पोप : सभी ख्रीस्तियों को हर इंसान की गरिमा की पुष्टि करनी चाहिए

17वीं अंतर-ख्रीस्तीय संगोष्ठी को दिए गए संदेश में पोप फ्राँसिस ने कहा है कि सभी ख्रीस्तीयों को मानव होने के अर्थ से संबंधित समकालीन प्रश्नों के मद्देनजर प्रत्येक मानव व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा की पुनः पुष्टि करनी चाहिए।

17वीं अंतर-ख्रीस्तीय संगोष्ठी को दिए संदेश में, पोप फ्राँसिस ने समकालीन मानव विज्ञान में एक “पूर्ण क्रांति”– मानव पहचान, दुनिया और समाज में मनुष्य की भूमिका और प्रत्येक मनुष्य के ईश्वरीय बुलाहट पर पुनर्विचार करने पर प्रकाश डाला।

मानव प्रकृति के बारे में मूलभूत प्रश्नों के अलावा, पोप आगे कहते हैं, “जिस तरह से आज के पुरुष और महिलाएँ अपने अस्तित्व के मूलभूत अनुभवों, जैसे प्रजनन, जन्म लेना और मरना को समझते हैं, संरचनात्मक रूप से बदल रहा है।”
पोप ने कहा कि ऐसे प्रश्न सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति से प्रेरित हो रहे हैं, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास और विज्ञान में अविश्वसनीय विकास शामिल है।

एक 'मानवशास्त्रीय क्रांति'
वे कहते हैं कि इस "मानवशास्त्रीय क्रांति" की वास्तविकता "गहन चिंतन की मांग करती है, जो विचार और विकल्पों को नवीनीकृत करने में सक्षम हो।"

उन्होंने कहा कि यह एक चुनौती है, जो “सभी ख्रीस्तीयों को प्रभावित करती है, चाहे वे किसी भी कलीसिया से जुड़े हों।” इस वर्ष की संगोष्ठी जिसकी विषयवस्तु है “मानवशास्त्रीय परिवर्तन के समय में मनुष्य क्या है?”, के आयोजकों को बधाई देते हुए, संत पापा ने कहा कि काथलिक और ऑर्थोडॉक्स को “इस चिंतन को बढ़ावा देते हुए एक साथ” देखना दिलचस्प है।

उन्होंने कहा, "गरीबी, युद्ध, शोषण और अन्य वास्तविक खतरों के खिलाफ इस प्रतिष्ठा की रक्षा सभी कलीसियाओं के लिए एक आम प्रतिबद्धता है, जिस पर उन्हें मिलकर काम करना चाहिए।" पोप ने अपने संदेश का समापन इस आश्वासन के साथ किया कि वे संगोष्ठी के काम में अपनी प्रार्थनाओं के साथ शामिल होंगे, विशेष रूप से संत निकोला पेलेग्रीनो की मध्यस्थता से, जो 11वीं शताब्दी के संत हैं तथा इताली शहर त्रानी के संरक्षक माने जाते हैं  जहाँ 28-30 अगस्त तक संगोष्ठी हो रही है।