पोप : ख्रीस्तीय एकता सिनोडलिटी की यात्रा

पोप फ्रांसिस ने वाटिकन के पोर्टोमार्तिरी, आदि शहीद प्रांगण में 11 अक्टूबर को एकतावर्धक प्रार्थना सभा में भाग लिया।

प्रार्थना सभा में दिये जाने वाले अपने संदेश को संत पापा फ्रांसिस ने नहीं पढ़ा जिस में उन्होंने लिखा, “जिस महिमा को तुने मुझ प्रदान किया मैं उस महिमा को उन्हें दिया है।” दुःखभोग के पहले येसु के द्वारा कहे गये ये शब्द उन शहीदों के जीवन में सटीक बैठते हैं जिन्होंने येसु ख्रीस्त का साक्ष्य दिया। यहाँ हम रोमन कलीसिया के प्रथम शहीदों की याद करते हैं। यह महागिरजाघर उस स्थान पर निर्मित हैं जहाँ उन्हें अपना रक्त बहाया है। ये शहीह इस बात की सुनिश्चितता प्रदान करें कि प्रार्थना में येसु ख्रीस्त की ओर आते हुए हम एक दूसरे से संयुक्त रहते हैं। यूनितातिस रेदेन्तेग्रासियो जिसकी 60वीं सालगिराह हम मना रहे हैं हमें कहता है, ख्रीस्तीय जितना निकट येसु के हैं उतना निकट वे एक दूसरे के संग होते हैं।

आज जब हम द्वितीय वाटिकन महासभा के शुरूआत की याद करते जो कलीसिया में आधिकारिक रुप से एकतावर्धक प्रेरिताई की ओर हमारा आकृष्ट करता है, हम एक साथ कलीसिया के प्रतिनिधि के रुप में भातृत्व में जमा होते हैं। पोप योहन पौल 13वें की बातों के उदृधृत करते हुए पोप फ्रांसिस ने लिखा, “आप की प्रशंसनीय उपस्थित और मनोभाव ईश्वर की कलीसिया में धर्माध्यक्ष स्वरुप... मेरे हृदय को उद्वेलित करता है, यह मुझे अपने हृदय की अभिलाषा को व्यक्त करने को प्रोत्साहित करता है, यह हमें उस दिन तक कार्य करने और कष्ट सहने को प्रेरित करे जब अंतिम भोज में मसीह की प्रार्थना हमारे लिए पूरी होगी।” शहीदों की  प्रार्थनाओं के संग हम अपने को येसु की उसी प्रार्थना में संयुक्त करें, पवित्र आत्मा में उसे अपना बनायें।

ख्रीस्तीय एकता और सिनोडलिटी
ख्रीस्तीय एकता और सिनोडलिटी जुड़ी हुई है। वास्तव में, सिनोडलिटी वह मार्ग है जिसे तीसरी सदी में ईश्वर कलीसिया से आशा करते हैं, और सभी ख्रीस्तीयों को इसमें चलने की जरुरत है। सिनोडलिटी की यात्रा एकतावर्धक है और होना चाहिए जैसे की एकतावर्धक यात्रा सिनोडल है। इन दोनों प्रक्रियाओं में, हमें कुछ नया बनाने का नहीं है, बल्कि यह उस उपहार का स्वागत करने और उसे फलदायी बनाना है जो हमें पहले से ही प्राप्त है। और एकता का उपहार कैसा प्रतीत होता हैॽ धर्मसभा के अनुभव हमें इस उपहार के कुछ पहलुओं को खोजने में मदद करता है।

