चिकित्सा पेशेवर एआई और स्वास्थ्य सेवा पर चर्चा के लिए वाटिकन में एकत्रित
“एआई और चिकित्सा : मानव गरिमा की चुनौती" इस सप्ताह रोम में चिकित्सा पेशेवरों, दार्शनिकों और ईशशास्त्रियों को एक साथ लानेवाले सम्मेलन का शीर्षक था।
हमें तकनीक को "मानवीय" बनाने या मानव को "मशीनीकृत" करने के प्रलोभन में नहीं पड़ना चाहिए।
यह पिछले कुछ दिनों में वाटिकन में "कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चिकित्सा: मानव गरिमा की चुनौती" शीर्षक से आयोजित एक सम्मेलन के दौरान उभरी अंतर्दृष्टियों में से एक थी।
10 से 12 नवंबर तक आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ काथलिक मेडिकल एसोसिएशन (एफआईएमसी) और पोंटिफिकल एकेडमी फॉर लाइफ (पीएवी) द्वारा किया गया था।
सम्मेलन के बाद कुछ प्रतिभागी, जिनमें परमधर्मपीठीय एकादमी के अध्यक्ष मोनसिन्योर रेंसो पेगोरारो, पीएवी के सदस्य प्रोफेसर तेरेसा लाईसौत और विश्व मेडिकल संघ के महासचिव डॉ. ओतमार क्लोइबर शामिल थे, वाटिकन प्रेस कार्यालय में पत्रकारों से बात की।
धर्म और एआई विकास
मोनसिन्योर रेंसो पेगोरारो ने सम्मेलन की अंतर्राष्ट्रीयता पर प्रकाश डाला, जिसमें "भारत, लैटिन अमेरिका, यूरोप और अमेरिका के योगदान से हमें वैश्विक अनुभवों और चुनौतियों को समझने में मदद मिली।"
वाटिकन न्यूज से बात करते हुए, उन्होंने "स्वास्थ्य और बीमारी को केवल संख्यात्मक आँकड़ों में बदलने" के जोखिम के बारे में चेतावनी दी, और जोर देकर कहा कि "रोगी एक जटिल जीवित अनुभव है, जो भावनाओं, भय और संवेदनाओं से बना होता है।"
मोनसिन्योर पेगोरारो ने कहा, “चिकित्सा को वैयक्तिकृत करने की क्षमता एक अपूरणीय चिकित्सा कौशल बनी हुई है।" उसके बाद उन्होंने नई तकनीकी के नैतिक प्रयोग के मार्गदर्शन में कलीसिया की भूमिका पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “यह उपकरणों, जैसे चाटजीपीटी को तुरन्त “अच्छा” या “बुरा” घोषित करने की बात नहीं है। लेकिन समझना है कि वे कैसे काम करते हैं, क्या वे पारदर्शी हैं, भेदभाव नहीं रखते और पूर्वाग्रह से मुक्त हैं।”
क्लोईबर : रोगी से मानवीय सम्पर्क कम न किया जाए
विश्व चिकित्सा संघ के महासचिव डॉ. ओतमार क्लोइबर ने देखा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता तेजी से चिकित्सा जगत में व्याप्त हो रही है।
उन्होंने इसके लाभों की ओर इशारा किया: निदान और उपचारों में तेजी आना, उपचारों को अधिक सटीक, और कभी-कभी तो ज्यादा "व्यक्तिगत" बनाना।
हालांकि, उन्होंने इसके खतरों के बारे में भी चेतावनी दी: "एआई मरीजों के साथ मानवीय संपर्क को कम कर सकता है और केवल उन लोगों को कम लागत वाली देखभाल प्रदान करने का एक साधन बन सकता है जो डॉक्टर का खर्च नहीं उठा सकते। हमारे जीवन में घुसपैठ कर रही तकनीक तनाव बढ़ा सकती है और नई सामाजिक असमानताएँ पैदा कर सकती है।"
क्लोइबर ने आगे कहा कि एआई को किस दिशा में ले जाना चाहिए, यह तय करने में नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। "इस तरह के सम्मेलन, जिनमें दृष्टिकोण, राय, विश्वास और आशा का आदान-प्रदान होता है, चिकित्सा में एआई के उपयोग की योजना बनाने और मार्गदर्शन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।"
लिसौथ: एआई क्षेत्र के नेताओं के सामने नैतिक प्रश्न उठाना
प्रोफ़ेसर थेरेसा लिसाउथ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि काथलिक जैव-नैतिकता के विद्वानों के लिए भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक महत्वपूर्ण नवीनता का प्रतिनिधित्व करती है।
उन्होंने बताया, "परंपरागत रूप से, जैव-नैतिकता विकास पर प्रतिक्रिया करती है; हालाँकि, आज, पीएवी के कार्य और पोप के समर्थन के कारण, हम इन मुद्दों को सक्रिय रूप से चर्चा के केंद्र में रख सकते हैं, और इन तीन दिनों के संवाद के दौरान देखे गए सकारात्मक पहलुओं को महत्व दे सकते हैं।" लिसौथ ने नई तकनीकों में सकारात्मक विकास से उत्पन्न उत्साह और आश्चर्य का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, "चिकित्सा के लिए, यह दृष्टिकोण आकर्षक है—लगभग स्टार ट्रेक जैसा। भारत और कतालोनिया जैसी जगहों से मिली रिपोर्टें बताती हैं कि कैसे ये तकनीकें स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा दे सकती हैं और इस क्षेत्र में काम करनेवालों के लिए आशा की किरण जगा सकती हैं।"
लिसाउथ ने तकनीक को "मानवीय" बनाने और साथ ही मानवता को "यांत्रिक" बनाने की प्रवृत्ति के बीच के तनाव पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, "इन गतिशीलताओं को पहचानना और उन पर चर्चा करना जरूरी है।"