आश्रयहीनों के लिए कोई अवकाश नहीं
वाटिकन न्यूज के उप संपादकीय निदेशक अलेसांद्रो जिसोत्ती ने गर्मी के महीनों में खाली पड़े शहरों में रहने वाले गरीब और बुजुर्ग लोगों की वास्तविकता पर विचार किया है, जब हममें से कई लोग छुट्टियों पर जाने के लिए समय निकालते हैं।
एक इतालवी गीत के प्रसिद्ध बोल- अज्जुरो- जिसमें गायक एड्रियानो चेलेन्तानो गाते हैं,“मैं साल भर गर्मी का इंतजार करता और यह आचानक पहुंची”, यह इटलीवासियों के बहुप्रतीक्षित ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के अनुभव और उत्साह को सटीक रुप में बयाँ करती है।
इटली में, अन्य पश्चिमी देशों की तरह, छुट्टियों का समय- लंबे समय से एक वास्तविक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहाँ तक कि संत पापा ने भी परिवार से शुरू करते हुए महत्वपूर्ण रिश्तों को पोषित करने हेतु काम से समय निकालने के महत्व पर जोर देते हैं, और यह हमें सृष्टि का आनंद लेने के योग्य बनाती है, जो हमें मुफ्त में दी गई है। इस प्रकार, "छुट्टियाँ" आलस्य का पर्याय नहीं है, बल्कि यह एक उपयोगी समय है जिसमें जीवन के मूल्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जहाँ हम समाज की गतिशीलता से अपने को धीरे करते और अपने इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं को पूरी तरह से समझने की कोशिश करते हैं।
वहीं छुट्टियों के लिए जाना हमारा ध्यान मानवीय प्रकृति में यात्रा करने की ओर आकर्षित करता है। मानव अपने में सदैव गतिशील प्राणी है, जैसे कि संत आगुस्टीन इसे व्यक्त करते हुए कहते हैं,“दुनिया एक पुस्तिका है। वे जो यात्रा नहीं करते सिर्फ एक पन्ने को पढ़ते हैं।” यह अपने में कोई सयोग नहीं है जहाँ आज हम साधरणतः कहते हैं,“मैं छुट्टियों के लिए जाता हूँ।” यह हमारी गतिशीलता को व्यक्त करती है, जिसके बिना छुट्टियों का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। फिर भी, धूप से सराबोर हमारे शहर, रोम से शुरू करके, जहाँ लंबे समय से पर्यटकों की इतनी भीड़ नहीं रही है, एक पूरी “आबादी” है जो छुट्टियों पर नहीं जाएगी क्योंकि कई अन्य अधिकारों के साथ-साथ उन्हें यह अधिकार नहीं दिया गया है: वे गरीब हैं। वे अपने में अदृश्य हैं या उन्हें उदासीनता में देखा जाता है उन्हें यह अवसर प्राप्त नहीं होता है। कुछ साल पहले, इस खबर ने सबों का ध्यान आकर्षित किया था कि संत पापा के उदारवादी कार्य के अध्यक्ष कार्डिनल कोनराड क्रेजवस्की ने बेघर लोगों के एक समूह को समुद्र तट पर एक दिन बिताने ले गए थे। बेघर लोगों के एक समूह को संत पापा द्वारा दी गई सिस्टिन चैपल की भेंट करना भी उतना ही आश्चर्यजनक था। ये दो छोटे दिखने वाले इशारे महत्वपूर्ण थे क्योंकि उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे गरीबों को - गरीबी में जीवनयापन नहीं करने वालों की तरह ही, और उनसे भी ज़्यादा - आनंद लेने और कला की सुंदरता की सराहना करने के लिए स्थानों और अवसरों की आवश्यकता होती है, जिसके लिए इटली एक अद्वितीय खजाना है।
क्यों न 2024 की इस गर्मी में इस तरह के पहल की कल्पना की जाएॽ आखिरकार, हाशिये पर रहने वालों को केंद्र में रखना, जिन्हें हम अक्सर नहीं देखते, हमारे सामाजिक और नागरिक ताने-बाने को सुधारने का एक तरीका है। ऐसा करने के द्वारा जिन लोगों को “छोड़ दिया गया” है, हम उन्हें न केवल मानवता की, बल्कि पेशेवर अनुभवों, संस्कृतियों और बुद्धिमत्ता की भी एक बड़ी समृद्धि प्रदान करते हैं, जो समाज के सबसे निचले स्तर में रहने वाले व्यक्तियों की कहानियों को सामने लाती है।
गरीबों के अलावे और एक “आबादी” है जो खास तौर पर गर्मियों में पीड़ित होती है जो संत पापा फ्रांसिस के दिल के बहुत करीब हैं- वे बुजुर्गजन हैं। उनके लिए, खाली होते शहर, सार्वजनिक सेवाओं में कमी और दूर रहने वाले परिवार कठिन चुनौतियां पेश करते हैं। जैसा कि महाधर्माध्यक्ष विचेंन्सो पालिया ने कहा है, "हमारे बुजुर्ग गर्मी से नहीं बल्कि अकेलेपन और परित्याग होने से मरते हैं।" यद्यपि ये दादा-दादी ही हैं जो साल के बाकी दिनों में, विशेष रूप से पोते-पोतियों के साथ, एक सच्चे "कल्याणकारी राज्य" की भूमिका निभाते हैं। अपने परमधर्माध्क्षीय काल की शुरुआत से ही, संत पापा फ्रांसिस ने घायल मानवता भविष्य हेतु युवा और बुजुर्गों के बीच मिलन की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने युवाओं को धर्मग्रँथ के रूथ का उदाहरण देते हुए बुजुर्गों को अकेला नहीं छोड़ने हेतु प्रोत्साहित किया है, जैसे कि अपनी बुजुर्ग सास नाओमी को नहीं छोड़ती है। अगर हम वास्तव में, इस समाज को अधिक मानवीय बनाना चाहते हैं जिसमें हम रहते हैं, तो पीढ़ियों के बीच इस पारस्परिक समर्थन के अलावे और कोई वैध विकल्प नहीं है। कम से कम यह सिद्धांत, संत पापा फ्राँसिस हमें कहते हैं कि यह कभी भी छुट्टी पर न जाये।