पोप : मरियम संग तीर्थ में येसु की खोज करें

पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन की धर्मशिक्षा माला में येसु की माता मरियम के जीवन पर चिंतन करते हुए उन्हें आशा के तीर्थयात्री कहा और उनके द्वारा येसु की खोज करने का आहृवान किया।

पोप फ्रांसिस जेमेली अस्पताल में स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करते हुए भी अपने बुधवारीय आमदर्शन की धर्मशिक्षा माला को प्रकाशित करना जारी रखा है।

उन्होंने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में येसु के बाल्यावस्था पर चिंतन किया। पोप ने कहा कि येसु की बाल्यावस्था को समर्पित धर्मशिक्षा के इस अंतिम भाग में, आज हम बारह वर्ष के येसु की चर्चा करेंगे जो अपने माता-पिता के अनजाने में येरुसालेम मंदिर में रह जाते हैं, उसके माता-पिता चिंतित उसे खोजते और तीन दिनों के बाद पुनः पाते हैं। इस घटना में हम मरियम औऱ येसु के बीच में एक अति सुन्दर वार्ता को पाते हैं जो हमें येसु की माता मरियम की यात्रा पर चिंतन करने को मदद करती है, जो अपने में निश्चित रुप में सहज नहीं है। वास्तव में, मरियम अपने में एक आध्यात्मिक यात्रा पूरी करती है जहाँ वह अपने पुत्र के रहस्य को समझने के योग्य होती है।

मरियम की यात्रा
हम इस यात्रा की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में पुनः विचार करें। अपने गर्भवास्था के शुरूआती दिनों में, मरियम एलिजबेद से भेंट करने जाती है और तीन महीने तक उसके संग रहती है, जब तक नन्हे बालक योहन का जन्म नहीं होता है। और इसके बाद, जब वह नौ महीने के गर्भावस्था में रहती, जनगणना के कारण, उसे योसेफ से साथ बेतलेहेम जाना पड़ता है, जहाँ वह येसु को जन्म देती है। चालीस दिनों के बाद वे बालक को येरूसालेम मंदिर में समर्पित करने ले जाते हैं और इसके बाद हर साल वे येरूसालेम की एक तीर्थयात्रा करते हैं। लेकिन जब येसु एक नन्हा बालक था, वे उसे हेरोद से बचाये रखने के लिए लम्बे समय तक मिस्र देश में शरणर्थी की तरह जीवनयापना करते हैं, और केवल राजा की मृत्यु उपरांत ही वे पुनः नाजरेत वापस लौटकर बस जाते हैं। येसु अपनी व्यस्कता में जब अपनी प्रेरिताई की शुरू करते हैं, तो मरियम को हम एक नायिका की भांति काना के विवाह भोज में उपस्थित पाते हैं, वहाँ से लेकर येरूसालेम की अंतिम यात्रा तक, उसके दुःखभोग और मृत्यु तक वह उसका अनुसरण “कुछ दूर रहते” हुए कहती है। पुनरूत्थान के बाद, मरियम येरुसालेम में शिष्यों के लिए माता की तरह रहती है, वह उनके विश्वास को सुदृढ़ता प्रदान करती हुए पवित्र आत्मा के आने की प्रतीक्षा करती है।

मरियम आशा की एक तीर्थयात्री हैं
पोप फ्रांसिस कहते हैं कि इस पूरी यात्रा में कुंवारी मरियम आशा की एक यात्री है, इस अर्थ की गहराई में हम उसे “अपने पुत्र की पुत्री” स्वरूप पाते हैं, जो कि उसकी पहली शिष्या हैं। मरियम ने येसु को दुनिया में लाया, जो मानवता की आशा हैं। उन्होंने उनका पालन-पोषण किया, उनकी परवरिश की, वह उसका अनुसरण करती है, वह अपने को सर्वप्रथम ईश्वर के वचनों से गढ़ने देती है। इस संदर्भ में संत पापा बेनेदिक्त 16वें लिखते हैं, ऐसा करने में, मरियम “सचमुच में एक निवास स्थल है जो स्वाभाविक रुप में, अपने में वहाँ से बाहर निकलती और वहाँ प्रवेश करती है। वह ईश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए उसे घोषित करती है...। इस भांति यहाँ हम इस रहस्य को पाते हैं कि उसके विचारों में ईश्वरीय विचारों का समिश्रण है, उनकी इच्छा में हम ईश्वरीय इच्छा के मेल को देखते हैं। चूंकि वह अंतरंग रुप में ईश्वर के वचनों से जुड़ी है, वह अपने में देहधारी शब्द की माता बनती है। ईश्वर के वचनों से उनका इस भांति जुड़ा होना यद्यपि उन्हें अपने को एक “नवसिखिये” होने से नहीं रोकता है।

संतान खोने का दुःख
पोप कहते हैं कि बाहर वर्ष की आयु में येरूसालेम की वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान येसु को खोने का अनुभव उन्होंने इतना अधिक भयभीत करता है कि वह योसेफ के संग अपने बेटे से कहती है, “बेटा, तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया, देखो तो, तुम्हारे पिता और मैं दुःखित होकर तुमको ढूंढ़ते रहेॽ” मरियम और योसेफ ने माता-पिता के रुप में अपने एक बच्चे को खोने के दुःख का अनुभव किया- वे यह सोचते रहे कि बालक येसु भीड़ में अपने संबंधियों के साथ होगा, लेकिन उन्होंने बालक को अपने संबंधियों के बीच नहीं पाया, अतः वे एक दिन की यात्रा पूरी कर, उसे खोजते हुए येरूसालेम के मंदिर में पुनः आ पहुंते हैं। मंदिर में पहुंचने पर वे उसे जो उनकी आंखों में अब तक छोटा था, जिसे सुरक्षा की जरुरत थी, अचानक बड़ा हो गया है, अब वह धर्मशास्त्रों पर चर्चा करने में सक्षम है, तथा संहिता के ज्ञाताओं संग अपनी बातों और विचारों को रख सकता है।

पुत्र की चाह
अपनी माँ की फटकार का सामना करते हुए, येसु अपनी सरलता में उत्तर देते हैं: “मुझे ढूंढ़ने की जरुरत क्या थीॽ क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चित ही अपने पिता के घर में होऊंगाॽ” मरियम और योसेफ येसु की बातें नहीं समझ पाते हैं- ईश्वर का रहस्य जो बालक के रुप में हमारे बीच आया, उसकी बातें माता-पिता की बुद्धि से परे जाती हैं। माता-पिता अपने अनमोल पुत्र को अपने प्रेम की पंखों तले सुरक्षित रखना चाहते हैं, दूसरी ओर, येसु पिता के पुत्र स्वरूप अपनी बुलाहट को जीने की चाह रखते हैं, अतः हम उन्हें पिता के वचनों और उनकी सेवा डूबा हुआ पाते हैं।

पोप कहते हैं कि इस भांति संत लूकस के द्वारा येसु के बाल्यावस्था की व्याख्या मरियम के शब्दों से समाप्त होती है, जो योसेफ को येसु के प्रति पितृत्व की याद दिलाती है, और येसु के पहले शब्दों के साथ, जो उन्हें यह पहचानते में मदद करता है कि यह पितृत्व किस भांति स्वर्गीय पिता से उत्पन्न हुआ है, वे निर्वादित रुप में इस प्रधानता को स्वीकार करते हैं।