दुश्मनी के बीच मैत्री के प्रसार हेतु पोप को धन्यवाद
पोप को लिखे एक पत्र में, रब्बियों के एक समूह और यहूदी-ईसाई संवाद के विद्वानों ने सन्त पापा को "समस्त विश्व के यहूदियों के प्रति दोस्ती का हाथ बढ़ाने" और "सामीवाद-विरोधी और यहूदी-विरोधी भावनाओं के प्रति उनके सक्रिय विरोध" के लिए आभार व्यक्त किया है।
पत्र में कहा गया, "जहां कभी प्रतिद्वंद्विता थी, वहाँ मैत्री, जहां दुश्मनी और अवमानना थी, वहाँ सहानुभूति उत्पन्न करने के कलीसिया के प्रयास ने हमारे समुदायों को परिवर्तित कर दिया है और हमारे इतिहास पर एक स्थायी छाप छोड़ी है। हमें परम पावन पोप फ्राँसिस के पत्र में इस प्रतिबद्धता की पुष्टि मिलती है कि ऐसे समय में जब अस्थिरता उन रिश्तों को भी ख़तरे में डाल रही है जो कई दशकों से विकसित हो रहे हैं यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।"
ये शब्द कई यहूदी रब्बियों और यहूदी-ख्रीस्तीय संवाद के विद्वानों द्वारा सन्त पापा फ्राँसिस को भेजे गए एक पत्र का प्राण हैं। पत्र पर रब्बी जेहोशुआ आहरेन्स (फ्रैंकफर्ट/बेर्न), रब्बी यित्ज़ ग्रीनबर्ग (जेरूसालेम/न्यूयॉर्क), रब्बी डेविड मेयर (पेरिस/रोम), कर्मा बेन जोहानन (जेरूसालेम) और मल्का ज़ीगर सिमकोविच (शिकागो) द्वारा हस्ताक्षर किये गये।
ग़ौरतलब है कि इसी समूह ने 7 अक्टूबर को हमस आतंकवादी समूह के आक्रमण और दुनिया भर में यहूदी-विरोध में वृद्धि के बाद यहूदियों और ईसाइयों के बीच निकटता का आह्वान करने के लिए पोप फ्राँसिस को पत्र लिखा था।
2 फरवरी को, पोप फ्राँसिस ने "इस्राएल में यहूदी भाइयो और बहनो" को एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने यहूदी लोगों के प्रति कलीसिया की एकजुटता सुनिश्चित की थी, और साथ ही, पवित्र भूमि में रहने वाले सभी धार्मिक एवं जातीय पृष्ठभूमि के समस्त लोगों के बीच शीघ्रातिशीघ्र मेल-मिलाप का आह्वान किया गया।
पत्र पर हस्ताक्षर करनेवाले रब्बियों एवं विद्वानों ने पोप फ्राँसिस के प्रति धन्यावाद ज्ञापित करते हुए लिखाः "जो शब्द दिल से निकलते हैं, वे दिल में उतर जाते हैं"। उन्होंने कहा, "महान संकट के इस समय में, दुनिया भर में और विशेष रूप से इस्राएल में यहूदियों के प्रति आपके द्वारा बढ़ाए गए हाथ से और आपकी सक्रिय रूप से यहूदी विरोधी भावना का विरोध करने की प्रतिबद्धता में हमें सांत्वना मिलती है, जिसने हाल ही में ऐसी तीव्रता प्राप्त की है जिससे हममें से अधिकांश लोग अपने जीवनकाल के दौरान अज्ञात रहे हैं।"
पत्र में आगे कहा गया, "हम एक ऐतिहासिक क्षण में रह रहे हैं जिसके लिए दृढ़ता, आशा और साहस की आवश्यकता है।" फिर, द्वितीय वाटिकन महासभा के विश्व पत्र "नोस्त्रा एताते" को उद्धृत कर पत्र में कहा गया, "नोस्त्रा एताते की परिवर्तनकारी शक्ति हमारे लिए एक प्रेरणा है, जो दर्शाती है कि सबसे कठिन संघर्षों में भी भाईचारे को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। हम अपने काथलिक भाइयों और बहनों के साथ इस विश्वास में शामिल होते हैं कि धर्म रचनात्मक शक्तियाँ हो सकते हैं, जो अन्यथा बंद रहनेवाले रास्तों को भी खोलने की शक्ति से परिपूर्ण हैं।"
पत्र में कहा गया कि द्वितीय वाटिकन महासभा की घोषणा के 60 वर्षों बाद "आज इस दुखद समय की कठिनाइयों के मद्देनज़र यह ज़रूरी है कि हम अपने संबंधों को नवीनीकृत करें। वर्तमान तनावों के बावजूद, हम आश्वस्त हैं कि हमारे संबंध कठिनाइयों को पार करने और आगे बढ़ने के लिए काफी मजबूत हैं, तथापि अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है।"
पत्र इस बात को याद करते हुए समाप्त किया गया कि "इस भूमि के निवासियों का दर्द, चाहे वे यहूदी, ईसाई, मुस्लिम या फिर अन्य ही क्यों न हों, हम सभी को पीड़ा पहुँचाता है तथा हमारे जीवन और भविष्य को प्रभावित करता है। इस खंडित दुनिया को ठीक करने का दायित्व, यहाँ और अभी से शुरू होकर, हमारे अस्तित्व में प्रवेश करता है।"