पोप ने इटली के प्रथम सिनॉडल सभा में नबी के साक्ष्य का आह्वान किया
इटली की पहली धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के प्रतिभागियों को प्रेषित अपने संदेश में पोप फ्राँसिस ने कलीसिया से आग्रह किया है कि वह अपनी सिनॉडल यात्रा के "नबी होने के चरण" को जारी रखे, पवित्र आत्मा के प्रति खुला रहे, एकता के मार्ग पर चले तथा आनन्द और साहस के साथ सुसमाचार को जीये।
पोप फ्राँसिस ने अपने संदेश में, इटली की पहली धर्माध्यक्षीय धर्मसभा को संबोधित किया है, जो सिनॉडालिटी पर सिनॉड की तीन साल की यात्रा के बाद, 15 से 17 नवंबर तक रोम के संत पॉल महागिरजाघर में जारी है।
नबी होने का चरण
इस अवसर के महत्व पर चिंतन करते हुए, पोप ने इस सम्मेलन को “धर्मसभा यात्रा की परिणति को चिह्नित करनेवाला पहला कार्यक्रम” बताया, तथा उन्होंने कहा कि इतालवी कलीसिया अब “नबी होने के चरण” में प्रवेश कर चुकी है, जिसमें, उन्होंने स्पष्ट किया, हाल के वर्षों की अंतर्दृष्टि और खोजों को ठोस, सुसमाचारी विकल्पों में बदलना शामिल है।
उन्होंने कहा, “नबी वर्तमान में जीते हैं, इसे विश्वास की नजर से व्याख्या करते हैं, ईश वचन से आलोकित होते हैं। पोप ने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे अपने विचार-विमर्श से ऐसे निर्णय लें जो सुसमाचार के संदेश को प्रतिबिम्बित करते हों।
उन्होंने कहा, "यह इन वर्षों में एकत्रित किए गए सुसमाचार-प्रेरित विकल्पों और निर्णयों में परिवर्तन करने के बारे में है, और यह आत्मा के प्रति समर्पण में किया जाता है।"
सिनॉडालिटी : साथ-साथ चलने और खुले रहने का आह्वान
अपने संदेश में, पोप ने सभा को तीन मार्गदर्शक सिद्धांतों की याद दिलाई, जिसको उन्होंने मई में अपनी पिछली सभा के दौरान इतालवी कलीसिया के धर्मगुरूओं के साथ साझा किए थे: "चलते रहना, साथ मिलकर कलीसिया का निर्माण करना और एक खुली कलीसिया बनना।"
उन्होंने कहा, ये सिद्धांत प्रारंभिक “कथात्मक चरण” से लेकर वर्तमान “नबी होने के चरण” तक, धर्मसभा यात्रा के प्रत्येक चरण पर लागू होते हैं, और दुनिया में कलीसिया के मिशन के लिए आवश्यक हैं।
उन्होंने 2 अक्टूबर को धर्माध्यक्षों की धर्मसभा को दिए अपने संबोधन को उद्धृत करते हुए कहा, "हर किसी के साथ मिलकर यात्रा करना, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कलीसिया, पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति आज्ञाकारी होकर और समय के संकेतों को समझने के प्रति संवेदनशील होकर लगातार खुद को नवीनीकृत करती है और अपने संस्कारों को पूर्ण करती है ताकि वह उस मिशन का विश्वसनीय गवाह बन सके जिसके लिए उसे बुलाया गया है।"
इस प्रकार, पोप फ्रांसिस ने इतालवी कलीसिया से "अपनी पंखों को आत्मा की हवा में उड़ाने" का आह्वान किया, ताकि पवित्र आत्मा उनकी यात्रा और निर्णयों का मार्गदर्शन कर सके।
वाटिकन द्वितीय महासभा से प्रेरणा लेते हुए
पोप ने सभा को याद दिलाया कि संत पॉल महागिरजाघर, कलीसिया के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है क्योंकि 25 जनवरी, 1959 को यहीं पर से संत पापा जॉन 23वां ने पहली बार द्वितीय वाटिकन महासभा की घोषणा की थी।
पोप जॉन 23वें की दृष्टि की याद करते हुए उन्होंने कहा, “अब कलीसिया से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सुसमाचार की चिरस्थायी, जीवनदायी, दिव्य ऊर्जा को मानव समुदाय की नसों में भर दे।"
और इतालवी कलीसिया को भविष्य की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, उन्होंने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि आज कलीसिया को “खुशी के साथ सुसमाचार फैलाने” और दुनिया से “करुणा की नजर” के साथ मिलने के लिए बुलाया गया है जो लोगों की ज़रूरतों और उम्मीदों को समझती है।
मिशनरी शिष्यों की कलीसिया
जब कलीसिया आगे बढ़ रही है, अपने संदेश में पोप ने विवेक, साहस और मिशनरी उत्साह के महत्व पर ज़ोर दिया, “साहसी चुनाव करें, सुसमाचार की भविष्यवाणी की घोषणा करें, और मिशनरी शिष्य बनें।”
उन्होंने धर्माध्यक्षों को प्रोत्साहन दिया कि वे इस रास्ते पर पिता तुल्य और स्नेही देखभाल के साथ आगे बढ़ें और उन्हें इटली में द्वितीय वाटिकन के बाद की कलीसियाई सभाओं की विरासत की याद दिलाई, जिन्होंने दशकों से कलीसिया की यात्रा में योगदान दिया है।
भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण
पोप ने अपने संदेश का समापन आशा और करुणा का आह्वान करते हुए की तथा इतालवी कलीसिया को समाज की जरूरतों का जवाब देने और "भविष्य के लिए तैयार रहने, निराशा, उत्पीड़न, भय और बंद मानसिकता जैसे गैर-ख्रीस्तीय दृष्टिकोणों पर काबू पाने" की चुनौती दी।
पोप ने अपना आशीर्वाद देने और माता मरियम से सुरक्षा की याचना करने से पहले कहा, "भूमि पर वचन के बीज बोना जारी रखें ताकि यह फल दे सके।"