होगा, जिसमें देशभर के धर्मप्रांतीय प्रतिनिधि एकत्रित होंगे।
सीसीबीआई के अध्यक्ष कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ ने एक पत्र जारी कर महाधर्माध्यक्षों, धर्माध्यक्षों, पल्ली पुरोहितों, धर्मबहनों और विश्वासियों को प्रत्येक धर्मप्रांत एवं पल्ली में इस ऐतिहासिक पल की खुशी मनाने और पूरे भारत में संत लाजरूस देवसहायम के प्रति भक्ति को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने के लिए आमंत्रित किया है।
कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ ने कहा, "हमें उम्मीद है कि संत लाजरूस देवसहायम के प्रति भक्ति भारत में विश्वासियों को ईश्वर के प्रति प्रेम बढ़ाने, अपना विश्वास गहरा करने और कलीसिया तथा समाज दोनों की सक्रिय रूप से सेवा करने के लिए प्रेरित करेगी।"
संत लाजरूस देवसहायम (1712-1752) एक हिंदू थे जिन्होंने ख्रीस्तीय धर्म अपनाया था और काथलिक कलीसिया द्वारा संत घोषित किए जानेवाले भारत के पहले लोकधर्मी एवं शहीद हैं। तमिलनाडु के नट्टलम में नीलकंद पिल्लई के रूप में जन्मे लाजरूस ने त्रावणकोर साम्राज्य में एक दरबारी के रूप में कार्य किया। ईसाई धर्म की ओर आकर्षित होकर, उन्होंने 1745 में धर्म परिवर्तन किया और लाजरूस (तमिल में देवसहायम का अर्थ है "ईश्वर मेरी सहायक हैं") के रूप में बपतिस्मा लिया। अपने धर्म का त्याग करने से इनकार करने के कारण उन्हें उत्पीड़न, कारावास और यातना का सामना करना पड़ा, और 1752 में उन्हें फाँसी दे दी गई।
2 दिसंबर 2012 को पोप बेनेडिक्ट 16वें के प्रतिनिधि कार्डिनल अंजेलो अमातो, एस.डी.बी., संत प्रकरण के लिए स्थापित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ के अध्यक्ष की अध्यक्षता में आयोजित, एक समारोह में उन्हें धन्य घोषित किया गया। पोप फ्राँसिस ने 15 मई 2022 को वाटिकन सिटी के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में उन्हें साहस, विश्वास और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का आदर्श घोषित करते हुए संत घोषित किया।