कार्डिनल परोलिन : ‘हम युद्ध की अनिवार्यता को स्वीकार नहीं कर सकते

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के 1000 दिन पूरे होने पर एक साक्षात्कार में, वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो परोलिन ने शहीद यूक्रेनी लोगों की निरंतर पीड़ा की निंदा की और नरसंहार को रोकने के लिए मजबूत कूटनीतिक प्रयासों का आग्रह किया।

“हम युद्ध की अनिवार्यता को स्वीकार नहीं कर सकते!” 19 नवंबर को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के 1000 दिन पूरे होने पर वाटिकन मीडिया को दिए गए एक साक्षात्कार में कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन ने इस बात की जोरदार पुष्टि की। ब्राजील में जी20 के लिए रवाना होने की पूर्व संध्या, वाटिकन राज्य सचिव ने उम्मीद जताई कि यह दुखद दिन "हर किसी में जिम्मेदारी की भावना जगायेगा, खासकर, उन लोगों में जो चल रहे नरसंहार को रोक सकते हैं।"

इस साल के जुलाई माह में कार्डिनल परोलिन ने यूक्रेन के लावीव, ओदेसा और कीएव आदि शहरों का दौरा किया था।

साक्षात्कार में कार्डिनल परोलिन की पूरी बातचीत

प्रश्न : इस समय आपके मन में क्या चल रहा है?

कार्डिनल परोलिन : यह केवल एक गहरी उदासी ही हो सकती है क्योंकि हम उन खबरों के आदी नहीं हो सकते या उनके प्रति उदासीन नहीं रह सकते जो हर दिन हमें अधिक से अधिक मौतों और विनाश की खबर पहुंचाती हैं। यूक्रेन एक ऐसा राष्ट्र है जिस पर हमला किया गया है और वह शहादत झेल रहा है, जिसने युवा और वृद्ध दोनों तरह के पुरुषों की पूरी पीढ़ियों के बलिदान को देखा है, जिन्हें उनकी पढ़ाई, काम और परिवारों से अलग करके अग्रिम मोर्चे पर भेजा गया है। यह उन लोगों की त्रासदी का अनुभव कर रहा है जो अपने प्रियजनों को बम या ड्रोन हमलों में मरते हुए देखते हैं और उन लोगों की पीड़ा जो अपने घर खो चुके हैं या युद्ध के कारण अनिश्चित परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं।

प्रश्न : हम यूक्रेन को मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं?

कार्डिनल परोलिन : सबसे पहले, एक ख्रीस्तीय विश्वासी के रूप में हम प्रार्थना कर सकते हैं और हमें प्रार्थना करना चाहिए। हमें ईश्वर से "युद्ध के सरदारों" के हृदयों को बदलने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। हमें मरियम की मध्यस्थता से प्रार्थना करते रहना चाहिए, जिन्हें विशेष रूप से उन देशों में सम्मानित किया जाता है, जिन्होंने कई शताब्दियों पहले बपतिस्मा प्राप्त किया था।

दूसरा, हम यह सुनिश्चित करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध कर सकते हैं कि हमारी एकजुटता उन लोगों के लिए कभी कम न हो जो पीड़ित हैं, जिन्हें देखभाल की आवश्यकता है, जो ठंड को सहन करते हैं, या जिनके पास कुछ नहीं है। यूक्रेन में कलीसिया लोगों के लिए बहुत कुछ कर रहा है, युद्ध में एक राष्ट्र की दुर्दशा में हर दिन साझा कर रहा है।

तीसरा, हम एक समुदाय के रूप में, एक व्यक्ति के रूप में, शांति की मांग करने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद कर सकते हैं। हम चिल्ला सकते हैं, शांति पहलों को सुनने और विचार करने के लिए कह सकते हैं। हम युद्ध और पागल हथियारों की दौड़ को अस्वीकार कर सकते हैं, जिसकी पोप फ्रांसिस लगातार निंदा करते रहते हैं। जो कुछ हो रहा है, उसके सामने असहायता की भावना समझ में आती है, लेकिन यह और भी सच है कि एक मानव परिवार के रूप में, हम एक साथ बहुत कुछ कर सकते हैं।

प्रश्न : आज हथियारों की आवाज को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?  

कार्डिनल परोलिन : “कम से कम हथियारों की आवाज रोकना” कहना सही है क्योंकि न्यायपूर्ण शांति के लिए बातचीत करने में समय लगता है, जबकि इसमें शामिल सभी पक्षों द्वारा साझा किया गया युद्धविराम, बस कुछ ही घंटों में संभव हो सकता है, अगर इच्छाशक्ति हो। जैसा कि संत पापा अक्सर कहते हैं, हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो युद्ध पर नहीं, बल्कि शांति पर दांव लगाने को तैयार हों, ऐसे व्यक्ति जो न केवल यूक्रेन बल्कि पूरे यूरोप और दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने से उत्पन्न होनेवाली भारी ज़िम्मेदारी को समझते हों।

यह युद्ध हमें परमाणु टकराव के खतरे की ओर खींच सकता है, गर्त में ढकेल सकता है। वाटिकन हरसंभव कोशिश कर रहा है, सभी लोगों के लिए बातचीत के माध्यम को खुला रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे इतिहास की घड़ी पीछे चली गई हो। कूटनीतिक प्रयास, धैर्यपूर्ण संवाद और रचनात्मक बातचीत अतीत के अवशेष बनकर गायब हो गए हैं। पीड़ित, निर्दोष लोग ही इसकी कीमत चुका रहे हैं। युद्ध बच्चों और युवा पीढ़ियों से भविष्य चुरा रहा है, विभाजन पैदा कर रहा है और नफरत को बढ़ावा दे रहा है।

हमें ऐसे राजनेताओं की कितनी सख्त जरूरत है, जो दूरदर्शी हों, जो विनम्रता के साहसी कार्य करने में सक्षम हों, जो अपने लोगों की भलाई के बारे में सोचते हों। चालीस साल पहले, रोम में, अर्जेंटीना और चिली के बीच शांति संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें वाटिकन की मध्यस्थता से बीगल चैनल विवाद का समाधान किया गया था। कुछ साल पहले ही, दोनों राष्ट्र युद्ध के कगार पर थे, सेनाएँ पहले से ही जुटी हुई थीं। सब कुछ रोक दिया गया था, ईश्वर का शुक्र है: अनगिनत लोगों की जान बच गई, आँसू रूक गए। आज यूरोप के दिल में इस भावना को फिर से क्यों नहीं खोजा जा सकता है?

प्रश्न : क्या आप मानते हैं कि आज भी समझौता के लिए जगह है?

कार्डिनल परोलिन : भले ही संकेत सकारात्मक न हों, लेकिन जो कोई भी मानव जीवन की पवित्रता को सही मायने में महत्व देता है, उसके लिए बातचीत हमेशा संभव और वांछनीय है। बातचीत करना कमज़ोरी की निशानी नहीं बल्कि साहस की निशानी है। "ईमानदार बातचीत" और "सम्मानजनक समझौते" का मार्ग वह मुख्य मार्ग है जिसका अनुसरण उन लोगों को करना चाहिए जो लोगों के भाग्य को अपने हाथों में रखते हैं। संवाद तभी संभव है जब पक्षों के बीच कम से कम एक न्यूनतम स्तर का विश्वास हो, जिसके लिए सभी की ओर से सद्भाव की आवश्यकता होती है। यदि विश्वास थोड़ी भी नहीं है और यदि कार्यों में ईमानदारी की कमी है, तो सब कुछ स्थिर रहता है।