योहन बपतिस्ता की शहादत
संत योहन बपतिस्ता के जन्म के पर्व (24 जून) के अलावा, कलीसिया, चैथी शताब्दी से ही, ख्रीस्त के अग्रदूत की शहादत की यादगारी मनाती आयीहै। रोमन शहीद विज्ञान के अनुसार, यह दिन ‘‘उनके सबसे आदरणीय सिर की दूसरी खोज‘‘ का संकेत करता है। संत के शरीर को सामरिया में दफनाया गया था। वर्ष 362 में गैर-ख्रीस्तीयों ने कब्र का अनादर किया और उनके अवशेषों को जला दिया। उनके अवशेषों का केवल एक छोटा सा हिस्सा मठवासीयों द्वारा बचाया जा सका और सिकन्दरिया में संत अथानासियस को भेजा गया। विभिन्न स्थानों पर संत के सिर की उपासना की जाती है। जैसे कि रोम में संत सिल्वेस्टर के गिरजाघर में एक शहीद-पुरोहितयोहन को याद किया जाता है। इसके अलावा ब्रेसलाऊ के डोमिनिकन गिरजाघर में बपतिस्ता के सिर को सम्मानित किया जाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि धन्य योहन को हमारे उद्धारक के गवाह के रूप में कारावास और जंजीरों का सामना करना पड़ा, जिनके वे अग्रदूत थे, और उन्होंने उनके लिए अपना जीवन दे दिया। उनको सताने वाले ने मांग की थी कि वे न सिर्फ ख्रीस्त को इन्कार करे, लेकिन यह भी कि वे सच्चाई के बारे में चुप रहें। क्या ख्रीस्त यह नहीं कहतेः ‘‘मैं सत्य हूँ‘‘? इसलिए, क्योंकि योहन बपतिस्ता ने सच्चाई के लिए अपना खून बहाया, वे निश्चित रूप से ख्रीस्त के लिए मर गए।
अपने जन्म, उपदेश और बपतिस्मा के माध्यम से, उन्होंने आने वाले जन्म, प्रचार और ख्रीस्त के बपतिस्मा की गवाही दी, और अपने स्वयं के कष्टों से उन्होंने दिखाया कि ख्रीस्त भी पीड़ित होंगे।
ऐसे थे उस व्यक्ति के गुण और ताकत जिसने लंबे कारावास के बाद अपना खून बहाकर इस वर्तमान जीवन के अंत को स्वीकार किया। उन्होंने स्वर्गीय शांति की स्वतंत्रता का प्रचार किया, फिर भी अधर्मी लोगों द्वारा उन्हें बेइज्जत किया गया। वे कालकोठरी के अँधेरे में बंद थे, हालाँकि वे जीवन के प्रकाश की गवाही देने आये थे।
सच्चाई की खातिर अस्थायी पीड़ा सहना योहन बपतिस्ता जैसे लोगों के लिए भारी बोझ नहीं था; बल्कि यह आसानी से वहन किया गया और वांछनीय भी था, क्योंकि वे जानते थे कि अनन्त आनंद उनका प्रतिफल होगा।