संत घोषणा समारोह में पोप : 'सेवा ही ख्रीस्तीय जीवन पद्धति है'

पोप फ्राँसिस ने रविवार को 14 नए संतों की संत घोषणा के समारोही ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान किया, जिनमें सीरिया में अपने विश्वास को त्यागने से इनकार करने पर मारे गए 11 शहीद शामिल हैं। जिन्होंने येसु के सेवा के रास्ते को अपनाते हुए ख्रीस्तीय साक्ष्य को बरकरार रखा।

पोप फ्राँसिस ने रविवार 20 अक्टूबर को 14 नये संतों की घोषणा का उन्हें कलीसिया का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया।

इस अवसर पर अपने उपदेश में पोप ने कहा, येसु याकूब और योहन से पूछते हैं: “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” (मार. 10:36) इसके तुरन्त बाद वे उन पर दबाव डालते हैं: “जो प्याला मैं पीनेवाला हूँ, क्या तुम पी सकते हो, या जो बपतिस्मा मैं लेने को हूँ, क्या तुम उसे ले सकते हो?” येसु प्रश्न पूछते हैं और ऐसा करने से हमें आत्मपरख करने में मदद मिलती है, क्योंकि प्रश्न हमें यह जानने का अवसर देते हैं कि हमारे भीतर क्या है, और वे हमारे हृदय की इच्छाओं पर प्रकाश डालते हैं।

“क्या तुम मेरा प्याला पी सकते हो?”
पोप ने अपने आप पर गौर करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, “आइए, हम कल्पना करें कि वे हम में से हरेक जन से पूछ रहे हैं: “तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”; “क्या तुम मेरा प्याला पी सकते हो?”

इन सवालों के जरिए, येसु अपने और शिष्यों के बीच के संबंधों को प्रकट करते हैं, साथ ही उनसे उनकी अपेक्षाओं को, किसी रिश्ते के सभी पहलुओं के साथ व्यक्त करते हैं। याकूब और योहन निश्चय ही येसु से जुड़े हुए थे, लेकिन उनकी कुछ माँगें भी थीं। वे उनके निकट रहने की इच्छा व्यक्त करते हैं, लेकिन केवल सम्मान का स्थान पाने, एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए, “आपकी महिमा में एक आपके दाहिने और एक बाएँ बैठें।” (मार. 10:37) वे निश्चय ही येसु को एक विजयी और गौरवशाली मसीहा के रूप में देखते हैं और उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे अपनी महिमा उनके साथ साझा करें। वे येसु में मसीहा को देखते हैं, लेकिन उन्हें ताकत की श्रेणी में रखते हैं। येसु शिष्यों के शब्दों पर ही नहीं रुकते, बल्कि गहराई से सोचते हैं, उनके दिलों को सुनते और पढ़ते हैं। फिर, बातचीत में, दो सवालों के ज़रिए, उनके अनुरोधों के पीछे छिपी इच्छा को प्रकट करने की कोशिश करते हैं।

येसु पहला सवाल करते हैं, “क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” एक ऐसा प्रश्न जो उनके हृदय के विचारों को प्रकट करता है, तथा उन छिपी हुई अपेक्षाओं और महिमा पाने के स्वप्नों को प्रकाश में लाता है जिन्हें शिष्य गुप्त रूप से विकसित कर रहे थे। ऐसा लगता है जैसे येसु पूछ रहे हों: “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए बनूँ?” इस तरह, वे उनकी असली चाह को उजागर करते हैं, वे वास्तव में एक शक्तिशाली और विजयी मसीहा के लिए की कामना कर रहे थे जो उन्हें सम्मान का स्थान दे सके।

एक राजा जो सेवा करने आये
अपने दूसरे सवाल में, येसु मसीहा की इस छवि का खंडन करते हैं और इस प्रकार उन्हें अपना दृष्टिकोण बदलने में मदद करते हैं, अर्थात् मन-परिवर्तन करने में: "क्या तुम वह प्याला पी सकते हो जो मैं पीता हूँ, या वह बपतिस्मा ले सकते हो जो मैं लेनेवाला हूँ?" इस प्रकार, वे प्रकट करते हैं कि वे ऐसे मसीहा नहीं है जिसे वे समझते थे; वे प्रेम के ईश्वर हैं, जो नीचे गिरे हुए व्यक्ति तक पहुँचने के लिए नीचे झुकते हैं; जो कमज़ोर लोगों को उठाने के लिए स्वयं को कमज़ोर बनाते हैं, जो युद्ध के लिए नहीं बल्कि शांति के लिए काम करते हैं, जो सेवा करने आये, न कि सेवा कराने। प्रभु जो प्याला पीयेंगे वह उनके जीवन का उपहार है, जिसे वे हमें प्रेम के कारण, मृत्यु तक, और क्रूस की मृत्यु तक देंगे।

इसके अतिरिक्त, उनके दाहिने और बाएँ दो डाकू होंगे, जो उनके समान क्रूस पर लटके होंगे, सामर्थ्य के सिंहासन पर बैठे नहीं; दो डाकू जो ख्रीस्त के साथ पीड़ा में कीलों से ठोंके गए होंगे, महिमा के सिंहासन पर नहीं बैठे होंगे। क्रूसित राजा, दोषी ठहराये गये धर्मी व्यक्ति जो सभी के दास बन गये: वास्तव में ईश्वर के पुत्र हैं! (मार. 15:39) जो लोग हावी होते हैं वे जीतते नहीं, बल्कि जीतते वे हैं जो प्रेम से सेवा करते हैं। इब्रानियों को लिखे पत्र में भी हमें याद दिलाया गया है : “हमारे महायाजक हमारी दुर्बलताओं में हमसे सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है।” (इब्रा. 4:15)

इस बिंदु पर, येसु अपने शिष्यों को धर्म-परिवर्तन करने, उनकी मानसिकता बदलने में मदद करते हैं: तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।” (मार. 10:42) लेकिन जो लोग ईश्वर, जो अपने प्रेम से सभी तक पहुँचने के लिए सेवक बन गये, उनका अनुसरण करनेवालों के लिए ऐसा नहीं होना चाहिए। जो लोग मसीह का अनुसरण करते हैं, अगर वे महान बनना चाहते हैं, तो उन्हें उनसे सीखकर सेवा करनी चाहिए।

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “येसु हमारे हृदय के विचारों, इच्छाओं और योजनाओं को प्रकट करते हैं, तथा कभी-कभी महिमा, प्रभुत्व और शक्ति की हमारी अपेक्षाओं को उजागर करते हैं। वे हमें संसार के मानदण्डों के अनुसार नहीं, बल्कि ईश्वर के मार्ग के अनुसार सोचने में सहायता करते हैं, जो सबसे निचले बन गये ताकि निम्न समझे जानेवाले लोगों को ऊपर उठा सकें। यद्यपि येसु के ये प्रश्न, सेवा पर उनकी शिक्षा के साथ, हमारे लिए अक्सर समझ से परे होते हैं, फिर भी उनका अनुसरण करके, उनके पदचिन्हों पर चलकर और उनके प्रेम के उपहार को स्वीकार करके, हम भी ईश्वर की सेवा के मार्ग पर चलना सीखते हैं।