लोगों के बीच मैत्री सम्मेलन को पोप फ्राँसिस का सन्देश

इटली के रिमीनी शहर में इन दिनों जारी लोगों के बीच मैत्री सम्बन्धी सम्मेलन में पोप फ्रांसिस ने एक सन्देश प्रेषित कर वर्तमान विश्व में व्याप्त युद्ध की स्थिति तथा लोगों में व्याप्त उदासीनता पर अपनी उत्कंठा व्यक्त की है।

वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पियेत्रो पारोलीन द्वारा पोप फ्रांसिस की ओर से रिमिनी के काथलिक धर्माध्यक्षों को प्रेषित सन्देश में पोप ने उक्त सम्मेलन तथा इसके प्रबन्धकों एवं प्रतिभागियों की सराहना की है किन्तु साथ ही द्वेष और भय पैदा करनेवाले युद्ध और विभाजन पर चिन्ता ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि दूसरा व्यक्ति जो मुझसे अलग है, उसे अक्सर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। वैश्विक और व्यापक संचार के कारण यह रवैया एक मानसिकता बन गई है। उन्होंने कहा कि मतभेद शत्रुता के लक्षण के रूप में प्रकट होते हैं और एक प्रकार से शत्रुता की महामारी उत्पन्न होती है।

पोप लिखते हैं कि इस संदर्भ में, सम्मेलन का शीर्षक साहसिक लगता है: "मानव अस्तित्व एक अटूट मित्रता है"। दुस्साहसी इसलिए क्योंकि यह स्पष्ट रूप से प्रवृत्ति के विपरीत है, ऐसे समय में जो व्यक्तिवाद और उदासीनता से चिह्नित है, जो अकेलेपन और कई प्रकार की बर्बादी और फेंक देने की संस्कृति को प्रश्रय देता है।

पोप ने कहा, "यह एक ऐसी स्थिति है जिससे अकेले बाहर निकलना असंभव है। मानवता ने हमेशा से यह अनुभव किया है: कोई भी स्वयं को बचा नहीं सकता है। इस कारण से, इतिहास में एक सटीक क्षण में, ईश्वर ने पहल की: "उन्होंने इस धरती पर अपने एकलौते पुत्र को भेजा और उन्हें हमारे साथ साझा किया; ताकि हम भाईचारे और अन्यों के प्रति उदारता का मार्ग सीख सकें।" उन्होंने कहा कि यह "निश्चित रूप से एक नया क्षितिज है, यह बहिष्कार, विघटन, समापन, अलगाव की कई स्थितियों के लिए एक नया शब्द है। यह एक ऐसा शब्द है जो एकांत की खामोशी को तोड़ता है।"

पोप ने लिखा, "येसु स्वयं को एक मित्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं: सन्त योहन रचित सुसमचार के अनुसार, येसु कहते हैं, "मैं अब तुम्हें सेवक नहीं कहता, परन्तु मैंने तुम्हें मित्र कहा है"। पुनर्जीवित मसीह के आत्मा ने मनुष्य को शुद्ध अनुग्रह के रूप में अपनी मैत्री देकर मनुष्य के अकेलेपन को तोड़ा है। अस्तु, मानवीय अनुभव अब धूमिल नपुंसकता का नहीं है, बल्कि जागरूकता और ऊर्जावान क्षमता से परिपूर्ण है। मनुष्य की शक्ति अनन्य है, मनुष्य की निश्चितता अनन्य है: मानव अस्तित्व एक गहन संवाद है, जीवन के हर क्षण की जड़ों में एकांत समाप्त हो जाता है और मानव अस्तित्व एक अटूट मित्रता बन जाती है।"

सभी के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार का आह्वान करते हुए पोप फ्राँसिस कहते हैं कि येसु ने हमें मैत्री का रास्ता दिखाया है, उन्हीं के सुसमाचार से प्रेरित होकर हम भाईचारे और मैत्री को बढ़ावा दें तथा विश्व को सबके लिये एक न्यायसंगत एवं शांतिपूर्ण स्थल बनायें।