रोम के धर्माध्यक्ष पोप लियो : ‘जो मेरे पास है और मैं जो हूँ उस थोड़े को आपको देता हूँ'

पोप लियो 14वें ने रविवार 25 मई को रोम के धर्माध्यक्ष के सिंहासन या "कैथेड्रा" संत जॉन लातेरन महागिरजाघर में, अपना पहला ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए अपने नए धर्मप्रांत परिवार का अभिवादन किया।
पोप लियो 14वें ने रविवार को लातेरान महागिरजाघर में रोम धर्मप्रांत के विश्वासियों के साथ यूखारीस्तीय बलिदान अर्पित करते हुए रोम के धर्माध्यक्ष के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया।
संत जॉन लातेरन महागिरजाघर की ओर जाने से पहले, पोप लियो रोम के कैपितोलिन हिल पर रुके, जो शहर के नागरिक और लोकतांत्रिक प्रशासन का मुख्यालय है, वहाँ शहर के महापौर रोबेर्तो गुवालतिएरी ने उनका स्वागत किया।
पोप ने महापौर और उपस्थित नागरिक अधिकारियों को उनके गर्मजोशी से स्वागत के लिए धन्यवाद दिया और आशा व्यक्त की कि "रोम हमेशा मानवता और सभ्यता के उन मूल्यों के लिए विशिष्ट रहेगा जो सुसमाचार में अपना आधार पाते हैं।"
“हमें दूसरों की बात सुननी चाहिए, और सबसे बढ़कर, ईश्वर की आवाज सुननी चाहिए।”
रोम के धर्माध्यक्ष के कैथीड्रल, संत जॉन लातेरन महागिरजाघर में ख्रीस्तयाग के दौरान पोप लियो 14वें के प्रवचन के केंद्र में यही विचार था।
संत पापा ने अपने प्रवचन के शुरू में सभी कार्डिनलों रोम के सह-धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, पल्ली पुरोहितों, धर्मबंधुओं, धर्मबहनों और लोकधर्मियों तथा प्रेरिताई कार्य में हाथ बंटानेवाले सभी लोगों का अभिवादन किया।
शहीदों पर स्थापित रोम की कलीसिया
संत पापा ने कहा, “रोम की कलीसिया एक महान इतिहास की विरासत है, जो संत पेत्रुस, पौलुस और असंख्य शहीदों के साक्ष्य पर स्थापित है, और इसकी एक विशेष प्रेरिताई है जिसे हम इस महागिरजाघर के झरोखे में अंकित पाते हैं, ओमनियुम एक्लेसिएरुम मातेर- सभी कलीसियाओं की माता।
संत पापा फ्राँसिस ने हमेशा हमें कलीसिया के मातृत्वमय आयाम पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उसे परिभाषित करनेवाले करूणा, आत्म-त्याग और सुनने की क्षमता जैसे गुणों का विचार करने का आहृवान किया। उसके इन गुणों ने उसे न केवल दूसरों की मदद करने हेतु सक्षम बनाया है बल्कि उनकी जरूरतों और अपेक्षाओं को उनके कहने से पहले ही उनके लिए उपलब्ध करने में मदद की है। हम आशा करते हैं कि उन गुणों का विकास हर जगह और यहाँ की धर्मप्रांतीय कलीसिया-विश्वासियों, पुरोहितों और सबसे पहले मुझ में भी व्याप्त हो।
आज के पाठ हमें इन गुणों पर चिंतन करने में मदद करते हैं।
