विकासशील राष्ट्रों की मदद करें, पोप फ्राँसिस
पोप फ्राँसिस ने अपनी 46 वीं प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन राजनीतिज्ञों एवं नागर अधिकारियों एवं समाज के ज़िम्मेदार लोगों से आग्रह किया कि वे विकासशील देशों की मदद का प्रयास करे।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि एक छोटा सा देश लक्समबर्ग जिसकी अर्थव्यवस्था समृद्ध है और जहाँ प्रति व्यक्ति करोड़पतियों का घनत्व विश्व में सबसे अधिक है, वह विकासशील देशों में स्थितियों को सुधारने में मदद करने के लिए अपने संसाधनों को समर्पित करेगा। एक दिन के दौरे पर आए 87 वर्षीय सन्त पापा ने सुझाव दिया कि विदेशी सहायता में वृद्धि से यूरोप में प्रवेश करने के इच्छुक शरणार्थियों और आप्रवासियों के प्रवाह को रोकने में मदद मिल सकती है।
धन में ज़िम्मेदारी शामिल
लक्समबर्ग के नियो-बारोक प्रासाद में राजनीतिक और नागरिक नेताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए सन्त पापा ने कहा, "हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धन होने में जिम्मेदारी भी शामिल है।" उन्होंने कहा, "मैं निरंतर सतर्कता बरतने का आग्रह करता हूं ताकि सर्वाधिक वंचित राष्ट्रों को उनकी दरिद्रतापूर्ण परिस्थितियों से उभरने में मदद मिल सके।"
पोप फ्रांसिस के लिए यह एक दुर्लभ यूरोपीय यात्रा है, जिसके दौरान वे लक्समबर्ग की एक दिवसीय तथा बैल्जियम की तीन दिवसीय यात्रा कर रहे हैं। यह ज्ञात है कि पोप फ्राँसिस उन जगहों पर जाते रहे हैं जहां पहले कभी भी कलीसिया के कोई परमाध्यक्ष नहीं गये थे तथा जहाँ काथलिक धर्मानुयायी अल्पसंख्यक हैं। ग़ौरतलब है कि लक्समबर्ग की 6 लाख 60,000 की आबादी में से लगभग आधे विदेशी नागरिक हैं, जो मुख्य रूप से पड़ोसी देशों जैसे फ्रांस, बैल्जियम और जर्मनी से हैं। काथलिक धर्मानुयायियों की संख्या यहाँ दो लाख 71 हज़ार है।
आप्रवासियों की देखभाल को अपने 11 वर्षीय परमाध्यक्षीय कार्यकाल में प्राथमिकता देनेवाले पोप फ्राँसिस ने राजनीतिक और नागरिक नेताओं से कहा कि लक्समबर्ग ने "आप्रवासियों और शरणार्थियों का स्वागत करने और उन्हें एकीकृत करने के मामले में आगे बढ़ने का उदाहरण पेश किया है।"
लक्समबर्ग के प्रधानमंत्री ल्यूक फ़्रीडेन ने काथलिक कलीसिया के विश्वव्यापी परमधर्मगुरु पोप फ्राँसिस का स्वागत करते हुए अपने अभिवादन में इस बात का आश्वासन दिया कि लक्समबर्ग का संविधान मानवीय गरिमा को "मौलिक अधिकार" घोषित करता है। उन्होंने कहा, "हममें से प्रत्येक को यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए कि यह गरिमा बनी रहे।"
गुरुवार सन्ध्या पोप फ्रांसिस ने लक्समबर्ग के नोत्र-दाम माँ मरियम को समर्पित महागिरजाघर में आयोजित एक कार्यक्रम में स्थानीय काथलिकों से मुलाकात की तथा उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान किया। इस अवसर पर धुँधले, बूंदाबांदी वाले आसमान के नीचे छाते पकड़े सैकड़ों लोगों ने 17वीं सदी के उक्त महागिरजाघर बाहर खड़े रहकर सन्त पापा फ्राँसिस का हार्दिक स्वागत किया। डूकाल प्रासाद के आस-पास की संकरी गलियाँ भी शुभचिंतकों से भरी हुई थीं, जो सुबह की बारिश का सामना करते हुए पापामोबिल के ओर-छोर सन्त पापा की एक झलक पाने के लिए आए थे। एक प्रदर्शनकारी बैरिकेड को लांघकर उनके करीब जाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उसे तुरंत रोक लिया।
पोप फ्रांसिस ने यूरोप में भौगोलिक चौराहे के रूप में देश की स्थिति को याद किया, जिस पर दोनों विश्व युद्धों के दौरान आक्रमण किया गया था, यहीं से "राष्ट्रवाद और घातक विचारधाराओं के अतिरंजित रूपों के कारण होने वाले झगड़ों और युद्धों" को रोकने में सहायता करने की सन्त पापा ने अपील की तथा कहा, "लक्समबर्ग सभी को युद्ध की भयावहता के विपरीत शांति के लाभों से अवगत करा सकता है।"