यात्रा

पिछले दिनों मेरे मित्र से मुलाकात के दौरान उसने अपने जीवन की कुछ व्यक्तिगत घटनायें मेरे साथ साझा की। उसने बतलाया की उसे समझ नहीं आ रहा है कि आने वाले समय का सामना कैसे करें। जीवन के प्रति उसकी निरसता को देखते हुए मैंने उसे सुझाव दिया कि इसमें इतनी चिंता करने की कोई बात नहीं है। अगर कुछ समझ में नहीं रहा है तो ईश्वर पर भरोसा रखकर आगे बढ़ो। समय सबकुछ ठीक कर देगा। ख्रीस्तीय मित्र होने के नाते मैंने उसे यह सुझाव भी दे दिया कि चालीसा काल आने वाला है। चालीसे काल स्वयं को पुनर्स्थापित करने का एक अच्छा समय होता है। मगर मेरे इस सुझाव पर उसने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। साथ ही उसने कहा कि चालीसा तो हर साल आता है उसमें नया क्या है? उसका यह जवाब मेरे जेहेन में घूमता रहा। मैं खुद इस सोच में पड़ गया कि चालीसा तो हर साल आता है तो फिर इस चालीसे में नया क्या होगा? खैर उस समय तो मुझे इसका कोई जवाब नहीं मिला। मगर यह प्रश्न बारम्बार मेरे जेहेन में घूम ही रहा था कि इस चालीसे में नया क्या होगा?
यह सवाल जितना घुमावदार था, उसका जवाब उतना ही आसान था। सच कहूं तो सवाल के जवाब के रूप में मुझे एक और सवाल मिला, कि चालीसा काल तो हमेशा की तरह ही होगा। लेकिन मैं अपने लिए इस चालीसे काल में क्या नया कर सकता हूँ?
जी हाँ दोस्तों हमें माता कलीसिया हमें पुनः चालीसा काल की यात्रा के द्वारा पास्का के रहस्यों पर मनन चिन्तन करने का निमंत्रण, एवं पश्चाताप करने का अवसर दे रही है ताकि हम ख्रीस्त के पुनरूत्थान का मर्म समझ कर अपने लक्ष्यों का निर्धारण कर सकें। यह यात्रा न केवल व्यक्ति मात्र के लिए है वरन् यह सामूहिक यात्रा है जहाँ व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से मनन चिंतन करते हुए सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी दिखाता है। माथे पर लगी हुई राख का चिन्ह हमारे पश्चात्तापी हृदय को दिखलाती है जिसमें पश्चात्ताप करने की मंशा नजर आती है। चालीसा काल हमारे लिए निमंत्रण है कि हम अपने हृदय को बदल दे, इसीलिए हमें यह याद दिलाया जाता है "तुम मिट्टी हो और मिट्टी में मिल जाओगे"। ये ईश्वर पर हमारे अस्तित्व को दर्शाता है अर्थात् ईश्वर के बिना हम कुछ भी नहीं। इसलिए हमेशा उनपर अपनी आस्था बनायी रखनी चाहिए।
कलीसिया हमसे चालीसा काल की यात्रा के दौरान प्रार्थना, उपवास और दान के कार्य करने आह्वान करती है। प्रार्थना, उपवास और दया के कार्य इस चालीसा के काल में इसलिए हमारे सामने प्रस्तुत किए जाते हैं कि हमें यह याद रहे कि यह संसार नश्वर है जहाँ सबकुछ क्षणभंगुर है। उपवास और परहेज के द्वारा हम अपने कामुक या शारीरिक पापों के प्रति सजग रह सकें। क्योंकि जब तक हमें अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहेगा तब तक हमारी आध्यात्मिकता दिल और दिमाग पर नियंत्रण रख पाना कठिन होगा। इसीलिए हमें शांति में प्रार्थना का निमंत्रण दिया जाता है। इसका यह भी मतलब नहीं कि हम सामूहिक प्रार्थनाओं में भाग न लें। पर जब तक हम व्यक्तिगत रूप से प्रार्थना न करें, हम सामूहिक रूप से अपना योगदान नहीं दे सकते हैं।
प्रार्थना एक सँवाद है। ईश्वर और मानव के बीच प्रार्थना द्वारा ही संवाद हो सकता है। अपने जीवन काल के दौरान येसु अपने पिता के साथ अकेले समय बिताते थे। कभी-कभी वह एकान्त में रहकर अपने दिल की गहराई में अपने पिता के साथ बातचीत करते थे। अपने शिष्यों को भी वह सिखाते हैं कि हमें भी निरंतर प्रार्थना द्वारा ईश्वर से स्थायी संबंध स्थापित करना चाहिए।
उपवास ईसाई व्यक्ति के लिए दिखावे का समय नहीं, बल्कि गुप्त रूप से किये जाने वाली सिर्फ ईश्वर द्वारा देखने वाली क्रिया है। हमें येसु को आदर्श मानकर जिन्होंने चालीस दिन और रात उपवास किये थे, हमें भी उपवास करना चाहिए। साथ ही हमें जाँच करना आवश्यक है कि हम क्यों दान देते हैं? क्यों उपवास करते हैं? और क्यों प्रार्थना करते हैं?
