पोप: गरीबी के निर्जनप्रदेश में स्वयंसेवक आशा और नई मानवता के प्रतीक

स्वयंसेवकों की जयन्ती के अवसर पर रविवार 9 मार्च को, वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में में हजारों तीर्थयात्री स्वयंसेवकों ने एक समारोही ख्रीस्तयाग में भाग लिया, जिसका संचालन समग्र मानव विकास के लिए गठित विभाग के प्रीफेक्ट कार्डिनल माईकेल चरणी एस. जे. ने की। कार्डिनल चरणी ने संत पापा के उपदेश को प्रस्तुत किया जिसमें वे कहते हैं, “पीड़ितों, कैदियों, युवा और वृद्धों प्रति आपका समर्पण, पूरे समाज में आशा जगाता है।”

उन्होंने चालीसा काल के पहले रविवार के धर्मविधिक पाठों पर आधारित चिंतन को प्रस्तुत करते हुए कहा, “आत्मा येसु को निर्जन प्रदेश ले चला” (लूका 4:1)। हर साल, हमारी चालीसा की यात्रा, वहीं से प्रभु का अनुसरण करके और उस अनुभव को महसूस करके शुरू होती है, जिसे उन्होंने हमारी भलाई के लिए बदल दिया। जब येसु ने निर्जन प्रदेश में प्रवेश किया, तो एक निर्णायक परिवर्तन हुआ : मौन का स्थान सुनने का स्थान बन गया।

येसु की यात्रा
संत पापा ने कहा, “निर्जन प्रदेश में, हमारी सुनने की क्षमता की जाँच होती है, क्योंकि दो पूरी तरह से अलग आवाजों के बीच चुनाव करना होता है। इस संबंध में, सुसमाचार हमें बताता है कि येसु की यात्रा सुनने और आज्ञाकारिता के कार्य से शुरू हुई: पवित्र आत्मा, ईश्वर की शक्ति, उन्हें उस स्थान पर ले जाती है जहाँ न तो जमीन से कुछ फसल उगता और न ही आसमान से कुछ बरसता है। निर्जन प्रदेश में हम भौतिक और आध्यात्मिक गरीबी का अनुभव करते हैं, हमें रोटी और ईश्वर के वचन की आवश्यकता होती है।

येसु एक सच्चे मानव के रूप में उस भूख को महसूस करते हैं (पद. 2) चालीस दिनों तक वे एक ऐसे शब्द के द्वारा परीक्षा में पड़े जो पवित्र आत्मा से नहीं, बल्कि दुष्ट शैतान से आया था। चालीस दिनों के उपवास की शुरूआत करते हुए, आइए हम इस सच्चाई पर चिंतन करें कि हम भी परीक्षा में पड़ते हैं, फिर भी अकेले नहीं हैं। निर्जन प्रदेश में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए येसु हमारे साथ हैं। ईश्वर के पुत्र ने मनुष्य को केवल बुराई से लड़ने का उदाहरण नहीं दिये हैं। वे हमें इससे भी बड़ी चीज देते हैं: इसके हमलों का विरोध करने और अपनी यात्रा पर दृढ़ रहने की शक्ति।

तो आइए, हम येसु के प्रलोभन और अपने स्वयं के प्रलोभन के तीन पहलुओं पर चिंतन करें: इसकी शुरुआत, यह कैसे घटित होती है और इसका क्या परिणाम होता है। इस तरह, हम अपने मन-परिवर्तन की यात्रा के लिए प्रेरणा पाएँगे।

प्रलोभन की शुरूआत
येसु का प्रलोभन जानबूझकर था। प्रभु अपनी इच्छा शक्ति दिखाने के लिए निर्जन प्रदेश नहीं जाते, बल्कि पिता की आत्मा के प्रति पुत्रवत खुलेपन के कारण जाते हैं, जिनके मार्गदर्शन को वे तत्परता एवं स्वतंत्रता से स्वीकार करते हैं।

