काथलिक धरोहर बना मोकामा का लघु बसिलिका

मोकामा में दिव्य कृपा की माता मरियम को समर्पित लघु बसिलिका बिहार के काथलिकों के लिए एक विरासत स्थल के रूप में खड़ा है।

गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित मोकामा, बिहार में पटना जिले का एक ऐसा शहर है, जो राज्य के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों को जोड़ता है।

कई लोगों का मानना ​​है कि "मोकामा" नाम का अर्थ है "माँ का घर", यह एक राजकुमारी के बारे में एक किंवदंती से निकला है, जिसने शिकार अभियान में अपने राजकुमार को खोने के बाद, बीमार और ज़रूरतमंदों की सेवा करते हुए आश्रम की जीवनशैली अपना ली थी। समय के साथ, उसे एक माँ के रूप में देखा जाने लगा, और उसके आश्रम को "माँ का घर" के रूप में जाना जाने लगा।

इस प्रकार इस जगह का नाम मोकामा या "माँ का घर" पड़ा।

लघु बेसिलिका का इतिहास
20वीं सदी के मध्य में मोकामा काथलिक धर्म के लिए उपजाऊ भूमि बन गया, जब अमेरिका के जेसुइट मिशनरी फादर मरियन बैटसन ने वहां एक तीर्थस्थल की कल्पना की। उनके सपने को कलकत्ता (अब कोलकाता) के मार्टिन बर्न कंपनी लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक थॉमस लेस्ली मार्टिन का समर्थन मिला।

शुरू में हिचकिचाहट के बाद, मार्टिन ने अंततः फादर बैटसन के सपने को साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि मार्टिन ने गुलाब के बगीचे में कमल के फूल पर खड़ी माता मरियम का सपना देखा था, जिसने दोनों पुरुषों को मोकामा में दिव्य कृपा की माता मरियम को समर्पित ईश मंदिर बनाने के लिए प्रेरित किया।

1943 में, धर्माध्यक्ष सुलिवन ने मंदिर की आधारशिला रखी और मार्टिन दानदाता बने। वाटिकन ने श्री मार्टिन को 1947 में "संत ग्रेगरी द ग्रेट के प्रतिष्ठित ऑर्डर के नाइट कमांडर" के रूप में सम्मानित किया, जो पोप की ओर से एक महत्वपूर्ण पहचान थी।

वास्तुकला
मंदिर की स्थापत्य शैली में हिंदू-अरबी और इंडो-रोमनस्क तत्वों का मिश्रण है, जो पूर्वी और पश्चिमी कला के बीच एक उत्कृष्ट सामंजस्य बनाता है। फादर बैटसन और श्री मार्टिन ने माता मरियम की एक अनूठी मूर्ति की तलाश की, जो दूसरों से अलग हो। एक अमेरिकी-रूसी कलाकार, श्री डेरुजिंस्की ने लकड़ी के एक ही टुकड़े से मूर्ति को उकेरा, जो पारंपरिक भारतीय पोशाक में माता मरियम को, अपने दिव्य पुत्र को मानवता के लिए एक भेंट के रूप में पकड़े हुए दर्शाती है।

समर्पण और प्रभाव
4 नवंबर, 1947 को कलकत्ता के महाधर्माध्यक्ष फेरदिनन्द पेरियर ने इस तीर्थस्थल का प्रतिष्ठापन किया। उसी वर्ष, नाज़रेथ की चैरिटी की बहनें अमेरिका के केंटकी राज्य से मोकामा पहुँचीं और इस तीर्थस्थल के साथ उनका गहरा संबंध है।

1950 के पवित्र वर्ष के दौरान, विश्वास के प्रचार के लिए गठित धर्मसंघ के सचिव, महाधर्माध्यक्ष कॉन्स्टेंटिनी ने भारतीय और ख्रीस्तीय शैलियों के सफल मिश्रण में मिशन कला की एक प्रदर्शनी में मोकामा तीर्थस्थल की तस्वीरें प्रस्तुत कीं।

वार्षिक उत्सव और तीर्थयात्रा
सूत्रों के अनुसार, शुरू में वार्षिक समर्पण उत्सव 22 अक्टूबर को मनाया जाता था। हालाँकि, मानसून से संबंधित बाढ़ के कारण, इसे बाद में फरवरी के पहले रविवार को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसमें उत्सव से पहले नौ दिवसीय नोवेना होता है।

ईसाई, हिंदू और मुस्लिम सहित विभिन्न धर्मों के तीर्थयात्री हर साल मंदिर में आते हैं।

हाल ही में, मंदिर के अंदरूनी हिस्से को एक नई वेदी, व्याख्यान और रंगीन रोशनी के साथ सुशोभित किया गया है, जिसमें स्वचालित रंग परिवर्तन के साथ एक झूमर भी शामिल है।

लघु बसिलिका के रूप में पहचान
लघु बलिसिका का दर्जा दिलाने का काम मोकामा के फादर रेनी प्रकाश की है जिन्हें भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के लिए दस्तावेज तैयार करने हेतु सिस्टर अन्न जॉर्ज मुकालेल एससीएन एवं सिस्टर एससीएन का सहयोग मिला।

अप्रैल 2024 में, पोप फ्रांसिस ने स्थानीय रूप से मोकामा की महारानी (मोकामा की रानी) के नाम से जाने जाने वाले मंदिर को माइनर बेसिलिका का दर्जा दिया।

निःसंतान दम्पतियों के लिए आशा का स्थान
भक्तों का मानना ​​है कि निःसंतान दम्पतियों के लिए यह मंदिर विशेष महत्व रखता है, कई लोग संतान प्राप्ति की अपनी आशाओं को पूरा करने के लिए माता मरियम के आशीर्वाद हेतु प्रार्थना करते हैं।

परिणामस्वरूप, कई जोड़े वार्षिक तीर्थयात्रा में शामिल होते हैं, अपनी इच्छाएँ दिव्य कृपा की माता मरियम को समर्पित करते हैं।