इन कार्यों को हमें अपनी आदत में लाना है, इन कार्यों को अपना स्वाभाव बनाना है, हम रोज ईश्वर से प्रार्थना करे, रोज़ लोगो की सेवा करे, दान दे, और बुराई करने से परहेज़ करे, प्रतिदिन स्वयं का आंकलन करे, और यह जांचे की क्या हम ईश्वर द्वारा बताये हुए मार्ग पर अग्रसर हो रहे है या हमें और सुधार करने कीआवश्यकता है?
क्यूंकि हमें यही एकमात्र जीवन मिला है। जिसे हमें अच्छे से लोगों की भलाई और सेवा करते हुए जीना है। हम मानव है, पाप और गलतिया हमसे ज़रूर होगी, मगर हमें अपनी गलतियों को सुधार कर और पापों पर पश्चाताप करके उससे शिक्षा लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
सबसे ज़रूरी हमें स्वयं में मानवीय गुणों को विकसित करना। हम सभी मनुष्य है, और हम सभी में मानवता है। मगर संसार की बुराई एवं पापों के कारण हमारी मानवता कहीं न कहीं दब गई है। हमें प्रार्थना, उपवास, सेवा एवं दया के कार्यों से उसे वापस बाहर निकालना होगा। क्योंकि अगर भगवान बनकर ही लोगों की सेवा की जा सकती तो फिर येसु मानव रूप लेकर धरती पर क्यों आते? मानवता से परिपूर्ण होकर ही हम मानव की सेवा कर सकते है। हमारे पास मानव सेवा का सर्वोत्तम उदाहरण हमारे प्रभु येसु है। जिनको आदर्श मानकर हम ईश्वरीय गुणों को हमारे जीवन में ला सकते है और अपने जीवन को ईश्वर की इच्छा अनुरूप बना सकते है।
अतः हमारे पास जो भी हो जितना भी हो उसमे से लोगो को दे, उनकी सेवा करे। इस जगह पर यह कहावत सटीक बैठती है- "अगर तुम्हारे पास कुछ है तो उसमें से दो, और अगर कुछ नहीं है तो अपने ह्रदय से दो।" यह कहावत हमें यह बतलाने की कोशिश करती है कि हमें हमेशा लोगों की मदद करते रहना चाहिए। चाहे हम किसी भी परिस्थिति में हो, हमें लोगों की मदद करते रहना चाहिए।
उपवास हमें बुराई दूरी से करना है। अगर हम इन 6 सप्ताह में से हर सप्ताह भी अपनी एक बुरी आदत का त्याग करते है तो पास्का आते आते हम में 6 बुरी आदत कम होगी और हम पहले से बेहतर इंसान होंगे। मगर इसके लिए हमें पवित्र आत्मा से कृपा की आवश्यकता होगी तभी हम इन कार्यों को भली भाँति कर पाएंगे। अगर हम इस चालीसे काल में भी कोई ठोस कदम नहीं उठाएंगे तो ये पास्का भी यूँ ही चला जाएगा और हमारे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। इसलिए अगर हम अपने जीवन को सच में बदलना चाहते है तो हमें इन कार्यों पर ज्यादा- ज्यादा ध्यान देना होगा।
जब हम दूसरों के दर्द को समझ सकेंगे, तब ही हम उनकी ओर अपना हाथ बढ़ा सकेंगे। इस तरह दया के कार्य ख्रीस्तीयों के लिए कोई अतिरिक्त दयालुता के कार्य नहीं हैं वरन् ये हमारे विश्वास से उठता हुआ एक प्रेम का लम्हा है। अतः यह चालीसे का काल सुसमाचार को हकीकत में जीने का समय है। यह एक समय है जब हम व्यक्तिगत रूप से ईश्वर और एक दूसरे के पास आते हैं।
चालीसा काल ईश्वरीय कृपा पाने का समय है। प्रार्थना तपस्या करते हुए जरूरतमंदों तक पहुँचने के लिए अच्छा अवसर है। स्वयं के साथ, मनुष्यों के साथ और ईश्वर के साथ मेल-मिलाप करने का शुभ अवसर है। तो आइए हम इस अवधि का सदुपयोग करते हुए स्वयं में सुधार लाएं। इन सब कार्यों में ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा एवं पवित्र आत्मा की कृपा हमें सहायता प्रदान करेगी।
प्रवीण परमार