पुरोहितों के लिए सतत् प्रशिक्षण कार्यक्रम रोम में

वाटिकन में इन दिनों पुरोहितों के लिए सतत् प्रशिक्षण हेतु एक सेमिनार चल रहा है, जिसमें - प्रार्थना, प्रस्तुति एवं छोटे स्तर पर सिनॉड के रूप में सुनना शामिल है।

विश्वभर के करीब 60 देशों से प्रतिभागी, पुरोहितों के लिए सतत् प्रशिक्षण सेमिनार में 6 से 10 फरवरी को भाग लेने रोम आये हैं।   

सेमिनार की विषयवस्तु है, "ईश्वर का वरदान जो आपके भीतर है उसे पुनः जागृत करें।" जिसको वाटिकन के पुरोहित, सुसमाचार प्रचार एवं पूर्वी कलीसिया के लिए गठित विभागों द्वारा आयोजित किया गया है।

पुरोहितों के लिए परमधर्मपीठीय विभाग के अध्यक्ष कार्डिनल लाजरूस यू ह्यूंग सिक ने प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया और अपने अध्यक्ष नियुक्त किये जाने के दिन की याद की।

उन्होंने कहा, “उस दिन, मेरे एक बिशप दोस्त ने मुझसे कहा, अब आप यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि दुनिया के सभी पुरोहित खुश हैं।”

कार्डिनल ने कहा, “इन शब्दों को मैं कभी नहीं भूल सका और इस सेवा में यह हमेशा मेरे साथ है।”

प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजक कार्डिनल ह्यूंग ने कहा, आज कई पुरोहित "थके हुए और हतोत्साहित हैं, आज के समाज की चुनौतियों और अपनी जिम्मेदारी के बोझ से घबराये हुए हैं।" इसलिए, "पुरोहितों को आवश्यक समर्थन और सहयोग प्रदान करने का महत्व और इस सतत् प्रशिक्षण की आवश्यकता, तेजी से सामने आ गई है।"

एक साथ चलने (सिनॉडल) का माहौल
कार्डिनल ने प्रतिभागियों से कहा, “हम शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि आप केवल सीखने के लिए नहीं बल्कि एक निर्माता एवं नायक के रूप में आ रहे हैं। आप में से हरेक दक्ष है और अपने अनुभव के साथ है।”

कार्डिनल ने इताली पुरोहित एवं कार्यकर्ता ओरेस्ते बेनजी का हवाला दिया जिन्होंने एक बार कहा था, “कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इतना धनी है कि उसे कुछ सीखने की जरूर ही नहीं रह गई है, न ही कोई इतना गरीब है कि कुछ दे ही न सके।”

कार्डिनल ने कहा, “इसलिए सेमिनार में जितना संभव हो प्रार्थना शैली, सहभागिता और सिनॉडल दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।”

कार्डिनल ताग्ले: सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता के लिए प्रशिक्षण
सुसमाचार विभाग के अध्यक्ष कार्डिनल ताग्ले जो सेमिनार के सह-प्रायोजन हैं, उन्होंने भी पुरोहितों को सम्बोधित किया।

उन्होंने जोर देते हुए कहा, अभिषेक हो जाने पर पुरोहितों को यह नहीं सोचना चाहिए कि उनका प्रशिक्षण समाप्त हो गया, इसलिए “क्योंकि हम ईश्वर एवं कलीसिया की सेवा करने के लिए अभिषिक्त हुए हैं और हमें लगातार बढ़ने की जरूरत है।”  

दूसरी बात कार्डिनल ने पुरोहितों से कही कि उन्हें सतत् प्रशिक्षण की आवश्यकता "अपनी संस्कृति को पूर्ण मानने और उसका महिमामंडन करने की प्रवृत्ति से ऊपर उठने के लिए है।" एक अभिषिक्त पुरोहित को "अपनी संस्कृति की सराहना करने की सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता" सीखनी चाहिए, लेकिन साथ ही "अपनी संस्कृति के टूटेपन को भी स्वीकार करना" और "अन्य संस्कृतियों में अच्छे तत्वों की पुष्टि करना" भी सीखना चाहिए।

अंत में, यह देखते हुए कि कई पुरोहित उन लोगों के करीब हैं जो पीड़ित हैं, या वास्तव में स्वयं बहुत अधिक पीड़ित हैं, कार्डिनल ताग्ले ने ऐसे पुरोहित प्रशिक्षण का आह्वान किया जो "उन घावों और दर्दों को ठीक करे, जो आसानी से प्रतिशोध, निंदा और घृणा का कारण बन सकते हैं।"