कार्डिनल परोलीनः करूणा हमें विश्वास के केन्द्र में लाती है

युवाओं की जयंती के अवसर पर वाटिकन राज्य के सचिव कार्डिनल पियेत्रो परोलीन ने दो लाख युवाओं के लिए यूखारीस्तीय बलिदान अर्पित किया।

दिव्य करूणा के पर्व दिवस, पास्का के द्वितीय रविवार को युवाओं की जयंती का मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए कार्डिनल पियेत्रो परोलीन के ईश्वर की करूणा पर चिंतन किया।

कार्डिनल पियेत्रो परोलीन ने मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि येसु अपने शिष्यों को अंतिम व्यारी की कोठरी में दिखाई देते हैं जहाँ वे भय के मारे अपने को बंद थे। वे मानसिक रुप से विचलित और हृदय में दुःख से बोझिल होने का अनुभव करते हैं क्योंकि उनके स्वामी और चरवाहे जिनका अनुसरण उन्होंने किया था उन्हें क्रूस पर लटका दिया गया। वे अपने में भयवाह अनुभूति से गुजर रहे होते हैं, वे अनाथ, अकेला, खोया, भयभीत और असहाय अनुभव करते हैं।

हमारी जीवन की स्थिति
पास्का के दूसरे रविवार, सुसमाचार का दृश्य हमारी मानसिक स्थिति, कालीसिया और पूरी दुनिया की परिस्थिति को व्यक्त करती है। चरवाहे, संत पापा फ्रांसिस को जिसे ईश्वर ने अपने लोगों के लिए दिया था पृथ्वी पर अपना जीवन समाप्त कर हमसे विदा हो गये हैं। इस विदाई का दुःख हम बोझिल करता है, हम अपने हृदय में उथल-पुथल, विस्मय का अनुभव करते हैं, हम अपने में प्रेरितों की भांति दुःख का अनुभव करते हैं जो येसु की मृत्यु से दुखित थे।

येसु में आनंद की नवीनता
कार्डिनल पियेत्रो परोलीन ने कहा कि यद्यपि सुसमाचार हमारे लिए इस विशेष परिस्थिति में इस बात का जिक्र करता है कि ऐसा अंधेरे में ईश्वर हमारे जीवन में पुनरूत्थान की रोशनी बन कर आते और हमारे जीवन को प्रकाशित करते हैं। वे हमें इसके बारे में सदैव याद दिलाते हैं जिसकी चर्चा उन्होंने अपने विश्व प्रेरितिक पत्र एभंजेली गैदियुम में की है, जो उनके परमाध्यक्षीय काल का केन्द्र बिन्दु था, “सुसमाचार की खुशी, उनके हृदयों और जीवन को आनंद से भर देता है जो येसु से मिलते हैं। वे जो उनसे मिलने वाली मुक्ति को स्वीकारते हैं वे अपने पापों, दुःखों, आंतरिक खालीपन और अकेलेपन से मुक्त किये जाते हैं। येसु में हम आनंद को सदैव नवीन होता पाते हैं।”  

पास्का की खुशी, जो दुःख और परीक्षा में हमें सबल बनाये रखती है, अपने में वह चीज है जिसका स्पर्श हम आज इस प्रांगण में करते हैं। कार्डिलन ने कहा कि आप स्वयं इसे अपने चेहरे में देख सकते हैं, जो विश्व के विभिन्न स्थानों से युवाओं की जयंती हेतु यहाँ जमा हुए हैं। आप बहुत सारे स्थानों से आये हैं, इटली के विभिन्न धर्मप्रांतों से, यूरोप, अमेरीका, लैटिन अमेरीका, आफ्रीका से लेकर एशिया, संयुक्त राज्य अमीरात...आप के साथ, सारी दुनिया यहाँ सचमुच में उपस्थित हैं।

कार्डिनल ने सभी युवाओं को कलीसिया की ओर से संत पापा फ्रांसिस का आलिंगन प्रेषित किया जो उनसे मिलने की चाह रखते थे, उनकी आंखों में देखना और उनका अभिवादन करने हेतु उनके बीच में आने की तीव्र इच्छा रखते थे।

वर्तमान की दो चुनौतियाँ
आज के परिवेश में बहुत सारी चुनौतियों के मध्य दो चुनौतियाँ- तकनीकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जिन्हें युवाओं को सामना करने की जरुरत है, का जिक्र करते हुए कार्डिनल ने कहा कि आप येसु ख्रीस्त में मिलने वाली जीवन की सच्ची आशा से अपने को पोषित करना कभी न भूलें। उनसे महान या उनके सामने कोई भी चुनौती बड़ी नहीं हो सकती है। उनमें आप कभी भी अकेले या परित्यक्त नहीं होंगे, जीवन की सबसे बुरी स्थिति में भी नहीं। आप जहाँ कहीं भी हैं वे आप से मिलने आते हैं, वे हमें अनुभवों, विचारों, उपहारों और सपनों को साझा करने हेतु साहस प्रदान करते हैं। वे आपके बीच एक भाई और बहन के माध्यम आते हैं जो आप को प्रेम करते हैं,जिन्हें आप बहुत कुछ दे और पा सकते हैं, जो आप को अपने जीवन में उदार, विश्वासनीय और उत्तरदायी होने में मदद करते हैं।  वे आप को जीवन की अति मूल्य बातों को समझने में मदद करने की चाह रखते हैं जो की प्रेम है जो सारी चीजों को अपने में ढ़क लेता और सारी चीजों की आशा उत्पन्न करता है।

आज पास्का के द्वितीय रविवार को हम दिव्य करूणा का त्योहार मनाते हैं।

संत पापा फ्रांसिस की धर्मशिक्षा का सार
कार्डिनल पियेत्रो परोलीन ने कहा कि यह विशेषकर पिता की करूणा है जो हमारी कमजोरियों और सीमाओं से कही अधिक बड़ी है जिसे हम संत पापा के धर्मसिद्धांत और प्रेरितिक कार्य के सार स्वरूप पाते हैं। सुसमाचार की घोषणा, ईश्वर की करूणा को साझा और उसे घोषित करना उनके परमाध्यक्षीय काल का मुख्य बिन्दु रहा। उन्होंने हमें इस बात की याद दिलाई की “दया” ईश्वर का नाम है और इसलिए कोई भी ईश्वर के करूणामय प्रेम को एक सीमा में बाँध कर नहीं रख सकता है जिसके द्वारा वे हमें उठाने और नवीन बनाने की चाह रखते हैं।

हमें इस अमूल्य निधि को अपने में वहन करने की जरुरत है। कार्डिनल परोलीन ने कहा कि संत पापा फ्रांसिस के प्रति हमारा प्रेम जिसे आज हम अनुभव करते हैं अपने में केवल मनोभाव न रहे बल्कि हम उनकी शिक्षा को अपने जीवन का अंग बनायें, हम अपने को ईश्वर की करूणा हेतु खोलें और एक दूसरे के प्रति करूणावान बनें।