संत पापा लियो ने कहा कि प्रेरित चरित से लिया गया पाठ विशेष रुप से हमारे लिए प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय के बारे में जिक्र करता है, जो सुसमाचार प्रचार के संबंध में खुले रूप में गैर-ख्रीस्तीय समाज से आने वाली चुनौती की चर्चा करता है। यह कोई छोटी समस्या नहीं थी जो धैर्य और आपस में एक दूसरे को सुनने की मांग करती है। अंताखिया समुदाय में, जहाँ भाइयों को वार्ता के माध्यम से, और यहां तक की असहमति का सामना करते हुए भी सवालों को सुलझाना पड़ता है, पौलुस और बरनाबस येरुसालेम जाते हैं। वे खुद समस्या का समाधान नहीं करते बल्कि वे माता कलीसिया को एकता में देखना चाहते हैं इसलिए विनम्रता पूर्वक जाते हैं।
येरुसालेम में पेत्रुस और अन्य प्रेरितों को पाते हैं, जो उन्हें सुनने को लिए तैयार रहते हैं। यह एक वार्ता की शुरूआत थी जो अंततः उन्हें सही निर्णय लेने में मदद करती है। नये ख्रीस्तीयों की कठिनाइयों को देखते हुए वे उनके ऊपर और दूसरे बोझों को नहीं लादने का निर्णय करते हैं बल्कि उन बातों पर जोर देते हैं जो जरूरी थी। इस भांति, एक समस्या के रूप में दिखाई देनेवाली बात सभों के लिए विचार मंथन और विकास के लिए एक अवसर बनता है।
निर्णय लेने के लिए ईश्वर की आवाज सुनना
हम इसे येरूसालेम के भाइयों के शब्दो में पाते हैं जो अंताखिया के लिए अपने निर्णयों को प्रस्तुत करते हैं। वे लिखते हैं “यह पवित्र आत्मा को और हमें उचित जान पड़ा”। दूसरे शब्दों में, वे इस बात जोर देते हैं कि इस घटना में सबसे मुख्य बात ईश्वर की आवाज को सुनने की थी, जो हर बात को संभव बनाते हैं। इस भांति, वे हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि एकता का निर्माण मुख्य “घुटनों में” प्रार्थना के माध्यम और परिवर्तन हेतु निरंतर विचारों के आदान-प्रदान में होता है।” केवल इस भांति हममें से हर कोई पवित्र आत्मा की प्रेरणा से पुकारते हुए, “आब्बा पिता” कहते हैं। और तब, इसका परिणाम यह होता है हम एक दूसरे को भाई-बहनों के रूप में सुनते और समझते हैं।
सुसमाचार इस बात को सुदृढ़ करता है। यह हमारे लिए इस बात को सुनिश्चित करता हैं कि हम जीवन में निर्णय लेने के लिए अकेले नहीं हैं। पवित्र आत्मा हमें पोषित करते और हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं, वे हमें “शिक्षा” देते और उन बातों की “याद दिलाते” हैं जिसे येसु ने कहा।
सबसे पहले, पवित्र आत्मा हमें प्रभु के वचनों को हमारे भीतर गहराई से अंकित करके सिखाता है, जैसा कि बाइबल में बताया गया है, अब वे पत्थर की पट्टियों पर नहीं बल्कि हमारे हृदयों में लिखे गए हैं। ( येरे. 31:33) यह वरदान हमें बढ़ने और एक दूसरे के लिए "मसीह का पत्र" बनने में मदद करता है। (2 कोरि.3:3) स्वाभाविक रूप से, जितना अधिक हम सुसमाचार द्वारा खुद को आश्वस्त और परिवर्तित होने देते हैं – पवित्र आत्मा की शक्ति को हमारे दिल को शुद्ध करने, हमारे शब्दों को सीधा, हमारी इच्छाओं को ईमानदार और स्पष्ट बनाने और हमारे कार्यों को उदार बनाने की अनुमति देते हैं - हम इसके संदेश की घोषणा करने में उतने ही अधिक सक्षम होते हैं।
यहाँ, दूसरी क्रिया काम में आती है: हम स्मरण करते हैं, अर्थात्, हमने जो अनुभव किया है और सीखा है, उस पर हम अपने हृदय में चिंतन करते हैं, ताकि उसका अर्थ पूरी तरह से समझ सकें और उसकी सुंदरता का आनंद ले सकें।