पोप : अपनी आशा की पुनः खोज करें
पास्का के चालीस दिन उपरांत स्वर्गारोहण पर्व की यादगारी में संत पापा ने विश्वासियों के संग वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में संध्या वंदना में भाग लिया।
पोप फ्रांसिस ने संत पेत्रुस के महागिरजाघर में स्वर्गारोहण की संध्या वंदना, प्रार्थना सभा में सहभागी होते हुए अपने प्रवचन में आशा पर प्रकाश डाला।
आनंदमय शोरगुल के मध्य येसु स्वर्ग की ओर आरोहित किये गये जहाँ वे पिता के दाहिने विराजते हैं। जैसे कि हमने सुना कि उन्होंने मृत्यु को गले लगाया जिसके हम सभी अनंत जीवन के भागीदार हो सकें। (1 पेत्रुस 3.22)। येसु का स्वर्गारोहण उनका हमसे अलगाव या बिछुड़न नहीं है, बल्कि यह उनकी प्रेरिताई की परिपूर्णतः है। येसु पिता की ओर से हमारे बीच आये जिससे वे अपने पिता के पास जा सकें। वे हमारे पास आते हैं जिससे वे हमें ऊपर की ओर उठा सकें। वे पृथ्वी के गर्त तक उतरे जिससे वे ऊपर स्वर्गराज का द्वारा हमारे लिए खोल सकें। उन्होंने हमारी मृत्यु का विनाश किया जिससे हम सदा के लिए जीवन प्राप्त कर सकें।
पास्काः ख्रीस्तीय विश्वास का आधार
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि यह हमारे विश्वास का आधार है। ख्रीस्त स्वर्ग चढ़ते हुए ईश्वर के हृदय को उनकी सारी आशाओं और आकांक्षाओं को हमारी मानवता के लिए लाते हैं, जिससे “हम” उसके सदस्य, विश्वास के साथ उनका अनुसरण कर सकें जो कि हमारे शीर्ष और नींव हैं, जो हम से पहले वहाँ पहुँचे हैं।
प्रिय भाइयो एवं बहनों संत पापा ने कहा कि यह हमारा विश्वास है, जो येसु ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरूत्थान पर आधारित है, जिसे हम विचार करते हुए सारी दुनिया के संग आने वाला साल मनाने की चाह रखते हैं, जो ठीक हमारे सामने है। इस आशा का संदर्भ हमारे लिए मानवीय साधारण आशावाद या हमारे कुछ क्षणिक चाहतों से नहीं है। बल्कि इसका तत्पर्य हमारे लिए कुछ सच्ची बातों से है जो ख्रीस्त में पूरी हुई हैं, एक उपहार जो हमारे लिए प्रतिदिन दिया जाता है जबतक हम एक दिन उनके प्रेम के आलिंगन में एक न हों। ख्रीस्तीय आशा हमारे लिए “एक विरासत है जो अपने में अक्षय, अदूषित और अविनाशी है” जैसे कि संत पेत्रुस हमें इसके बारे में कहते हैं। यह हमारी जीवन यात्रा को बनाये रखती है यद्यपि हम उस मार्ग को खत्म होता और चिंताओं से भरा पाते हैं। यह भविष्य के लिए हमारी आंखों को खोलती है जब कभी हम जीवन से परित्यक्त या अपने को निराशवाद में कैद पाते हैं। यह हमें कभी-कभी अच्छाई की प्रतिज्ञा को देखने में मदद करती है जब हम अपने को बुराइयों से घिरा पाते हैं। यह हमारे हृदयों को शांति से भर देती है जब हम अपने को पाप और असफलताओं के बोझ से दबा पाते हैं। यह हमें नई मानवता का अंग बनती और हमारे प्रयासों को साहस से भर देती है जहाँ हम अपनी अयोग्यता के बावजूद एक भातृत्व और शांतिमय दुनिया के निर्माण हेतु कार्य करते हैं।
जुबली की तैयारी
संत पापा फ्रांसिस ने कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो, प्रार्थना के इस साल में, जब हम अपने को जुबली मानने हेतु तैयार करते हैं, हम अपने हृदय को येसु ख्रीस्त की ओर उठायें, और दुनिया के लिए आशा की निशानियाँ बनें जो बहुत अधिक निराशा से भरी है। हमारे कार्यों, शब्दों, निर्णयों के द्वारा हम प्रतिदिन, अपने धैर्यपूर्वक प्रयास से, चाहें हम जहाँ कही भी हों कोमलता और सुन्दरता के बीजों को बोयें, आशा का गान बनें जिससे इसका संगीत हृदयों के तारों को झंनकृत करे, साथ ही दिलों में खुशी को पुनः जागृत करते हुए साहस के साथ जीवन का आलिंगन करने में हमारी मदद करे।
आशा की जरुरत
इसके लिए तब हमें आशा की जरुरत है। हमारे समाज से जहाँ हम रहते हैं आज आशा की जरुरत है जो वर्तमान में उलझी भविष्य की ओर देख पाने में असमर्थ है। इस पीढ़ी से आशा की आवश्यकता है जो व्यक्तिगतवाद में खोई दिखाई देती है। ईश्वर की सृष्टि से आशा की जरुरत है जो मानवीय स्वार्थ के कारण नष्ट और एकदम कुरूप हो गई है। उन लोगों और देशों में जो युद्ध के कारण भय और चिंता से ग्रस्ति हैं आशा की जरूरत है। अन्याय और ढिठाई जैसे कि हम इन्हें अपने में पाते हैं, गरीबों का परित्याग किया जाता, युद्धों के द्वारा मौत के बीज बोये जाते, हमारे अति कमजोर भाई-बहनें कचड़ों की ढ़ेर में दबे रहते और भातृत्व की दुनिया अपने में धूमिल जान पड़ती है। युवाओं के लिए आशा की जरुरत है जो अपने में अनिश्चितता और भ्रमित जान पड़ते हैं फिर भी जीवन को खुशी और पूर्णतः में जीने की चाह रखते हैं। बुजुर्गों को आशा की आवश्यकता है जिन्हें अब कोई सम्मान नहीं मिलता या जिन्हें योग्यता और अत्यधिकता की संस्कृति के कारण कोई नहीं सुनता है। बीमारों और शारीरिक रुप में दुःख कष्ट झेल रहे लोगों को भी आशा की आवश्यकता है जिससे वे हमारी निकटता में सांत्वना और सहायता का अनुभव कर सकें।