काथलिक विश्वविद्यलयों के अन्तरराष्ट्रीय संघ से पोप
वाटिकन में शुक्रवार को पोप फ्राँसिस ने काथलिक विश्वविद्यलयों के अन्तरराष्ट्रीय संघ के प्रतिनिधियों का स्वागत कर उन्हें अपना सन्देश दिया। सन् 1924 ई. में तत्कालीन पोप पियुस दशम ने 18 काथलिक विश्वविद्यालयों के एक संघ को आशीर्वाद दिया था।
वाटिकन में शुक्रवार को पोप फ्राँसिस ने काथलिक विश्वविद्यलयों के अन्तरराष्ट्रीय संघ के प्रतिनिधियों का स्वागत कर उन्हें अपना सन्देश दिया। सन् 1924 ई. में तत्कालीन पोप पियुस दशम ने 18 काथलिक विश्वविद्यालयों के एक संघ को आशीर्वाद दिया था, जिसके 25 वर्षों बाद 1949 ई. में सन्त पापा पियुस 12 वें ने काथलिक विश्वविद्यलयों के संघ की स्थापना की थी।
100 वर्षों पूर्व गठित काथलिक विश्वविद्यालयों के संघ की ऐतिहासिक जड़ों का स्मरण दिलाते हुए पोप ने इसके दो पक्षों प्रकाशित किया, जिनमें से प्रथम उन्होंने "नेटवर्किंग" के माध्यम से सहयोग करने की सराहना की। पोप ने कहा कि आज विश्व में लगभग दो हज़ार काथलिक विश्वविद्यालय हैं। हम काथलिक विश्वविद्यालयीन प्रणाली को मजबूत करने के लिए अधिक प्रभावी और बेहतर कामकाजी संबंधों की क्षमता की कल्पना कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, "महान विखंडन के समय में, हमें इस प्रवृत्ति का मुकाबला करने और उदासीनता, ध्रुवीकरण तथा संघर्ष के स्थान पर आशा, एकता और सद्भाव को वैश्विक बनाने का साहस करना चाहिए।"
पोप ने कहा कि दूसरा पहलू उस तथ्य की प्रकाशना करता है, जैसा कि पोप पियुस 12 वें ने कहा था, कि उक्त संघ की स्थापना "एक भयानक युद्ध के मद्देनजर" की गई थी, ताकि "लोगों के बीच मेल-मिलाप और शांति और उदारता के कार्यों में वृद्धि" को बढ़ावा दिया जा सके।
पोप ने कहा कि मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि हम काथलिक विश्वविद्यलयों के संघ की शताब्दी का जश्न एक युद्ध की पृष्ठभूमि में मना रहे हैं, जो कि टुकड़ों में लड़ा जा रहा तीसरा विश्व युद्ध है। अस्तु, उन्होंने कहा कि यह और भी आवश्यक है कि काथलिक विश्वविद्यालय शांति की संस्कृति के सभी पहलुओं के निर्माण के प्रयासों में सबसे आगे रहें, जिन्हें अंतःविषयक दृष्टि से संबोधित करने की आवश्यकता है।
पोप ने स्मरण दिलाया कि सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने काथलिक विश्वविद्यालयों का माग्ना कार्ता अर्थात् महाधिकार पत्र, अपने प्रेरितिक संविधान "एक्स कोरदिये एकलेज़िये" की शुरुआत, यह आश्चर्यजनक बयान देकर की थी कि काथलिक विश्वविद्यालय का जन्म "कलीसिया के दिल से" हुआ है। उन्होंने "कलीसिया के दिल" को महत्व दिया।
पोप ने कहा, "वास्तव में, काथलिक विश्वविद्यालय, "कलीसिया द्वारा हमारे युग को प्रदान किए जाने वाले सर्वोत्तम उपकरणों में से एक" होने के नाते, उस प्रेम की अभिव्यक्ति होने में असफल नहीं हो सकता जो कलीसिया की हर गतिविधि को प्रेरित करता है, और वह है मानव व्यक्ति के प्रति ईश्वर का प्रेम।"
पोप ने कहा, ऐसे समय में जब, दुर्भाग्य से, शिक्षा स्वयं एक "व्यवसाय" बनती जा रही है, और महान अवैयक्तिक आर्थिक प्रणालियाँ स्कूलों और विश्वविद्यालयों में निवेश कर रही हैं जैसा कि वे शेयर बाजार में करते हैं, कलीसियाई संस्थानों को यह दिखाना होगा कि वे एक अलग प्रकृति के हैं तथा उसी के अनुकूल कार्य करना होना और अलग मानसिकता के अनुरूप बनना होगा।
पोप फ्राँसिस ने कहा कि एक शैक्षिक उद्यम केवल उत्तम कार्यक्रमों, कुशल उपकरणों या अच्छी व्यावसायिक प्रथाओं पर आधारित नहीं होता है। इसके विपरीत, काथलिक विश्वविद्यालय को एक बड़े जुनून से जीवंत होना चाहिए, उसे सत्य की साझा खोज करनी चाहिये और ज्ञान के एक समुदाय में रहते हुए प्रेम की उदारता को स्पष्ट रूप से प्रकाशित करना चाहिये।
पोप ने कहा कि काथलिक विश्वविद्यालयों को कार्यात्मकता या नौकरशाही में ही माहिर नहीं होना चाहिये क्योंकि मात्र शैक्षणिक डिग्रियाँ प्रदान करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि वे प्रत्येक व्यक्ति में "अस्तित्व" की इच्छा को जगायें और उसे संजोये रखें। गहरी मानवीय ज़रूरतों और युवाओं के सपनों और आकांक्षाओं पर खरे उतरने के लिये काथलिक विश्वविद्यालयों को प्रामाणिक अस्तित्व के मार्गों को प्रेरित कर प्रत्येक व्यक्ति के योगदान को एकीकृत करना होगा।