पोप ने मठवासियों को 'ईश्वर के लिए' और 'ईश्वर का' उपहार बताया
पोप फ्राँसिस ने मोंतेवर्जिने मठ की स्थापना की नौ सौवीं वर्षगांठ के अवसर पर मठाधीश, मठवासियों और सहयोगियों से मुलाकात की। पोप ने समुदाय को खुद को ईश्वर का उपहार बनाने और दूसरों के लिए ईश्वर का उपहार बनने हेतु प्रोत्साहित किया।
पोप फ्राँसिस ने 13 मई को वाटिकन के कनसिस्ट्री सभागार में मोंतेवर्जिने मठ की स्थापना की नौवीं शताब्दी की जयंती के अवसर पर मठ के मठाधीश, मठवासियों और सहयोगियों का स्वागत किया। इस मठ की स्थापना 1124 में संत गुग्लिल्मो दा वरचेली ने की थी।
पोप ने मठ की स्थापना पर प्रकाश डालते हुए कहा, “आपकी कहानी के मूल में कोई चमत्कार या असाधारण घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि एवेलिनो के धर्माध्यक्ष की सोच है, जो उस ऊंचे स्थान पर एक गिरजाघर बनाना चाहते थे और ईश्वर की सेवा में कुछ लोगों को इकट्ठा करना चाहते थे जो इसे प्रार्थना, धर्म प्रचार और दया का केंद्र बनाएं। इसलिए, हमारी बैठक में, मैं आपके जीवन और आपकी प्रेरिताई इन दो आयामों के महत्व को रेखांकित करना चाहूंगा, और ऐसा मैं संत अगुस्टीन के कुछ शब्दों के साथ कर रहा हूँ: ‘अपने आप को ईश्वर के लिए एक उपहार बनाएं, ईश्वर का एक उपहार बनें’।”
पोप ने कहा कि अपने आप को "ईश्वर के लिए उपहार" बनाएं। यही मठवासी बुलाहट का अर्थ है, जो ईश्वर के कार्य, अर्थात् प्रार्थना, को प्रत्येक क्रिया के मूल में रखता है।
पोप ने कहा कि मोंतेवर्जिने का माता मरियम का तीर्थालय पहाड़ की चोटी पर है जो पूरे इरपिनिया से दिखाई देता है, और तीर्थयात्रा के दौरान नई ताकत, सांत्वना और आशा पाने के लिए, अक्सर तीर्थयात्री समूह में या अकेले पैदल चलकर कई पारंपरिक गीतों को गाते हुए माँ मरियाम के दर्शन करने आते हैं। तीर्थालय में बड़े बादाम के आकार की आँखों वाली माँ मरियम की सुन्दर प्रतिमा है जो सभी तीर्थयात्रियों का स्वागत करने एवं आंसुओं व निवेदनों को स्वीकारने के लिए तैयार है। बालक येसु उनके साथ हैं। संत पापा ने कहा, “अपने आप को "ईश्वर के लिए उपहार" बनाने का मतलब है प्रार्थना करना कि आपकी भी बड़ी, अच्छी आंखें हों, और आप जिनसे भी मिलें, उन्हें कुंवारी माता, प्रभु की तरह, अपने दिलों में मौजूद दिखाएं।
पोप ने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इस तीर्थालय को में गुप्त रूप से लाए गए पवित्र कफन का स्वागत करने की कृपा मिली थी, ताकि इसे बमबारी के जोखिम से सुरक्षित रखा जा सके और वहां सम्मानित किया जा सके। यह भी उनके बुलाहट की एक सुंदर छवि है: अपने भीतर ईसा मसीह की छवि की रक्षा करना, इसे अपने भाइयों को दिखाने में सक्षम होना।
ईश्वर का उपहार
दूसरा आयाम : "ईश्वर का उपहार" होना। अर्थात्, अपने आप को उन लोगों के प्रति उदारतापूर्वक समर्पित करना जो तीर्थालय तक जाते हैं, ताकि, यूखारिस्त और मेल-मिलाप के संस्कारों द्वारा, वे महसूस करें कि उनका स्वागत किया गया है और उन्हें ईश्वर की माँ की छत्रछाया में ले जाया गया है। संत पापा ने कहा, “जो कोई भी आपसे मिलता है, उसके लिए आप ईश्वर की उपस्थिति का एक जीवंत और स्पष्ट संकेत बनें। आप दुनिया की मानसिकता और शैलियों के अनुरूप होने के प्रलोभन में न पड़ें, अपने आप को ईश्वर द्वारा लगातार रूपांतरित होने दें, अपने दिल को नवीनीकृत करें और उसमें बढ़ें (रोम 12:2 देखें), ताकि जो लोग प्रकाश की खोज में आपके पास आएं, वे निराश न हों।”
पोप ने मठवासियों को "मरिया का घर" में रहने के उपहार की याद दिलाते हुए अपना संदेश समाप्त किया, "इस उपहार को संजोकर रखें और इसे अपने भीतर विकसित करें ताकि आप इसे सभी के साथ साझा कर सकें।" “मैं आपको तहेदिल से आशीर्वाद देता हूँ और मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप मेरे लिए प्रार्थना करें।''