दूसरी ओर, हमारा प्रलोभन जानबूझकर नहीं है। बुराई हमारी स्वतंत्रता से पहले है, जो हमारे अंदर से एक आंतरिक छाया और एक निरंतर खतरे की तरह हमला करती है। जब भी हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमें परीक्षा में न डाल (मत्ती 6:13), तो हमें याद रखना चाहिए कि उन्होंने पहले ही येसु, अपने देहधारी शब्द के माध्यम से उस प्रार्थना का उत्तर दे दिया है, जो हमेशा हमारे साथ रहते हैं।

प्रभु हमारे करीब हैं और हमारी परवाह करते हैं, खासकर, परीक्षा और अनिश्चितता के समय में, जब प्रलोभन देने वाला अपनी आवाज बुलंद करता है। वह झूठ का पिता है (यो. 8:44), वह विकृत और दुराग्रही है, क्योंकि वह ईश्वर के वचन को बिना समझे जानता है। जैसा कि उसने अदन की वाटिका में आदम के दिनों से किया था (उत्पत्ति 3:1-5), वैसा ही वह अब निर्जन प्रदेश में नए आदम येसु के साथ भी करता है।

येसु की परीक्षा
यहाँ हम देखते हैं कि येसु की परीक्षा किस तरह ली जाती है, अर्थात्, ईश्वर, अपने पिता के साथ संबंध के माध्यम से। शैतान अलग करता है और बांटता है, जबकि येसु ईश्वर और मनुष्य को जोड़ते हैं, मध्यस्थ बनते हैं। अपनी विकृति में, शैतान उस बंधन को नष्ट करना चाहता है और येसु को अपनी स्थिति का फायदा उठाने के लिए बहकाता है।

वह कहता है: "यदि तू ईश्वर का पुत्र है, तो इस पत्थर को आज्ञा दे कि यह रोटी बन जाए" (लूका 4:3), और फिर: "यदि तू ईश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को मंदिर के शिखर से नीचे गिरा दे" (पद 9)। इन प्रलोभनों के जवाब में, ईश्वर के पुत्र येसु, आत्मा के संचालन में, पिता के साथ अपने पुत्रवत संबंध को जीने का तरीका चुनते हैं। वे ईश्वर के साथ अपने अनूठे और अनन्य संबंध को बनाये रखते हैं, जिनके वे एकलौटे बेटे हैं, एक ऐसा संबंध जो  किसी को छोड़े बिना सभी को गले लगाता है। पिता के साथ येसु के संबंध को पूरी तरह समझा नहीं जा सकता (फिलि 2:6), न ही घमंड किया जा सकता है, ताकि सफलता हासिल की जाए और अनुयायियों को आकर्षित किया जाए, बल्कि यह एक उपहार है जिसे वे हमारे उद्धार के लिए दुनिया के साथ साझा करते हैं।

हमारी परीक्षा
हम भी ईश्वर के साथ हमारे संबंध में परीक्षा में पड़ते हैं, लेकिन बिलकुल अलग तरीके से। शैतान हमारे कान में फुसफुसाता है कि ईश्वर वास्तव में हमारे पिता नहीं हैं, उन्होंने हमें सचमुच त्याग दिया है। शैतान हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि भूखों के लिए रोटी नहीं है, पत्थरों से तो बिल्कुल भी नहीं, जब हम गिर रहे होते हैं तो स्वर्गदूत हमारी मदद के लिए नहीं आते, और सबसे बड़ी बात कि दुनिया दुष्ट शक्तियों के हाथों में है जो अपनी अहंकारी योजनाओं और युद्ध की क्रूरता से राष्ट्रों को कुचल देती हैं।

लेकिन, जब शैतान हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि प्रभु हमसे दूर हैं, और हमें निराशा के गर्त में ढकेलता है, तब ईश्वर हमारे और करीब आ जाते हैं, दुनिया के उद्धार के लिए अपना जीवन दे देते हैं।