अपनी विलुप्ति को चुनौती देता ईराकी ख्रीस्तीय समुदाय

इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के आतंकवादियों द्वारा मातृभूमि से खदेड़ दिए जाने के एक दशक बाद, ईराक के ख्रीस्तीय समुदाय ने अटूट लचीलापन दिखाया है, जो जैतून के पेड़ों के समान काटे और जलाये जाने के बाद भी फल-फूल रहे हैं, यह बात आदिबेने के सीरियाई काथलिक महाधर्माध्यक्ष निजार सेमान ने कही।

एड दू द चर्च इन नीड (ए सी एन) द्वारा आयोजित एक ऑनलाईन सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए महाधर्माध्यक्ष सेमान ने इराक के ईसाईयों की दृढ़ भावना की तुलना जैतून के पेड़ों की स्थायी प्रकृति से की।

उन्होंने दस साल पहले शुरू हुए भयावाह आतंक की याद कर कहा, “आईएसआईएस हमें खत्म करना चाहता था, लेकिन वे असफल रहे।” यह रूपक एक ऐसे समुदाय का सार प्रस्तुत करता है जो न केवल जीवित रहने के लिए बल्कि सभी बाधाओं के बावजूद आगे बढ़ने के लिए दृढ़ संकल्पित है।

सम्मेलन में क्षेत्र में जारी भू-राजनीतिक तनाव पर भी प्रकाश डाला गया।

एरबिल के खदलेई महाधर्माध्यक्ष बशर वारदा ने इन तनावों के बारे में चिंता व्यक्त की, तथा ख्रीस्तीयों की अनिश्चित स्थिति पर गौर किया, जो अक्सर व्यापक क्षेत्रीय संघर्षों में खुद को लक्षित पीड़ित के रूप में पाते हैं।

आज आईएसआईएस से सीधे धमकी नहीं मिलने के बावजूद, इसकी विभाजनकारी विचारधारा के अवशेष अभी भी मौजूद हैं, जो सांप्रदायिक सद्भाव के लिए चुनौतियाँ पेश कर रहे हैं।

महाधर्माध्यक्ष सेमान ने चल रहे सांप्रदायिक अलगाव की आलोचना की, जो समुदायों को “अलग-थलग टापूओं” में विभाजित कर रहा है, जिसमें बातचीत और आपसी समझ की कमी है।

उन्होंने शिक्षा और कानूनी ढाँचों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया जो धार्मिक भेदभाव पर मानवीय गरिमा को प्राथमिकता दी, जिसका उद्देश्य सम्मान और समावेश की संस्कृति को विकसित करना है।
एड टू द चर्च इन नीड ने पुनर्निर्माण परियोजनाओं को वित्तपोषित करके निनवे मैदानों में ख्रीस्तीयों की उपस्थिति को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे कई लोगों को वापस लौटने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। एसीएन इंटरनेशनल की कार्यकारी अध्यक्ष रेजिना लिंच ने कहा कि इराक के ख्रीस्तीय समुदाय को संगठन का बहुआयामी समर्थन, 2014 में आपातकालीन सहायता के साथ शुरू हुआ और व्यापक पुनर्निर्माण प्रयासों का कारण बना रहा।
उन्होंने कहा, “बीते वर्षों में, हमने सबसे पहले विस्थापितों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मदद की, फिर आवास और अंत में, उनके घरों के पुनर्निर्माण में मदद की, ताकि जो लोग अपने शहरों और गांवों में लौटना चाहते थे, वे आईएसआईएस को पीछे धकेलने के बाद ऐसा कर सकें।”

आज, कराकोश जैसे शहरों में सुधार के संकेत स्पष्ट हैं, जहाँ आईएसआईएस से पहले की लगभग आधी ख्रीस्तीय आबादी वापस लौट आई है।

हालाँकि, समुदाय का पुनः एकीकरण इस वास्तविकता से प्रभावित है कि जो लोग विदेश में बस गए हैं, उनमें से कई शायद कभी स्थायी रूप से वापस न लौटें, खासकर, वे लोग जिनके बच्चे हैं और जो अब विदेशी भूमि पर बस गए हैं।
महाधर्माध्यक्ष वार्डा ने पोप फ्राँसिस छात्रवृत्ति कार्यक्रम जैसी विभिन्न पहलों पर प्रकाश डाला, जो मुसलमानों और यजीदियों जैसे गैर-ईसाई समुदायों को शैक्षिक सहायता प्रदान करता है, जो दयालुता के व्यावहारिक कार्यों के माध्यम से एकजुटता के सुसमाचार को मूर्त रूप देता है।

महाधर्माध्यक्ष वार्डा ने कहा, "कलीसिया केवल एक आध्यात्मिक शरणस्थली नहीं है, बल्कि लोगों के लिए एक जीवन रेखा है," उन्होंने बताया कि कैसे यह सामाजिक सहायता प्रदान करने के लिए अपने धार्मिक कार्यों से आगे बढ़ती है, यह एक ऐसे तीर्थस्थल का प्रतीक है जो चौबीसों घंटे खुला रहता है।