कार्डिनल सेमेरारो : फ्रसाती और अकुतिस सड़क के युवा संत

वाटिकन मीडिया से बात करते हुए, संतों प्रकरण विभाग के प्रीफेक्ट कार्डिनल मर्सेलो सेमेरारो ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में पोप लियो 14वें द्वारा संत घोषित किए जानेवाले अगले दो युवा संतों की पवित्रता के बारे में बात की। ऐसे युवा जिन्होंने सुसमाचार को जीना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।

दो संत, जो जीवन से भरपूर थे, जिनके हृदय ख्रीस्त के प्रति प्रेम से प्रज्वलित थे, जो संसार में तो रहे, पर संसार के नहीं हुए। संत प्रकरण विभाग के प्रीफेक्ट कार्डिनल मार्सेलो सेमेरारो, पियर जोर्जो फ्रसाती (1901-1925) और कार्लो अकुतिस (1991-2006) की युवावस्था की पवित्रता का वर्णन करते हैं, जिन्हें पोप लियो 14वें रविवार, 7 सितंबर को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में संत घोषित करेंगे। वे अलग-अलग उम्र के युवा थे— पियर जोर्जो फ्रसाती की मृत्यु 24 वर्ष की उम्र में हुई, वहीं कार्लो अकुतिस की 15 वर्ष की आयु में—लेकिन गरीबों के प्रति उनके समर्पण और यूखरिस्त के प्रति उनकी भक्ति एक समान थी। कार्डिनल कहते हैं, "संतों के बारे में हमेशा कुछ न कुछ खास होता है, उनमें से कई एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं, और ख्रीस्तीय सद्गुणों के अभ्यास में कभी अलग नहीं होते; लेकिन इसके अलावे वे कई अन्य सद्गुणों का भी अभ्यास करते हैं।"

कोई कह सकता है कि पवित्रता एक स्वर की समता के समान होता है, लेकिन कार्डिनल सेमेरारो इसकी तुलना बहुफलक की छवि से करना पसंद करते हैं, जिसका इस्तेमाल पोप फ्राँसिस ने धर्मसभा के बाद के प्रेरितिक प्रबोधन "क्रिस्तुस विवित" में किया था, जब वे कलीसिया की रूपरेखा तैयार कर रहे थे। पोप फ्राँसिस लिखते हैं, "कलीसिया युवाओं को इसीलिए आकर्षित कर सकती है क्योंकि वह एक अखंड एकता नहीं है, बल्कि विविध वरदानों का एक ऐसा जाल है जिसे पवित्र आत्मा निरंतर उसमें (कलीसिया) उंडेलती रहती है, जिससे यह अपनी कमियों के बावजूद हमेशा नयी बनी रहती है।"

कार्डिनल प्रीफेक्ट कहते हैं, "पियर जोर्जो फ्रसाती, द्वितीय वाटिकन महासभा द्वारा प्रस्तुत विश्वस्त लोकधर्मी के आदर्श के प्रतीक हैं। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो जीवन में व्यस्त रहते हुए, दुनिया की विभिन्न वास्तविकताओं का एक विशिष्ट अनुभव रखे; परिषद इसे लोकधर्मियों का धर्मनिरपेक्ष स्वभाव कहती है, जिन्होंने सुसमाचार के साथ पूर्ण सामंजस्य में जीवन जिया और इसे हर पहलू में आत्मसात किया।"

कार्डिनल सेमेरारो, जिन्होंने "पियर जोर्जो फ्रसाती, आत्मा का पर्वतारोही" पुस्तक लिखी है, उनके अनुसार, तूरीन के इस युवक के गुप्त कार्य अंतियोख के संत इग्नासियुस द्वारा इफिसियों को लिखे पत्र के शब्दों की याद दिलाते हैं: "चुपचाप ख्रीस्तीय होना, बकबक करने, कहने पर भी ख्रीस्तीय न होने से बेहतर है।" बिना शोर मचाए भलाई करने की यह भावना बाद में फ्रसाती के अंतिम संस्कार में गरीबों, वंचितों और हाशिये पर पड़े उन लोगों की भारी भीड़ में प्रकट हुई, जिनकी उन्होंने हमेशा गुप्त रूप से मदद की थी। उन्होंने एक ऐसी मानवता दिखाई जिसने परिवार की आँखों से पर्दा हटाया, जो अपने बेटे के गरीबों के प्रति समर्पण से अनजान थे। कार्डिनल जोर देकर कहते हैं, "उनकी मृत्यु एक दिव्य अनुभूति थी," और उनका मानना​​है कि "फ्रसाती गरीबों के पास इसलिए गए क्योंकि उनकी मुलाकात येसु ख्रीस्त से हुई थी।"

अकुतिस एवं किशोर की पवित्रता
कार्लो अकुतिस के अंतिम संस्कार में भी कई गरीब लोग शामिल हुए। कार्लो अकुतिस ने भी गरीबों की मदद की थी, जिसकी जानकारी परिवारवालों को नहीं थी। यह "अकुतिस के माता-पिता के लिए भी आश्चर्य की बात थी; उन्होंने जो कुछ भी किया, एक किशोर, एक युवा व्यक्ति की क्षमता के साथ किया।"

कार्लो "एक ऐसे बालक की पवित्रता के प्रतीक हैं, जो यूखरिस्त को अपने जीवन का केंद्रबिंदु, स्वर्ग का मार्ग मानकर जीवन को अपनाने के लिए तैयार है।" "पवित्रता का यह अलग रूप हमें जीवन के अर्थ पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।" कार्डिनल रोमानो गार्डिनी अपने लेख, "जीवन की आयु" का उल्लेख करते हुए कहते हैं, "फ्रसाती हमें जीवन की एक विशेष आयु दिखाते हैं, अकुतिस हमें किशोरावस्था की दुनिया दिखाते हैं, जो आज शायद जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चरण है।" फिर भी, वे सामान्य युवा हैं, जो "सामान्य" पवित्रता का प्रदर्शन करते हैं, जैसा कि पोप फ्राँसिस बार-बार दोहराते थे।

इस तरह फ्रसाती एवं अकुतिस दो ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्हें लियो 14वें ने स्वयं हाल ही में युवा जयंती के दौरान नई पीढ़ियों के लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया था। वाटिकन के संत प्रकरण विभाग के प्रीफेक्ट कहते हैं, "कुछ संत ऐसे होते हैं, जैसा कि रहस्यवादी मेडलीन डेलब्रेल ने जोर देकर कहा था, जो नर्सरी में बढ़ते हैं क्योंकि वे एक धार्मिक संस्थान में होते और समर्पित जीवन अपनाते हैं। वहीं अकुतिस और फ्रसाती जैसे कुछ और भी संत हैं जो दुनिया में रह रहे, सड़क के संत हैं।"