दाखबारी के मज़दूरों का दृष्टान्त
मत्ती 20:1-16
"स्वर्ग का राज्य उस भूमिधर के सदृश है, जो अपनी दाखबारी में मज़दूरों को लगाने के लिए बहुत सबेरे घर से निकला।
उसने मज़दूरों के साथ एक दीनार का रोज़ाना तय किया और उन्हें अपनी दाखबारी भेजा।
लगभग पहले पहर वह बाहर निकला और उसने दूसरों को चौक में बेकार खड़ा देख कर
कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ, मैं तुम्हें उचित मज़दूरी दे दूँगा’ और वे वहाँ गये।
लगभग दूसरे और तीसरे पहर भी उसने बाहर निकल कर ऐसा ही किया।
वह एक घण्टा दिन रहे फिर बाहर निकला और वहाँ दूसरों को खड़ा देख कर उन से बोला, ’तुम लोग यहाँ दिन भर क्यों बेकार खड़े हो’
उन्होंने उत्तर दिया, ’इसलिए कि किसी ने हमें मज़दूरी में नहीं लगाया’ उसने उन से कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ।
"सन्ध्या होने पर दाखबारी के मालिक ने अपने कारिन्दों से कहा, ’मज़दूरों को बुलाओ। बाद में आने वालों से ले कर पहले आने वालों तक, सब को मज़दूरी दे दो’।
जब वे मज़दूर आये, जो एक घण्टा दिन रहे काम पर लगाये गये थे, तो उन्हें एक-एक दीनार मिला।
जब पहले मज़दूर आये, तो वे समझ रहे थे कि हमें अधिक मिलेगा; लेकिन उन्हें भी एक-एक दीनार ही मिला।
उसे पाकर वे यह कहते हुए भूमिधर के विरुद्ध भुनभुनाते थे,
’इन पिछले मज़दूरों ने केवल घण्टे भर काम किया। तब भी आपने इन्हें हमारे बराबर बना दिया, जो दिन भर कठोर परिश्रम करते और धूप सहते रहे।’
उसने उन में से एक को यह कहते हुए उत्तर दिया, ’भई! मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं कर रहा हूँ। क्या तुमने मेरे साथ एक दीनार नहीं तय किया था?
अपनी मजदूरी लो और जाओ। मैं इस पिछले मजदूर को भी तुम्हारे जितना देना चाहता हूँ।
क्या मैं अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति का उपयोग नहीं कर सकता? तुम मेरी उदारता पर क्यों जलते हो?
इस प्रकार जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और जो अगले है, पिछले हो जायेंगे।"