पापमोचकों से पोप फ्राँसिस: 'हमेशा क्षमा करें'

वाटिकन में सेवारत पश्चातापी पापमोचक पुरोहुत समुदाय को संबोधित करते हुए, पोप फ्राँसिस ने स्मरण दिलाया कि एक उत्तम पापस्वीकारकर्ता को सदैव पश्चाताप करनेवाले विश्वासी के प्रति सामीप्य, दयालुता और करुणा दर्शानी चाहिये।

"सदैव सब कुछ क्षमा कर दो, क्योंकि हम क्षमा करने के लिए ही यहाँ हैं; दूसरों को बहस करने दो!" गुरुवार को सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में पश्चाताप एवं पुनर्मिलन संस्कार प्रेरिताई को फ्राँसिसकन धर्मसमाजियों को सौंपे जाने की 250वीं वर्षगांठ के अवसर पर पोप फ्रांसिस ने इस बात की पुनरावृत्ति की। पश्चाताप एवं पुनर्मिलन संस्कार प्रेरिताई 1774 से फ्राँसिसकन धर्मसमाजियों की देखरेख में है।

ईश्वर की करुणा
फ्राँसिसकन धर्मसमाजी प्रधान पुरोहित फादर विन्सेन्ज़ो कोसाटी ओ.एफ.एम. के नेतृत्व में पोप फ्राँसिस के साक्षात्कार हेतु वाटिकन पहुँचे 60 पापस्वीकारकर्ताओं को संबोधित करते हुए, सन्त पापा ने वाटिकन के महागिरजाघर में उनकी सेवा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पश्चाताप एवं पुनर्मिलन संस्कार प्रेरिताई  "उनके समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करती है कि कलीसिया सबसे पहले क्षमा किए गए समुदाय के रूप में उनका स्वागत करती है, जो ईश्वर की कोमलता के प्रकाश, उनकी करुणा और उनकी शक्ति में विश्वास करते हैं।"

विनम्रता, श्रवण और दया
पोप ने अपने विचार पश्चाताप एवं पुनर्मिलन प्रेरिताई के तीन प्रमुख पहलुओं पर केंद्रित किये, जो हैं: विनम्रता, श्रवण और दया। प्रेरितवर सन्त पेत्रुस के उदाहरण से प्रेरणा लेते हुए, जिसने अपनी व्यक्तिगत गलतियों के बाद क्षमा मांगकर से विनम्रता का पाठ सीखा था, सन्त पापा ने फ्राँसिसकन पापस्वीकारकर्त्ताओं को आमंत्रित किया कि वे स्वयं को पहले "पश्चातापी" के रूप में देखें तथा सदैव ईश्वर की दया की खोज करें।

उन्होंने कहा कि यह विनम्रता महागिरजाघर के पवित्र स्थान में उनकी प्रार्थनाओं और कार्यों में प्रतिबिंबित होनी चाहिए।

दयालु श्रोता, मनोचिकित्सक नहीं
पोप फ्रांसिस ने सक्रिय और सहानुभूतिपूर्ण तरीके से सुनने के महत्व पर प्रकाश डाला, खासकर युवा और कमजोर लोगों के लिए, हालांकि, चेतावनी दी कि एक पापस्वीकार सुनने वाला कोई मनोचिकित्सक नहीं होता।  उन्होंने कहा, "जितना कम बोलेंगे, उतना ही बेहतर होगा, बस सुनें, सांत्वना दें और क्षमा प्रदान करें।"

पोप ने कहा, "सुनने का अर्थ केवल लोगों की बातें सुनना नहीं है, बल्कि सबसे पहले उनके शब्दों को ईश्वर की ओर से उपहार के रूप में ग्रहण करना है, ताकि व्यक्ति स्वयं नम्रतापूर्वक, मनपरिवर्तन के लिए तत्पर हो उठे, जैसे कि कुम्हार के हाथों में मिट्टी स्वयं के परिवर्तन के लिए तैयार हो जाती है।"

उन्होंने स्मरण दिलाया कि पुनर्मिलन संस्कार में पश्चातापी की बात को ध्यान से सुनने से पापस्वीकारकर्ता “स्वयं येसु को सुनता है, जो ग़रीब, अकिंचन और विनम्र हैं”, और इस प्रकार उस पश्चातापी और मसीह के बीच एक व्यक्तिगत मुलाकात को सुगम बनाता है।

क्षमा और करुणा
यह मानते हुए कि पाप स्वीकार करने वाले लोग पहले से ही अपने पापों के कारण विनम्र होते हैं, पोप फ्रांसिस ने पाप स्वीकार सुनने वालों से पश्चाताप करने वालों के प्रति दयालु, करुणामय और सौम्य होने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, "ईश्वर की क्षमा प्रदाता रूप में, पापस्वीकारकर्त्ताओं को 'दया के पुरुष' होना चाहिये तथा उज्ज्वल एवं  उदार, शब्दों से सांत्वना देने के लिए तैयार रहना चाहिये। उन्होंने कैपुचिन पुरोहित पाद्रे पियो के समकालीन सन्त लियोपोल्ड मान्दिक के पदचिन्हों पर चलने का फ्राँसिसकन धर्मसमाजियों से आग्रह किया जो अपनी तपस्या के साथ-साथ अपनी दयालुता और उदारता के लिये जाने जाते थे।