एकता स्वर्ग से आती है 
एकता एक उपहार है, एक आशातीत उपहार। हम इसे आगे नहीं ले जाते नहीं बल्कि इसकी असल शक्ति पवित्र आत्मा हैं जो हमें बृहृद एकता की ओर अग्रसर करते हैं। जिस भांति हम यह नहीं जानते कि सिनोड का परिणाम क्या होने वाला है न ही उस एकता के बारे में कुछ जानते हैं जिसके लिए हम सभी बुलाये गये हैं। सुसमाचार हमें बतलाता है कि येसु अपनी प्रार्थना में “स्वर्ग की ओर देखते हैं”, एकता धरती से नहीं अपितु स्वर्ग से आती है। इस उपहार के समय और स्वरुप को हम नहीं जानते हैं। हमें इस “ईश्वरीय दिव्यता के मार्ग में बिना कोई बाधा न डालते और पवित्र आत्मा की भावी प्रेरणाओं को बिना बाधित कोत निर्णय लिये” इसे प्राप्त करना चाहिए, जिसे कि यूनितातिस रेदेन्तेग्रासियो हमें कहता है। पुरोहित पौल कुएतियेर इसके बारे में कहा करते थे, “ख्रीस्तीय एकता उसी रुप में स्थापित होना चाहिए जैसे कि ख्रीस्त की इच्छा है” और जिन माध्यमों के द्वारा वे चाह रखते हैं।”

एकता एक यात्रा
सिनोड प्रक्रिया से हम एक दूसरी बात को सीखते हैं जो एकता को एक यात्रा के रुप प्रस्तुत करता है। यह आपसी सेवा, वार्ता, दूसरे ख्रीस्तीयों के संग सहयोग के संग विकसित होता है, जहाँ हम येसु ख्रीस्त की सेवा  भावना को पाते हैं। हम अपनी ओर से पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित होते हैं या एक यात्रा में भाइयों की भांति। ख्रीस्तीय एकता विकसित होती और जमसामान्य यात्रा में प्रौढ़ता को प्राप्त करती है, जैसे हम दो शिष्यों को एम्मऊस की राह में पुनरूजीवित येसु की बगल में चलता पाते हैं।

एकता शांति है
तीसरी शिक्षा एकता को हम शांति स्वरुप पाते हैं। सिनोड हमें कलीसिया कि सुन्दरता को विभिन्न चेहरों में पुनः खोजने को मदद करती है। अतः एकता अपने में एकरूपता नहीं है या तोलमोल का परिणाम या प्रतिसंतुलन। ख्रीस्तीय एकता विभिन्न कार्य के मध्य शांति है जो पवित्र आत्मा में शुरू होती है। शांति पवित्र आत्मा का मार्ग है जैसे कि संत बसील कहते हैं वे स्वयं शांति हैं। हमें एकता के मार्ग को येसु के प्रेम में अनुसरण करने की जरुरत है जिनकी सेवा के लिए हम बुलाये गये हैं। इस मार्ग में बढ़ते हुए हम अपने को कठिनाइयों से रुकने ने दें। हम पवित्र आत्मा पर विश्वास करें, जो हम विभिन्नताओं में भी शांतिमय एकता में बनाये रखते हैं।

सिनोडलिटी के रुप में एकता अंतत हमारे साक्ष्य हेतु जरुरी है, एकता हमारे लिए प्रेरिताई हेतु है। “जिससे वे एक हो जाये...जिससे दुनिया उनमें विश्वास करे।” यह धर्मसभा के आचार्यों का विश्वास था जिसे उन्होंने घोषित किया, विभाजन “विश्व के लिए ठोकर का कारण बनती है और सुसमाचार के प्रचार को सभी रूपों में हानि पहुंचाती है।” एकतावार्धक वार्ता की शुरूआत सामान्य साक्ष्य से शुरू हुई- एक दूसरे के लिए न कि दूसरों से विखंडित। इस संदर्भ में रोम से शहीद हमें आज भी इस बात की याद दिलाते हैं कि विभिन्न परांपराओं के ख्रीस्तीय जो ख्रीस्त में विश्वास के कारण यहाँ सोते हैं अपने में एकतावर्धक वार्ता लोहू को धारण करते हैं। उनका साक्ष्य किसी शब्दों से अधिक शक्तिशाली रुप में हम कहता है क्योंकि एकता को हम येसु के क्रूस से जन्मता पाते हैं।